लेटलतीफी पर सुप्रीम कोर्ट ने ठोका अफसरों पर डेढ़ लाख जुर्माना, ¨वडल्स परिवार की बढ़ीं मुश्किलें
ब्रिटिश सरकार की ओर से लीज पर दिए गए 127 नंबर बैंगलो की चार एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे व नवनिर्माण मामले में लेटलतीफी और लापरवाही बरतने पर सुप्रीम कोर्ट ने अंबाला संपदा अधिकारी (डीसी), निगम आयुक्त और सदर ईओ पर डेढ़ लाख रुपये जुर्माना ठोका है।
उमेश भार्गव, अंबाला
ब्रिटिश सरकार की ओर से लीज पर दिए गए 127 नंबर बैंगलो की चार एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे व नवनिर्माण मामले में लेटलतीफी और लापरवाही बरतने पर सुप्रीम कोर्ट ने अंबाला संपदा अधिकारी (डीसी), निगम आयुक्त और सदर ईओ पर डेढ़ लाख रुपये जुर्माना ठोका है। इन तीनों को तीन सप्ताह में यह जुर्माना भरना होगा। दूसरी ओर लोकायुक्त की फटकार के बाद पूरे नगर निगम ने ¨वडल्स परिवार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। अलबत्ता ¨वडल्स परिवार की मुश्किलें बढ़ना तय है।
दरअसल, अंबाला-जगाधरी नेशनल हाईवे पर जनरल पोस्ट ऑफिस के ठीक सामने बैंगलो नंबर 127 है। 1904 में ब्रिटिश सरकार ने काले खां को इस बैंगलो की करीब चार एकड़ जमीन लारेंस होटल चलाने के लिए लीज की शर्तों के साथ दी थी। आरोप हैं कि 22 जनवरी 1934 में फर्जी तरीके से काले खां ने इस जमीन की रजिस्ट्री ¨वडल्स परिवार के नाम करा दी। ¨वडल्स परिवार ने इस पर मालिकाना हक जताते हुए यहां सेसिल कान्वेंट सीनियर सेकेंडरी, सेसिल कान्वेंट जूनियर, सेसिल कान्वेंट प्ले-वे, सेसिल होटल व दुकानें बना दी। इनमें से एक में पीएनबी की शाखा भी चल रही है। लीज के मुताबिक ऐसा नहीं किया जा सकता साथ ही सरकारी जमीन की रजिस्ट्री नहीं हो सकती।
56 साल क्यों मौन रहे अधिकारी
इस तरह 56 साल यानी 2002 तक समस्त निगम अधिकारी खामोश रहे। 9 सितंबर 2002 को नगर निगम ने इस बैंगलो को खाली करने का नोटिस ¨वडल्स परिवार को दिया। 4 अक्टूबर 2002 को ¨वडल्स परिवार से कुलभूषण ¨वडल्स सिविल कोर्ट चले गए। 26 मार्च 2008 को सिविल कोर्ट ने स्टे आर्डर जारी किया। हालांकि कोर्ट ने लिखा कि कानूनी तरीके से सरकार इसे खाली करा सकती है। ¨वडल्स परिवार का जमीन पर मालिकाना हक नहीं है। सरकार ने अप्रैल 2008 को सेशन कोर्ट में अपील की। लेकिन 29 मई 2010 को याचिका करते हुए निचली अदालत के स्टे आर्डर को बरकरार रखा।
2013 में हाईकोर्ट पहुंची सरकार
सेशन कोर्ट के बाद हाईकोर्ट में तीन माह के भीतर याचिका दायर करनी थी लेकिन आर्डर के 567 दिनों के बाद सरकार हाईकोर्ट पहुंची। हाईकोर्ट ने पूछा कि इस मामले में लापरवाही बरतने वालों पर क्या कार्रवाई की गई। अधिकारियों ने इसका कोई जवाब नहीं दिया न ही केस की सही तरीके से पैरवी की। मसलन हाईकोर्ट ने भी 2014 में इस याचिका को डिसमिस कर दिया।
कैसे पहुंचा सुप्रीम कोर्ट में मामला
हाईकोर्ट से सरकार की याचिका खारिज होने के बाद ¨वडल्स परिवार को लगा कि मामला खत्म हो चुका है। इसीलिए इस जमीन में बनाई गई दुकानों व मकानों का बतौर मालिक किराया मांगना शुरू कर दिया। इससे तंग होकर दुकानों के किरायेदार राजकुमार और रमेश ने अप्रैल 2017 में लोकायुक्त के पास अपील कर दी। इसमें अंबाला डीसी, सीबीएसई निदेशक हरियाणा, निगम आयुक्त को निदेशक अर्बन लोकल बॉडी को पार्टी बनाते हुए ¨वडल्स परिवार की मदद के आरोप लगाए। लोकायुक्त ने अप्रैल में ही निदेशक अर्बन लोकल बॉडी को केस की जांच 45 दिनों के भीतर करने के आदेश दिए। लेकिन इसे भी अनदेखा किया गया। लोकायुक्त ने व्यक्तिगत तौर पर तत्कालीन निदेशक नितिन यादव को तलब कर लिया। फटकार से बचाने के लिए आनन-फानन सितंबर 2017 में निदेशालय ने बैंगलो नंबर 127 की पैमाइस करवाई, नवनिर्माण की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करवाते हुए मौका पर नक्शा बनवाया। रिपोर्ट लोकायुक्त को 25 सितंबर 2017 को सौंप दी गई। रिपोर्ट में लिखा कि उक्त बैंगलो में सभी निर्माण नया करते हुए बेसिक स्ट्रक्चर को ही बदल दिया। 20 दिसंबर 2018 को लोकायुक्त ने फिर फटकार लगाई। बि¨ल्डग इंस्पेक्टर तेंजेंद्र, लीज क्लर्क दीपक राणा, विशाल क्लर्क डायरेक्टर अर्बन लोकल बॉडी लोकायुक्त के सामने पेश हुए। बताया कि बैंगलो नंबर 127 में किए गए अवैध निर्माण को गिराने का दूसरा नोटिस जारी कर दिया गया है। मामले को लटकाने वाले तीनों कर्मियों जयभगवान शर्मा, सचिव डीआर धीमान और विरेंद्र को नोटिस भी भेज दिए हैं। यह तीनों रिटायर्ड हो चुके हैं। लोकायुक्त ने एक माह यानी 20 जनवरी तक ¨वडल्स परिवार व मामले को लटकाने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की रिपोर्ट जमा कराने के निर्देश दिए। अब लोकायुक्त में मई 2019 और सुप्रीम कोर्ट में 11 फरवरी को इस मामले की सुनवाई होगी।
फोटो: 10
सरकार की 4 एकड़ जमीन पर ¨वडल्स परिवार ने अवैध तरीके से न केवल कब्जा किया बल्कि उसका व्यापारीकरण भी किया है। सही तरीके से पैरवी नहीं करने के कारण निचली अदालत और हाईकोर्ट में इस केस को खारिज किया। इसीलिए अब सुप्रीम कोर्ट ने तीनों अधिकारियों पर डेढ़ लाख जुर्माना भी लगाया है।
गौरव राजपूत, एडवोकेट। फोटो: 11
जब जमीन सरकार की है तो हम किराया भी सरकार को देंगे। इसीलिए हमने लोकायुक्त में याचिका डाली थी। लोकायुक्त से हमें पूरी उम्मीद है।
राजकुमार, याचिकाकर्ता फोटो: 12
अभी सुप्रीम कोर्ट के आर्डर नहीं मिले हैं। जैसे भी आदेश होंगे नियमानुसार उनकी अनुपालना की जाएगी।
सतेंद्र सिवाच, निगम आयुक्त।
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यह हमारा किरायेदारों का झगड़ा चल रहा है। चार किरायेदार हमें किराया नहीं दे रहे थे। इनमें से तीन किरायेदार जसबीर ¨सह, जंगी और राम ¨सह ने कोर्ट में ही समझौता कर लिया। राजकुमार के साथ हमारा कोई झगड़ा नहीं था। उसने किसी के कहने पर लोकायुक्त पर केस डाला दिया। अब यह कह रहे हैं कि अधिकारी हमारा फेवर कर रहे हैं लेकिन किसी ने कोई फेवर नहीं किया। हमारे बुजुर्गो के पास 1932 की रजिस्ट्री है। कोई फर्जी रजिस्ट्री नहीं हुई। एक शरारती एडवोकेट से मिलकर केस को उलझाया जा रहा है। इन्हें हाईकोर्ट से भी फटकार लग चुकी है। न तो आगे जमीन बेची गई न ही कोई सब डिवीजन हुआ। पहले भी यह कामर्शियल थी अब भी। हम सभी कोर्ट से जीत चुके हैं। इन्होंने चार साल बाद हाईकोर्ट में केस डाला। इसीलिए वहां भी कोर्ट ने इन्हें फटकार लगाई थी। वहां से हारकर ये लोकायुक्त में चले गए कि सुप्रीम कोर्ट में जाना चाहिए था। इसीलिए लोकायुक्त के कहने पर निगम वाले सुप्रीम कोर्ट गए। वहीं, अधिकारियों पर डेढ़ लाख जुर्माना लगाया है। अभी हमारे खिलाफ फैसला नहीं हुआ बल्कि हमें सुनने के लिए कोर्ट ने 11 फरवरी को बुलाया है। वहां हम पूरे कागजात के साथ जाएंगे क्योंकि हमारे पास सब कुछ है।
सुधीर ¨वडल्स, पार्टी बनाए गए कुलभूषण के पुत्र।