पहली बार छावनी से विज ने बनाई हैट्रिक, जीत का मार्जन भी बढ़ा
स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने अंबाला छावनी में लगातार तीन बार जीतकर रिकार्ड कायम कर दिया है। इससे पहले अंबाला जिला में अंबाला शहर से भाजपा प्रत्याशी मास्टर शिव प्रसाद लगातार तीन बार जीत कर हैट्रिक बना चुके हैं।
कुलदीप चहल, अंबाला : स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने अंबाला छावनी में लगातार तीन बार जीतकर रिकार्ड कायम कर दिया है। इससे पहले अंबाला जिला में अंबाला शहर से भाजपा प्रत्याशी मास्टर शिव प्रसाद लगातार तीन बार जीत कर हैट्रिक बना चुके हैं। विज चुनाव जीतने के अलावा 2014 का रिकार्ड भी तोड़कर अधिक मार्जन से जीते हैं। इसके अलावा आजाद प्रत्याशी के तौर पर भी जीत हासिल करने वाले अंबाला छावनी से अनिल विज ही हैं। जिले की नारायणगढ़ और मुलाना सीट से अभी तक कोई भी प्रत्याशी तीन बार लगातार जीत नहीं सका है।
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इस तरह बढ़ाया जीत का मार्जन
सन 2014 में हुए चुनावों में भाजपा के अनिल विज ने कांग्रेस के निर्मल सिंह को मात दी थी। अब 2019 के चुनाव में भी अनिल विज ने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इस चुनाव में उनकी जीत का मार्जन भी बढ़ा है। सन 2014 के चुनाव में उनको 66605 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के निर्मल सिंह को 51143 वोट हासिल हुए थे। यह चुनाव उन्होंने 15462 वोटों के अंतर से जीता था। इस बार चुनाव में हालांकि विज को पिछली बार की तुलना में कम वोट पड़े, लेकिन जीत का मार्जन बढ़ गया। विज ने यह चुनाव इस बार 20165 वोटों के अंतर से जीता है।
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अनिल विज का राजनीतिक सफर
अनिल विज का जन्म 15 मार्च 1953 को भीम सेन और राजरानी के घर हुआ। पिता रेलवे में अधिकारी थे। विज ने एसडी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई पूरी की। 1969 में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीतियों के प्रचारक बन गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद 1974 में उनका चयन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में बतौर अधिकारी हो गया। 16 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी को अलविदा कह दिया। सन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में 1970 में महासचिव थे। अंबाला सीट से विधायक रहीं सुषमा स्वराज ने करनाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा तो छावनी सीट से इस्तीफा दिया। सीट खाली थी और भाजपा ने उपचुनाव में 1990 में अनिल पर दाव लगाया। पहली बार में ही विज ने मैदान मार लिया। 1991 में हुए विधानसभा चुनावों में अनिल विज चुनाव हार गए। उन्हें भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 1995 में भाजपा को अलविदा कह दिया। अनिल विज 1996 में निर्दलीय विधायक बने। सन 2000 में भी अनिल विज को कैंट के लोगों ने बतौर निर्दलीय ही विधानसभा में भेजा। भाजपा को अनिल विज की कमी पूरी करने वाला कोई नेता नहीं मिल रहा था। 2005 भाजपा के वरिष्ठ नेता विज को फिर से भाजपा में ले आए। वह कांग्रेस के डीके बंसल से महज 615 वोटों से शिकस्त खा गए। इसके बाद हुए 2009 व 2014 के चुनाव में लगातार दो बार जीत दर्ज की।