रेलवे की यह 'उड़ान' अभी दूर, लक्ष्य से आधी स्पीड पर ही दौड़ रही हमारी ट्रेन
भारतीय ट्रेनें अपनी क्षमता से अाधी स्पीड पर चल रही हैं। ऐसे में बहुआयामी ट्रेन वंदे मातरम् एक्सप्रेस 180 किमी प्रति घंटे की स्पीड पर चलेगी इसमें अभी इसकी संभावना कम ही है।
अंबाला, [दीपक बहल]। भारतीय रेलवे रोज नई उड़ान के दावे कर रहा है और ट्रेनों को 'उड़ान' जैसी स्पीड से चलाने की बातें की जा रही हैं। बहु आयामी ट्रेन वंदे मातरम एक्सप्रेस (ट्रेन 18) को तो 180 किलाेमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चलाने का लक्ष्य है। लेकिन, फिलहाल यह संभव नहीं दिख रहा है। हालात बता रहे हैं कि देश में हाइस्पीड ट्रेन दौड़ाने का सपना साकार होने में अभी लंबा समय लगेगा। हकीकत यह है कि हमारी ट्रेनें अपनी क्षमता से आधी स्पीड पर चल रही हैं। इसके कई कारण हैं और इनका निदान इतना आसान नहीं लग रहा।
भले ही गतिमान 150, शताब्दी और राजधानी 130 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ रही हैं, लेकिन यात्रियों के सफर में समय खास कमी नहीं हुई है। शताब्दी व राजधानी की औसत स्पीड 90 से ऊपर नहीं आ पा रही हैं। वहीं, सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेनों की औसत स्पीड तो 65 किमी प्रतिघंटा के आसपास है। औसत स्पीड न बढ़ने के कई कारण हैं, इसमें प्रमुख कारण बिजी रुटों पर ट्रेनों की संख्या का निर्धारित मापदंड से अधिक होना, पटरियों के दोनों तरफ कंक्रीट की दीवार न होना और ट्रैक पर स्थायी रूप से तकनीकी कारणों से ब्लाक होना आदि है।
150 किमी प्रति घंटा की रफ्तार के बावजूद सफर नहीं हो रहा कम, ट्रेनों की संख्या अधिक होना बन रही अड़चन
ट्रेन का ठहराव होने के कारण भी इसे रोकने के लिए करीब चार मिनट और फिर रफ्तार पकड़ने के लिए भी करीब छह मिनट लग जाते हैं, हालांकि वंदे भारत एक्सप्रेस (ट्रेन 18) एकदम से स्पीड पकड़ने और रुकने की क्षमता रखती है। दैनिक जागरण ने पड़ताल की तो दिल्ली से झांसी के बीच दौड़ने वाली गतिमान एक्सप्रेस और दिल्ली से मुंबई के बीच राजधानी एक्सप्रेस की स्पीड सबसे अधिक पाई गई।
इस तरह बिजी रुटों पर ट्रेनों की संख्या में हुआ इजाफा
रेलवे की सिंगल लाइन में 24 से 30 रेलगाडिय़ां ही दौड़ सकती हैं, जबकि डबल लाइन में 60 तक। ट्रेनों की संख्या में इजाफा होने के कारण एक ट्रेन के पीछे दूसरी ट्रेन दौड़ रही होती है, जबकि सिग्नल न मिलने के कारण ट्रेन चालक को कभी गाड़ी बीच में रोकनी पड़ती है तो कभी ट्रेन की रफ्तार कम करनी पड़ती है।
एक ही पटरी पर मालगाड़ी, शताब्दी, राजधानी सब दौड़ रही हैं, इसका असर भी ट्रेनों की रफ्तार पर पड़ रहा है। हालांकि, पंजाब के लुधियाना से कोलकाता तक 22 हजार करोड़ की लागत से रेलवे फ्रंट कोरीडोर बन रहा है। एलीवेटड ट्रेक पर जमीन से करीब 18 फीट ऊंचाई पर मालगाडिय़ां दौड़ेंगी। रेलवे ने कोरीडोर का लक्ष्य 2020 तक रखा है, मगर इसके पूरा होने की उम्मीद 2022 तक है। कोरीडोर के बनने से मालगाडिय़ां इस ट्रेक पर दौडऩे लगेंगी इससे एक्सप्रेस, राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस की औसत स्पीड में दस से पंद्रह घंटे की बढ़ोतरी होगी।
स्थायी-अस्थायी ब्लाक और आटोमेटिक ट्रेक न होना भी कारण
रेलवे में जिस तरह से ताबड़तोड़ हर सेक्शन में ब्लाक का काम चल रहा है यह भी कहीं न कहीं ट्रेनों की रफ्तार में अड़चन बना हुआ है। हालांकि संरक्षा की दृष्टि से पटरी की मरम्मत का काम चलता रहता है, लेकिन कुछ सेक्शनों में स्थायी रुप से ब्लाक को चिन्हित कर लिया जाता है। यह ब्लाक एक या दो दिन का नहीं बल्कि 365 दिन रहता है जो गार्ड, ड्राइवर से लेकर आपरेटिंग विभाग तक लिखित में जाता है यानि कि साल भर ट्रेन की रफ्तार धीमी करनी पड़ती है।