बाजरे का एमएसपी बढ़ा, पर खरीद प्रक्रिया में उलझन होने से इस फसल से हाथ खींच रहे किसान
सरकार की ओर से भले ही बाजरे के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : सरकार की ओर से भले ही बाजरे के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की गई हो लेकिन किसान तो इस फसल की बिजाई से हाथ खींच रहे हैं। सरकार ने इसका एमएसपी तो बढ़ा दिया, लेकिन इसकी खरीद मुकम्मल नहीं हो पाती। ऐसे में किसान फसल की बिक्री को लेकर उलझे रहते हैं। दरअसल जिस वर्ष सरकार ने बाजरे के एमएसपी में भारी बढ़ोतरी थी उस वर्ष सरकार ने खूब खरीद की थी, मगर पिछले साल तो सरकार की ओर से बाजरे की सीधी खरीद की बजाय भावांतर योजना के तहत किसानों को इस फसल की पूरी कीमत देने की प्रक्रिया पर जोर दिया गया। यानी किसानों को बाजार भाव पर अपनी फसल बेचने के लिए कहा गया और उसकी कीमत एमएसपी से जितनी कम थी उसके अंतर की राशि को सरकार की ओर से वहन करने की व्यवस्था की गई थी। किसानों को यह चक्कर ज्यादा रास नहीं आया। इस बार सरकार की ओर से बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2350 रुपये प्रति क्विटल तय किया गया है। यानी पिछले साल के मुकाबले 100 रुपये प्रति क्विटल की बढ़ोतरी की गई है, लेकिन पिछले साल फसल की बिक्री का किसानों का अनुभव अच्छा नहीं रहा। इस वजह से किसान अबकी बार बाजरे की बिजाई को लेकर दुविधा में हैं। दरअसल, सरकार की ओर से बाजरे की जब खरीद की जाती है तो उसका निपटान सरकार के लिए मुश्किल हो जाता है। इसी को देखते हुए सरकार की ओर से बाजरे की सीधी खरीद करने की बजाय भावांतर योजना के मार्फत किसानों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इधर, किसानों द्वारा फिलहाल मानसून का इंतजार किया जा रहा है। उसके बाद फसलों की बिजाई का सिलसिला तेज होगा। पिछले दिनों जो मामूली बरसात हुई उसके बाद किसानों की ओर से कुछ रकबे में ज्वार और बाजरे की बिजाई तो की गई लेकिन फसल का अंकुरण कम हुआ। अब मानसून की पहली बरसात के बाद ही खेतों में खरीफ की फसलों की बिजाई भी तेज हो पाएगी।