Road Safety: सड़क दुर्घटनाओं में जांच की चली आ रही एक ही परिपाटी, अब IRAD मोबाइल एप से होगा बदलाव
सड़क दुर्घटना के मामलों में पुलिस की ओर से अब आइआरएडी (इंटीग्रेटिड रोड एक्सिडेंट डाटाबेस) फार्म भरना आवश्यक है। संबंधित जांच अधिकारी की ओर से दुर्घटना स्थल पर जाकर यह फार्म आनलाइन भरना होता है। आइआरएडी एक मोबाइल एप है।
बहादुरगढ़, जागरण संवाददाता। सड़क दुर्घटना के मामलों को लेकर जांच की परिपाटी बदल नहीं रही है। वैसे तो दुर्घटनाओं के पीछे कई तरह के कारण होते हैं, लेकिन पुलिस लंबे समय से एक ही लाइन पर चल रही है। तेज गति व गफलत-लापरवाही ही पुलिस की जांच में दुर्घटना के कारण होते हैं, लेकिन जिस जगह पर दुर्घटना हुई, वहां पर सड़क का डिजाइन कैसा है।
उसमें कोई खामी तो नहीं। वहां पर जरूरी दिशा-निर्देश के संकेतक, साइन बोर्ड व चेतावनी बोर्ड भी लगे हैं या नहीं इस तरह की बातें कतई नहीं होती। यह अलग बात है कि ट्रैफिक पुलिस उन्हीं हादसों का डेटा तैयार करके प्रशासन और संबंधित विभागों के समक्ष सड़कों पर सुधार की सिफारिश तो करती है, लेकिन कानूनी तौर पर जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती। ऊपर से पुलिस की सिफारिश पर काम आधा ही होता है।
सड़कों की खामियों के मामलों में दर्ज होती है संयोग की रिपोर्ट
बहुत सी दुर्घटनाएं तो ऐसी होती हैं जिनमें वाहन आपस में टकराते हैं, लेकिन कई बार अकेला वाहन ही या तो सड़क के डिवाइडर से टकरा जाता है या फिर सड़क से नीचे किसी खाई में गिरने अथवा पेड़ व खंभे से टकराने जैसी घटनाएं होती हैं। ऐसे मामलों में अधिकतर बार पुलिस की ओर से संयोग से हादसा होने की रिपोर्ट की जाती है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि पुलिस को दुर्घटना के मामलों में बारीकी से जांच करनी चाहिए। जहां पर हादसा होता है वहां के तकनीकी पहलू भी जांचने चाहिए।
अक्सर ऐसा होता है कि किसी एक प्वाइंट पर हादसे होते रहते हैं लेकिन जिस वजह से हादसे होते हैं, उन पर सुधार नहीं होता। अनेकों बार ऐसा होता है जब सड़क पर किसी व्यवस्थागत खामी की वजह से हादसा हो जाता है, लेकिन उसमें पुलिस संयोग की रिपोर्ट करके ड्यूटी की इतिश्री कर लेती है। कायदे से तो ऐसे मामलों में संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारी पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।
क्लेम मिलने के बाद आगे नहीं बढ़ते मामले
सड़क दुर्घटना के अनेक मामलों में पीड़ितों की तरफ से पैरवी कर चुके बहादुरगढ़ के अधिवक्ता अमित कुमार बताते हैं कि पीड़ित परिवारों को जब क्लेम मिल जाता है तो उसके बाद वे केस को आगे बढ़ाने में ज्यादा रूचि नहीं लेते। ऐसे में दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है। कुछ मामलों को यदि छोड़ दें तो पुलिस की जांच में भी खामियां पाई जाती हैं। उनमें मौके के गवाह नहीं होते।
कुछ मामलों में तो यह समझा जा सकता है कि वहां पर कोई न होगा, लेकिन पुलिस अधिकतर मामलों में आम जन से कोई गवाह पेश नहीं कर पाती और पुलिस की खुद की गवाही पर ही कोर्ट किसी को दोषी नहीं मानते। इसी कारण से दुर्घटना के मामलों में लापरवाही पर सजा बेहद कम मामलों में हो पाती है।
आइआरएडी से डेटा होगा तैयार तो तय होगी जिम्मेदारी
सड़क दुर्घटना के मामलों में पुलिस की ओर से अब आइआरएडी (इंटीग्रेटिड रोड एक्सिडेंट डाटाबेस) फार्म भरना आवश्यक है। संबंधित जांच अधिकारी की ओर से दुर्घटना स्थल पर जाकर यह फार्म आनलाइन भरना होता है। आइआरएडी एक मोबाइल एप है। इसके जरिये पुलिस जांच अधिकारी फोटो और वीडियो के साथ सड़क दुर्घटना के बारे में विवरण दर्ज करेगा। इसके बाद घटना के लिए एक विशिष्ट आइडी बनेगी। फिर लोक निर्माण विभाग या संबंधित विभाग के एक इंजीनियर काे उनके मोबाइल पर अलर्ट प्राप्त होगा। इसके बाद वह अधिकारी दुर्घटना स्थल का दौरा करेंगे। मौके की जांच करेंगे और आवश्यक विवरण दर्ज करेंगे।
यानी उस जगह पर क्या स्थिति है सड़क का डिजाइन और दूसरे बिंदुओं पर जो हालात हैं, उनका जानकारी दर्ज करेंगे। इस तरह से एकत्रित किए गए डेटा का विश्लेषण आइआइटी-एम की एक टीम द्वारा किया जाएगा, जो यह सुझाव देगी कि सड़क डिजाइन में सुधारात्मक उपाय किए जाने की आवश्यकता है। बहादुरगढ़ में ट्रैफिक पुलिस के सड़क सुरक्षा सैल के इंचार्ज सतीश कुमार कहते हैं कि आइआरएडी सिस्टम झज्जर जिले में भी लागू हो चुका है। इससे सड़क दुर्घटना के मामलों का डाटाबेस तैयार होगा। साथ ही जो सड़कों पर खामियां हैं, उनके बारे में भी जानकारी एकत्रित होेगी।