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जूठन खाते देख स्लम एरिया के बच्चों को नौकरी छोड़ शिक्षित करने का उठाया बीड़ा

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को जूठी थालियों से खाना खाते देखा तो मन पसीज गया और उसी समय ठान लिया कि इन पिछड़े वर्ग के बच्चों को समाज के उच्च वर्ग के बच्चों के बराबर लाकर खड़ा करना है। अंबाला शहर सेक्टर 9 में रहने वाले कमलेश अरोड़ा ने इसके लिए लेक्चरर की

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 01:31 AM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 01:31 AM (IST)
जूठन खाते देख स्लम एरिया के बच्चों को नौकरी छोड़ शिक्षित करने का उठाया बीड़ा
जूठन खाते देख स्लम एरिया के बच्चों को नौकरी छोड़ शिक्षित करने का उठाया बीड़ा

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर : स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को जूठी थालियों से खाना खाते देखा तो मन पसीज गया और उसी समय ठान लिया कि इन पिछड़े वर्ग के बच्चों को समाज के उच्च वर्ग के बच्चों के बराबर लाकर खड़ा करना है। अंबाला शहर सेक्टर 9 में रहने वाले कमलेश अरोड़ा ने इसके लिए लेक्चरर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और खुले आकाश तले स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठा लिया। जीवन के 70 बंसत देख चुकी कमलेश अरोड़ा आज बेशक बूढ़ी हो चुकी हैं लेकिन उनका जोश आज भी किसी युवा से कम नहीं है। नाहन हाउस में आज भी अपने खर्च पर करीब 90 बच्चों को पढ़ा रही हैं। इसके लिए तीन शिक्षक भी नियुक्त की हैं। साथ ही खुद भी पढ़ाती हैं। इनको हर माह करीब 15 हजार वेतन तो देती हैं साथ ही बिजली व अन्य खर्च मिलाकर हर माह करीब दो हजार अन्य खर्च भी होते हैं जोकि खुद ही वहन करती हैं। स्लम एरिया में रहने वाले पिछड़ी जाति के बच्चों का जीवन शिक्षा से संवार सकें और प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर अच्छी शिक्षा देने के लिए प्रयासरत हैं। शिक्षा के समान हक की इसी लड़ाई को लड़ते हुए उनका कई लोगों ने साथ भी दिया लेकिन ज्यादातर अधर में भी छोड़ गए। फिर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

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बंद फाटक पुल के नीचे पढ़ाए बच्चे

पहले कमलेश अरोड़ा ने अंबाला शहर में बंद फाटक पुल के नीचे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद मानव कल्याण एवं शिक्षा केंद्र सोसायटी का गठन किया। इसी सोसायटी के बैनर तले लोगों से सहयोग मांगा। इसी के तहत अंबाला शहर में नाहन हाउस में किसी ने जगह दे दी और वहीं पर कस्तूरबा गांधी स्कूल खोल बच्चों को शिक्षित करने लगे। लेकिन जिला प्रशासन ने आज तक सहयोग नहीं किया। इस बात का आज भी उन्हें दुख है।

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प्रशासन नहीं कर रहा मदद

कमलेश अरोड़ा ने कहा कि शहर विधायक असीम गोयल ने उनके बच्चों के टैलेंट को देख 8 लाख की लागत से दो कमरे बनवाए। इतना ही नहीं और भी मदद का आश्वासन दिया। इससे पहले सांसद रह चुकी कुमारी शैलजा ने भी कमरे बनवाए थे। लेकिन अंबाला प्रशासन का सहयोग नहीं मिलने के कारण आज तक उनके स्कूल को मान्यता नहीं मिल पाई।

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प्राइवेट स्कूलों से प्रश्न पत्र लाकर करवाती हैं परीक्षा

कमलेश अरोड़ा शहर के नामी स्कूलों में शामिल पीकेआर जैन सीसे और सोहन लाल डीएवी स्कूलों से प्रश्न पत्र लाकर अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की वार्षिक परीक्षाएं लेती हैं। ताकि यह मूल्यांकन कर सकें कि उनके पढ़ाए हुए बच्चे कहां तक खरे उतरते हैं। उनके स्कूल में उम्र का कोई पैमाना नहीं है। ऐसे बच्चे जिन्हें पढ़ाने से सभी मना कर देते हैं उन्हें भी वह शिक्षित करती हैं। अभी तक उनके कई स्टूडेंट बीकॉम, लैब टेक्निशियन के कोर्स कर अच्छे पदों तक पहुंच चुके हैं।


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