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श्मशान में संस्कार पर हो रहा लकड़ियों का खेल

रामबाग श्मशान में रोटरी क्लब ने करीब 85 हजार रुपये की लागत से शव जलाने के लिए ईको फ्रेंडली सिस्टम लगाया था। ताकि पर्यावरण बचाया जा सके। परंतु आज तक वहां पर महज एक शव का ही संस्कार किया गया है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 01:39 AM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 01:39 AM (IST)
श्मशान में संस्कार पर हो रहा लकड़ियों का खेल

अवतार चहल, अंबाला : प्रदेश सरकार पराली जलाने वालों पर अंकुश लगाने के लिए तमाम प्रयास करने में जुटी हुई है, किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज करने से लेकर जुर्माना तक लगाया जा रहा है, लेकिन कई ऐसी जगह भी हैं जहां चाहकर भी कोई कदम नहीं उठाया जा रहा। रामबाग श्मशान में रोटरी क्लब ने करीब 85 हजार रुपये की लागत से शव जलाने के लिए ईको फ्रेंडली सिस्टम लगाया था। ताकि पर्यावरण बचाया जा सके। परंतु आज तक वहां पर महज एक शव का ही संस्कार किया गया है। ऐसे मामलों में प्रदेश सरकार भी मौन है।

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लकड़ी की लागत बढ़ाने के लिए नहीं चलाते सिस्टम

एक शव का दाह संस्कार करने के लिए करीब 8 क्विंटल लकड़ी की लागत लगती है। जिसकी अच्छी खासी पेमेंट बन जाती है। जो बिचौलियों की जेब में जाती है। इसी कारण वह नहीं चाहते उनकी लकड़ी की डिमांड कम पड़े। इसीलिए वह पुरानी परंपरा अनुसार खुली जगह पर ही शवों का संस्कार करवाने में लगे रहते हैं।

खुले के मुकाबले 50-60 फीसदी कम लगती है लक्कड़

खुले में शव जलाने के लिए 8 क्विंटल लकड़ी लगती है और इको सिस्टम में करीब 5 क्विंटल लकड़ी में ही दाह संस्कार का काम निपट जाता है। ऐसे में 30-40 फीसद कम लकड़ी लगती है। यदि एक शव को जलाने में 3 क्विंटल तक लकड़ी बच जाती है। रोजाना 8-10 संस्कार होने पर काफी लकड़ी की बचत हो जाती है।

रोटरी क्लब ने पर्यावरण बचाने के लिए उठाया था बीड़ा

रोटरी क्लब ने 2013-14 में ईको सिस्टम लगाया था। रोटेरियन अजय गुप्ता ने बताया कि वह इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर थे। रामबाग शमशान में इको फ्रेंडली के दो सिस्टम लगाए गए थे जो करीब 85 हजार रुपये में तैयार हुए थे। इन्हें लगाने का मकसद लकड़ी की बचत करना और पर्यावरण को बचाना था। उन्होंने बताया कि वह पहले जीरकपुर और दिल्ली में यह सिस्टम देखकर आए थे। इसके बाद इसे बनाने का निर्णय लिया था। रोटेरियन विनय मल्होत्रा ने भी इनका साथ दिया। उन्होंने बताया कि इस सिस्टम में फायर विक्रस लगी हुई हैं जो आग में खराब नहीं होती। इसमें हवा के लिए 6 वेंटीलेटर भी हैं। इतना ही नहीं इसे लगाने से पहले लोगों की भावनाओं का ध्यान भी रखा गया था। ताकि कोई इससे आहत न हो।

पहली बार करवाया संस्कार

एसडी कॉलेज के रिटायर प्राचार्य डॉक्टर देशबंधु ने अपनी सास का अंतिम संस्कार पर्यावरण हितैषी प्लेटफॉर्म पर कराकर लोगों के लिए संदेश छोड़ा है। उन्होंने बताया कि यदि मृतक के परिवार वाले इस बात पर जोर देंगे तो श्मशान में आचार्यो को भी उनकी बात माननी पड़ेगी।

स्टाफ नहीं मानता : प्रधान

ईको फ्रेंडली में पहले लावारिस शवों को जलाने की बात हुई थी, लेकिन बाद में मामला बीच में रह गया। इको सिस्टम में आचार्यो की भी रुचि नहीं है। इसे चलाने की बात हुई तो स्टाफ ने भी इसे नहीं माना। स्टाफ का कहना है कि इसमें संस्कार करना संभव नहीं।

प्रधान केएल सहगल, रामबाग श्मशान।


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