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रिटायर्ड इंजीनियर ने उठाया जिम्मा, 12 शिक्षक रख निश्शुल्क शिक्षा के साथ घोल रहे संस्कार

कर्म करो बस तुम अपना लोग उसे जानेंगे ही आज नहीं तो कल ही सही लोग तुम्हें पहचानेंगे ही। पोलिटेक्निक से रिटायर्ड इंजीनियर पर यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं। सेवानिवृत्ति से पहले सरकारी नौकरी करते हुए हजारों विद्यार्थियों को इंजीनियरिग कराई।

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Mar 2019 06:51 AM (IST)Updated: Sun, 10 Mar 2019 06:51 AM (IST)
रिटायर्ड इंजीनियर ने उठाया जिम्मा, 12 शिक्षक रख निश्शुल्क शिक्षा के साथ घोल रहे संस्कार
रिटायर्ड इंजीनियर ने उठाया जिम्मा, 12 शिक्षक रख निश्शुल्क शिक्षा के साथ घोल रहे संस्कार

उमेश भार्गव, अंबाला शहर

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कर्म करो बस तुम अपना लोग उसे जानेंगे ही, आज नहीं तो कल ही सही लोग तुम्हें पहचानेंगे ही। पोलिटेक्निक से रिटायर्ड इंजीनियर पर यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं। सेवानिवृत्ति से पहले सरकारी नौकरी करते हुए हजारों विद्यार्थियों को इंजीनियरिग कराई। यह सिलसिला सेवानिवृत्ति के बाद भी अनवरत रहा फर्क बस इतना पड़ा कि पहले शिक्षा देने के लिए सरकार से पैसे लेते थे और सेवानिवृत्ति के बाद जरूरतमंदों को निशुल्क शिक्षा शिक्षा देने के लिए अपनी जेब से राशि खर्च कर रहे हैं। सेक्टर नौ में 166 नंबर मकान में रहने वाले रिटायर्ड इंजीनियर सतीश परुथी की कहानी कुछ ऐसी ही है। दलित और मलिन बस्तियों से हुई शुरुआत, अब पॉश एरिया में भी खोला सेंटर

सतीश परुथी 1989 में सेवाभारती संस्था के साथ जुड़े थे। अंबाला शहर में इस संस्था के करीब आठ सदस्य हैं, जबकि छावनी में ज्यादातर रिटायर्ड कर्मी या फिर नौकरी पेशे वाले हैं। सतीश परुथी ने सबसे पहले 1993 में अंबाला शहर की डेहा बस्ती में निश्शुल्क शिक्षा केंद्र खोला था। इसके बाद शहर के ही मनमोहन नगर, रामनगर डेहा बस्ती, वाल्मीकि बस्ती में चौकी नंबर चार के पास निश्शुल्क शिक्षा केंद्र चलाए। इन सभी केंद्रों में इस समय करीब सौ विद्यार्थी सुबह और शाम दो सत्रों में दो-दो घंटे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। हालांकि इनमें से बाल्मीकी बस्ती में इस समय सेंटर नहीं चला रहा, जबकि मनमोहन नगर में दो, डेहा बस्ती में एक, लक्ष्मीनगर पॉश एरिया में भी एक सेंटर चल रहा है। वहीं पांचवां केंद्र निश्शुल्क सिलाई सेंटर है। इन पांचों में 12 शिक्षा तैनात हैं। इन सभी को संस्था 1500 रुपये प्रति माह मेहनताना देती है।

माता-पिता ने खड़े किए हाथ तो भी दिया साथ

सतीश बताते हैं कि उन्होंने अपने शिक्षण केंद्रों में बच्चों को पढ़ाकर उन्हें प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करा दिया। पांचवीं तक तो बच्चे जैसे-तैसे प्राइवेट स्कूलों में गए, लेकिन इसके बाद वह उनके माता-पिता ने उन स्कूलों का खर्च उठाने में असमर्थता जाहिर कर दी। इसीलिए सतीश ने उन्हें सुलतानपुर के सरकारी स्कूल में दाखिला दिला दिया, लेकिन यहां दिक्कत यह आई कि यह स्कूल काफी दूर पड़ता था। बच्चों के माता-पिता ने इतनी दूर बच्चे भेजने से मना कर दिया। इस पर सतीश ने 19 बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए आटो रख दिया। ऑटो चालक ने पांच सौ रुपये प्रति बच्चा मांगा। सतीश ने तीन सौ रुपये संस्था की ओर से देने का वादा किया, जबकि दो सौ रुपये अभिभावकों की बैठक बुलाकर उन्हें अदा करने के लिए मनाया। इतना ही नहीं पैसे देने के साथ इन बच्चों की वह नियमित रूप से मॉनीटरिग भी करते हैं कि वह स्कूल में जा रहे हैं या नहीं। ..एक बच्चे का उठा लें जिम्मा

दैनिक जागरण से बातचीत में सतीश पारुथी ने कहा कि हर सक्षम व्यक्ति यदि एक बच्चे को शिक्षित करने का जिम्मा भी उठा ले, तो यह डगर बेहद आसान हो जाएगी। उन्होंने कहा कि उनके चलाए गए अभियान के बेशक परिणाम धीरे-धीरे आ रहे हैं, लेकिन यह परिणाम दूर गामी होंगे।

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परिचय

सतीश परुथी एक संपन्न परिवार से हैं। पत्नी अनीता मॉडल संस्कृति सीनियर सेकेंडरी स्कूल से इंग्लिश की सेवानिवृत्त अध्यापक हैं। वहीं तीन बेटे हैं। एक यूएसए में है। दूसरा मैक्स अस्पताल मोहाली में कैंसर विशेषज्ञ है, जबकि तीसरा बेटा कंसलटेंसी में है। सतीश थॉपर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिग से एमटेक पास हैं।


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