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अस्पताल में मरीजों को नहीं मिल रही पूरी दवा, बंद एलसीडी दीवारों पर बनी शोपीस

ओपीडी में धक्का-मुक्की व घंटों इंतजार के बाद ही मिलता है उपचार, अल्ट्रासाउंड पर जड़ा ताला, मरीजों में जागरूकता फैलाने के उद्ेश्य से लगाई गई थी एलसीडी, लंबे समय से बंद पड़ी

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 02:03 AM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 02:03 AM (IST)
अस्पताल में मरीजों को नहीं मिल रही पूरी दवा, बंद एलसीडी दीवारों पर बनी शोपीस

जागरण संवाददाता, अंबाला: पेट दर्द की दवा लेनी हो चाहे सीने में दर्द की। ओपीडी ब्लॉक के अंदर दाखिल हो गए तो पहले घंटों लाइनों में लग धक्का-मुक्की के बाद संबंधित डाक्टर के पास नंबर आता है। उपचार के बाद जब वह दवा लेने के लिए कार्ड लेकर दवा काउंटर पर पहुंचते हैं तो मरीजों के हाथ में आधी-अधूरी दवाइयां ही थमाकर वापिस लौटा दिया जाता है। घंटों बर्बाद करने के बावजूद भी उन्हें बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं आधुनिक सुविधाओं से लैस छावनी के नागरिक अस्पताल की। यह नजारा सोमवार सुबह 11:30 बजे देखने को मिला। नई ओपीडी के अंदर जिस हिसाब से मरीजों व तीमारदारों की संख्या में इजाफा हुआ है एक ओपीडी के बाहर ही पचास से सौ लोग खड़े दिखाई देते हैं। मरीज व तीमारदारों के बैठने की भी जगह कम पड़ जाती है मजबूरन उन्हें फर्श पर ही बैठना पड़ता है। बीमारी से मरीज तो परेशान होते ही हैं साथ तीमारदार भी अस्पताल के अंदर भीड़ को देखकर चकरा जाते हैं। बावजूद अस्पताल प्रबंधन इन हालातों पर काबू पाने में अभी तक नाकाम है। दीवारों पर शोपीस बनकर रह गई एलसीडी

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अस्पताल के अंदर लाखों रुपये की लागत से मरीजों को जागरूक करने के उद्ेश्य से एलसीडी लगाई गई थी। ओपीडी से लेकर आईपीडी ब्लॉक के सभी फ्लोर पर उन्हें दीवारों पर चस्पा भी किया हुआ है। अधिकारियों की अनदेखी के चलते इन एलसीडी को चलाया ही नहीं जा रहा। मरीज भी दीवारों पर बंद एलसीडी को देख अस्पताल प्रबंधन की कार्यप्रणाली को कोसते हुए चले जाते हैं। शुरुआती दौर में तरह-तरह की बीमारियों के उपचार व बचाव के तरीके की जानकारी इन्हीं एलसीडी से दी जाती थी। बुजुर्ग के हार्ट की जांच के लिए खाने पड़े धक्के

शाहाबाद निवासी रामपाल अपने पिता 67 वर्षीय पिता रामस्वरूप के हार्ट की जांच करवाने के लिए धक्के खाने पड़े। अस्पताल में दो घंटे तक चक्कर काटने के बाद भी उपचार नहीं मिला तो मजबूरन चंडीगढ़ लेकर चले गए। रामपाल का कहना था कि वह सुबह 9 बजे पिता को लेकर ओपीडी में पहुंच गए थे। पहले तो रजिस्ट्रेशन काउंटर व ओपीडी के बाहर लाइनों में लग कर फीजिशियन तक पहुंचें। वहां से उन्हें फिर आईपीडी ब्लॉक के हार्ट सेंटर भेज दिया। जहां डाक्टर ही मौजूद न होने पर वापिस भेज दिया। आखिर में वह हारकर मरीज को पीजीआई लेकर चले गए। छह दवाओं में से दो बाहर की लिखी

बराड़ा के राजोखेड़ी निवासी रणजीत ¨सह ने बताया कि वह सिक्योरिटी गार्ड का काम करता है। दो घंटे की छुट्टी लेकर अस्पताल में पेट व टांगों में दर्द की दवा लेने पहुंचा था। 11:30 नंबर आया तो दवा काउंटर से कार्ड में लिखी छह दवाओं में चार थमा दी गई। बाकि पर लाल टीका कर बाहर से लेने के लिए भेज दिया। कम से कम दवाएं तो पूरी मिलनी चाहिए।


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