करधान भूमि घोटाला : डीसी के पास शामलात जमीन का मामला विचाराधीन होने के बावजूद करोड़ों रुपयों की बेची
छावनी से सटे गांव करधान की शामलात जमीन का मामला जिले के कलेक्टर एवं डीसी के पास विचाराधीन होने के बावजूद भू-माफियों ने करोड़ों रुपयों की जमीन रजिस्ट्रियां करवा दी।
दीपक बहल, अंबाला
छावनी से सटे गांव करधान की शामलात जमीन का मामला जिले के कलेक्टर एवं डीसी के पास विचाराधीन होने के बावजूद भू-माफियों ने करोड़ों रुपयों की जमीन रजिस्ट्रियां करवा दी। अंबाला छावनी तहसील से से¨टग कर यह भूमि घोटाला किया गया है। अभी डीसी को फाइनल करना था कि शामलात जमीन का हिस्सेदारी की जानी है या नहीं। इसके बावजूद आनन-फानन में 11 रजिस्ट्रियां कर दी गई। इस घोटाले में एक आला अधिकारी की भूमिका भी संदेह के घेरे में जिन्होंने मौखिक रूप से नायब तहसीलदार को इस संबंध में आदेश जारी किए थे। यदि, विजिलेंस ने मुकदमा दर्ज किया तो शिकंजे में फंस चुके नायब तहसीलदार उस आला अधिकारी का नाम तक सार्वजनिक कर सकता है। हालांकि, एडीसी की जांच रिपोर्ट में किसी भी कर्मी या अधिकारी का नाम तक सार्वजनिक नहीं किया गया। भ्रष्टाचारियों को बचाने की कवायद जरूर की गई क्योंकि सारा रिकार्ड उपलब्ध होने के बावजूद किसी कर्मी या अधिकारी का नाम तो दूर रैंक तक नहीं लिया गया है।
बता दें दैनिक जागरण ने फरवरी 2015 में करधान की शामलात जमीन की रजिस्ट्रियां होने का मामला प्रकाशित किया था। इस घोटाले की एडीसी ने जांच कर खुलासा किया सन 2010 से लेकर 2014 तक इस जमीन की रजिस्ट्रियां हुई। सन 2011 से 2013 के बीच में कोई रजिस्ट्री नहीं हुई। 16 अगस्त, 2010 को पहली रजिस्ट्री अनुपम जैन ने चरणजीत ¨सह और अन्य लोगों के नाम रजिस्ट्री कराई थी। इसके अंत में 18 सितंबर, 2014 को वीना जैन ने शमशेर ¨सह, सर्वदयाल आदि और योगेश उप्पल ने मोनिका के नाम रजिस्ट्री कराई। कुल 24 रजिस्ट्रियों का जांच रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है।
दैनिक जागरण को मिली जांच रिपोर्ट के अनुसार करधान गांव के लोगों ने डीसी को पत्र लिखकर मांग की थी कि उनके गांव करधान की जमीन डेयरियों को दी जानी है, इसके लिए उनकी जमीन के हिस्से निकाले जाए। 6 अप्रैल 2004 को ग्राम पंचायत करधान ने एक प्रस्ताव पारित किया वह अपने गांव की 26 एकड़ 10 मरले भूमि डेरियों के लिए बाजारी कीमत पर देने के लिए तैयार हैं। जमीन बेचकर जो रुपया आएगा उसे गांव के विकास कार्यों पर खर्च किया जाएगा। यह मामला तहसील से होता हुआ कलेक्टर तक पहुंच गया। इसके बाद जमीन की रजिस्ट्रियां करवा दी गई। सूत्र बताते हैं कि पहले तहसील में इन रजिस्ट्रियां को करने से मना कर दिया गया लेकिन बाद में ऊपर से फरमान मिला तो से¨टग कर रजिस्ट्रियां हो गई। एडीसी की जांच रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि पंजाब विलेज कॉमन लैंड एक्ट में सेक्शन 13ए में आदेश जारी हुए बिना रजिस्ट्रियां कर दी गई। रिपोर्ट में मिलीभगत और आला अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में बताई गई है। विजिलेंस की सिफारिश तो कर दी लेकिन यह मामला जल्दी निपटने वाला नहीं दिखता।
यह है नियम 13ए
अगर पंचायत के पास सामूहिक उपयोग के बाद जगह बचती है तो इस्तेमाल के पहले के मालिक अपनी भूमि को लेने के लिए हिस्सा मुताबिक तकसीम का केस डीसी के पास डाल सकते हैं। डीसी के तहत भूमि की तकसीम कर रजिस्ट्री कराने की शक्ति प्रदान करते हैं। लेकिन रजिस्ट्री उसी के नाम होगी जो इस्तेमाल से पहले भूमि का हिस्सेदार रहा हो अन्यथा यह गैर कानूनी माना जाएगा। इसके लिए लंबी प्रक्रिया के बाद तय होता है कि जमीन के हिस्से होंगे तो किस-किस के नाम। इस शामलात जमीनों की रजिस्ट्रियां कराने के मामले में कलेक्टर के पास अर्जी दायर जरूर की गई लेकिन पूरी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। जिसके चलते सभी रजिस्ट्रियां सवालों के घेरे में हैं।
इसे कहते हैं शामलात जमीन
शामलात जमीन किसी गांव की सांझी जमीन होती है। जिसकी मालिक संबंधित गांव की पंचायत होती है। संबंधित गांव के प्रोजेक्ट या फिर विकास कार्यों के लिए जमीन छोड़ते हैं। इस जमीन को अनुमति लेकर बचा जा सकता है। लेकिन यह रुपयों लोगों की जेबों में न जाकर गांव के विकास पर खर्च होता है।