शहादत से तेपला गांव का पुराना नाता, 300 बेटे कर रहे देश की सेवा
हरीश कोचर, अंबाला देश सेवा के लिए मिलने वाली शहादत का अंबाला से सटे तेपला गांव का प
हरीश कोचर, अंबाला
देश सेवा के लिए मिलने वाली शहादत का अंबाला से सटे तेपला गांव का पुराना नाता है। जम्मू एंड कश्मीर ही नहीं अरूणाचल प्रदेश में भी इस गांव के बेटे अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए शहादत पा चुके हैं। गांव के एक बेटे ने 1999 में कारगिल युद्ध, दूसरे ने राजौरी, तीसरे अरूणाचल प्रदेश और अब चौथे नंबर पर विक्रमजीत ने श्रीनगर में आतंकियों से लोहा लिया। गांव के करीब 300 युवा सेना में नौकरी कर रहे हैं। गांव में छोटे-छोटे बच्चे भी स्कूल में पढ़ते समय ही सेना में जाने के लिए अपने परिजनों से जिद करने लग जाते हैं।
इन जवानों ने पाई शहादत
सबसे पहले तेपला गांव के कर्नल इंद्र ¨सह के बेटे मेजर गुरमीत ¨सह वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। हर¨जद्र ¨सह (30 वर्षीय) भी कुछ साल पहले श्रीनगर से आगे राजौरी पूंछ में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गया था, जबकि लांस नायक विनोद ¨सह भी पांच साल पहले अरूणाचल प्रदेश में सीमा पार से गोली लगने से शहीद हो गए थे। अब सबसे कम उम्र वाले विक्रमजीत ने देश सेवा करते हुए सोमवार की रात आतंकियों को देश की सीमा से बाहर निकालते समय अपनी जान दे दी।
600 परिवारों से बने 300 जवान
तेपला गांव में करीब 600 परिवार रहते हैं। गांव की कुल आबादी करीब 3000 है जबकि 1900 वोटर है। लेकिन इस गांव में शायद ही ऐसा कोई परिवार होगा जिसमें से कोई न कोई सदस्य भारतीय सेना में न गया हो। क्योंकि आंकड़े गवाह हैं कि इस गांव से करीब 300 युवा मौजूदा सेना में भर्ती होकर देश सेवा कर रहे है।
गरीब परिवार से रहा शहीद विक्रमजीत
विक्रमजीत ¨सह का दादा करतार ¨सह भी सेना में थे और उन्हीं से प्रेरित होकर विक्रमजीत ही नहीं उसका छोटा भाई मोनू ¨सह भी देश सेवा करने के लिए सेना में भर्ती हुआ। इससे पहले इसका परिवार काफी गरीब हुआ करता था, लेकिन जब से यह दोनों भाई भारतीय सेना में गए तब से इनकी आर्थिक स्थिति थोड़ी ठीक हुई थी। दो साल पहले विक्रमजीत के परिवार की 7 भैंसों की जहरीले पानी से मौत हो गई थी। अब छोटी-सी उम्र में शहादत पाने वाला लांस नायक विक्रम अपने पीछे दिल दहला देने वाली भावुक यादें छोड़ गया है।
शहीद की पत्नी करीब पांच माह की गर्भवती
9 दिसंबर 2017 को विक्रम अपने घर पर आया था। सीमा पर देश के लिए जान गंवाने वाले विक्रमजीत ¨सह की शादी महज सात महीने पहले इसी साल 15 जनवरी को यमुनानगर जिले के बड़ी पाबनी गांव निवासी हरप्रीत कौर के साथ हुई थी। 22 मार्च को वह शादी के बाद वापस ड्यूटी पर गया था। उसकी पत्नी करीब पांच महीने की गर्भ से है और अक्टूबर में उसकी डिलीवरी होनी है। ऐसे में शादी के बाद विक्रमजीत को अब पहली बार छुट्टी पर आना था। लेकिन अब वह घर तो आएगा लेकिन उसका शरीर तिरंगे में लिपटा होगा।
बेटे से आखिरी बात याद कर नहीं थम रहे आंसू
पत्नी हरप्रीत से विक्रम की आखिरी बात सोमवार सुबह साढ़े 11 बजे से एक घंटे तक हुई थी। वह जल्द से जल्द घर आने की बात कह रहा था। इसी तरह से सुबह आठ बजे विक्रम की बात उसकी मां कमलेश कौर व पिता बल¨जद्र ¨सह के साथ भी हुई थी। बेटे के साथ हुई आखिरी बात को याद कर उनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। वहीं दोस्त नरेंद्र ने बताया कि विक्रम को शुरू से ही क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था।