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रेणुका मेले की हुई शुरुआत, स्नान के लिए पहुंचने लगे श्रद्धालु

रेणुका मेले की शुरुआत हो गई है। यह मेला छह दिन तक चलेगा। हिमाचल प्रदेश के पूर्वी छोर पर बसा है जिला सिरमौर। इसका मुख्यालय वाहन है तथा नाहन से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर है पवित्र पावन तीर्थ श्री रेणुका जी। इस तीर्थ को भगवान परशुराम तथा माता रेणुका के नाम से भी जाना जाता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 10:00 AM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 10:00 AM (IST)
रेणुका मेले की हुई शुरुआत, स्नान के लिए पहुंचने लगे श्रद्धालु
रेणुका मेले की हुई शुरुआत, स्नान के लिए पहुंचने लगे श्रद्धालु

संवाद सहयोगी, नारायणगढ़ : रेणुका मेले की शुरुआत हो गई है। यह मेला छह दिन तक चलेगा। हिमाचल प्रदेश के पूर्वी छोर पर बसा है जिला सिरमौर। इसका मुख्यालय वाहन है तथा नाहन से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर है पवित्र पावन तीर्थ श्री रेणुका जी। इस तीर्थ को भगवान परशुराम तथा माता रेणुका के नाम से भी जाना जाता है। गिरी गंगा के पावन तट से लकर महर्षि यमदग्निी के टीले तक फैली सात-आठ किलोमीटर लंबी यह वादी श्री रेणुका जी कहलाती है। इसी वादी में ददाहू कस्बे से केवल दो किलोमीटर की दूरी पर एक सुन्दर तालाब तथा एक मानवाकार झील के दर्शन मात्र से ही मानव मन में तृप्ति की अनुभूति हो जाती है। यह झील संसार की एक ऐसी झील है जो मानवाकार, आदमी के शरीर की भांति है। पहले इस झील का नाम श्री रेणुका जी झील न होकर राम सरोवर था। रामसरोवर के पास ही मां रेणुका के पति महर्षि यमदग्नि का आश्रम था जिसे कि आज तपे का टीला नाम से जाना जाता है।

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प्रतिवर्ष दीपावली के बाद दशमी को इस तीर्थ में मेला का आयोजन होता है। भगवान परशुराम की शोभायात्रा दोपहर को ददाहू के निकट गिरी गंगा; नदी के पावन तट से आरंभ होती है जो सांझ ढले रेणुका जी पहुंचती हैं। हजारों लोग एकादशी तथा पूर्णिमा को रेणुका झील में सर्वमनोकामना पूर्ण हेतु स्नान करते हैं। धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि पर्यटन की ²ष्टि से भी यह तीर्थ परिपूर्ण है। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं। घने जंगल साथ में कल कल बहती नदी गिरी गंगा है। झील के किनारे साधू महात्माओं के आश्रम तथा मां रेणुकाए भगवान परशुराम व भगवान शिव के भव्य मंदिर सभी का मन मोह लेते हैं। मां के साथ साथ मां के वाहन सिंह, शेरों का भी पर्यटक साक्षात दर्शन खुले जंगल में लायन सफारी में कर सकते हैं। इस प्रकार धार्मिक क्षुधा की तृप्ति के साथ साथ आगंतुकों को पर्यटन का भी पूर्ण आनंद हो जाता है।


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