रोडवेज में ओवरटाइम बंद होने से प्रभावित रहीं सेवाएं, शेड्यूल बिगड़ने से यात्रियों ने झेली परेशानी
सरकार द्वारा ओवरटाइम बंद किए जाने पर रोडवेज यूनियनों का तर्क है कि ऐसा करके सरकार ने जनहित में ही अजीब फैसला लिया है। एक तरफ तो विभाग में कर्मचारी कम है। दूसरी ओर सरकार ने ओवरटाइम बंद कर दिया। यदि सरकार ओवर टाइम ड्यूटी नही देती है तो उसे कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। बसों की संख्या के हिसाब से चालक-परिचालक के पेयर होने चाहिए। 20 फीसद पेयर रिजर्व में होने चाहिए। तभी सेवा
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ :
रोडवेज विभाग में सरकार द्वारा ओवर टाइम बंद किए जाने के साथ ही परिवहन सेवाएं भी चरमरा गई हैं। बहादुरगढ़ सब डिपो में शुक्रवार को सरकार के ये आदेश लागू किए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि चंडीगढ़ समेत तमाम रूटों पर बसों के ट्रिप 50 फीसद तक कम हो गए। इससे प्राइवेट आपरेटरों की मौज हो गई।
रोडवेज के टाइम पर बस स्टैंड में कोई बस उपलब्ध नही। ऐसे में यात्री भी प्राइवेट बसों में ही सफर करने को मजबूर हुए। दूसरी ओर शनिवार व रविवार को ग्रुप डी की परीक्षा होनी है। पिछले सप्ताह के हालातों को देखते हुए रोडवेज विभाग की ओर से इस बार स्पेशल शेड्यूल बनाया गया है। सुबह साढ़े तीन बजे से ही विभिन्न रूटों के लिए रोडवेज की बसों की रवानगी शुरू हो जाएगी। सरकार द्वारा रोडवेज विभाग में ओवरटाइम बंद किए जाने का असर शुक्रवार को साफ नजर आया। सभी रूटों पर बसों के ट्रिप 30 से 50 फीसद कम हो गए। इसके कारण यात्री भी परेशान हुए। जिस टाइमटेबल के हिसाब से बसें चल रही थी, उस समय पर शुक्रवार को बसें नहीं चल पाई। चंडीगढ़ के लिए रोजाना यहां से अलग-अलग रूटों से लगभग 20 बसें चलती हैं, मगर शुक्रवार को इनकी संख्या आधी रह गई थी। सुबह के समय पहली सेवाएं तो समय पर शुरू हुई, मगर बाद में दिक्कत हुई।
इसी तरह गुरुग्राम, बेरी, झज्जर, बाढ़सा, फर्रुखनगर, बामड़ौला समेत अनेक रूटों के लिए जो बसें चलती थी, उनकी संख्या कम हो गई। कर्मचारी कम, तो बिना ओवरटाइम कैसे मिले सर्विस : बहादुरगढ़ सब डिपो में 62 बसें हैं। यहां पर 82 चालक और 80 परिचालक हैं। ऐसे में बिना ओवरटाइम के टाइमटेबल के अनुसार बसें चलाना संभव नही है। शुक्रवार को यही स्थिति रही। आठ घंटे की ड्यूटी पूरी होने के बाद किसी भी चालक-परिचालक को ओवरटाइम ड्यूटी नहीं दी गई। इसी कारण दोपहर के समय कई बसें उपलब्ध नही हो पाई। चंडीगढ़ के लिए कम बसें चली। दोपहर में बस स्टैंड पर खरखौदा के लिए ज्यादा यात्री थे। मगर रोडवेज की बस उपलब्ध नही हो पाई, क्योंकि उस समय चालक-परिचालक नहीं थे। इस तरह की स्थिति हर रूट पर बनी। इसका फायदा सीधे प्राइवेट आपरेटरों ने उठाया। आम दिनों में तो रोडवेज की बस जब काउंटर पर आने का समय होता है उससे पहले प्राइवेट आपरेटर को अपनी बस वहां से रवाना करनी होती है, मगर ओवरटाइम बंद होने से रोडवेज विभाग का अपना शेड्यूल गड़बड़ा गया। ऐसे में प्राइवेट आपरेटर बेफिक्र रहे। उन्होंने रोडवेज के समय के यात्री भी उठाए। इससे उनकी बसों में खूब भीड़ रही। यात्रियों के लिए भी गंतव्य तक पहुंचने की मजबूरी थी। इसलिए रोडवेज बस न मिली तो प्राइवेट बस में ही यात्रा की। जनहित में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाए सरकार : सरकार द्वारा ओवरटाइम बंद किए जाने पर रोडवेज यूनियनों का तर्क है कि ऐसा करके सरकार ने जनहित में ही अजीब फैसला लिया है। एक तरफ तो विभाग में कर्मचारी कम है। दूसरी ओर सरकार ने ओवरटाइम बंद कर दिया। यदि सरकार ओवर टाइम ड्यूटी नही देती है तो उसे कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। बसों की संख्या के हिसाब से चालक-परिचालक के पेयर होने चाहिए। 20 फीसद पेयर रिजर्व में होने चाहिए। तभी सेवाएं सुचारू रह सकती हैं। कर्मचारी नेताओं ने कहना है कि रोडवेज की कर्मशाला में तो लंबे समय से भर्ती हुई ही नहीं हैं। सरकार को इस पर सोचना चाहिए। बहादुरगढ़ में जितनी बसें हैं, उसको देखते हुए यहां पर चालक-परिचालक ही 170 से ज्यादा होने चाहिए। वर्जन..
अधिकारियों की तरफ से जो निर्देश मिले हैं, उसका पालन किया जा रहा है। ओवरटाइम अब बंद कर दिया गया है। कर्मचारियों को निर्धारित समय के अनुसार ही ड्यूटी सौंपी जा रही है।
--धर्मबीर ¨सह, डीआइ, रोडवेज।