नमाज अदा के बाद एक-दूसरे को दी बकरीद की बधाई
बकरीद (ईद-उल-अ•ाहा) के मौके पर जिलेभर में मस्जिदों व ईदगाहों में नमाज अता की गई। सबसे ज्यादा भीड़ अंबाला छावनी के चुना चौक स्थित जामा मस्जिद में पहुंची।
जागरण संवाददाता, अंबाला: बकरीद (ईद-उल-अ•ाहा) के मौके पर जिलेभर में मस्जिदों व ईदगाहों में नमाज अता की गई। सबसे ज्यादा भीड़ अंबाला छावनी के चुना चौक स्थित जामा मस्जिद में पहुंची। सुबह 9 बजे अता करने के बाद सभी ने एक-दूसरे को बकरीद की बधाई दी। जहां एक जहां लोगों के चेहरे के खुशी साफ दिखाई दे रही थी, वहीं घरों में लजीज व्यंजन तैयार किए गए थे। एक-दूसरे को लोगों ने दावत पर बुलाया। उधर, बकरीद के मौके पर बाजारों में भीड रही। नए-नए कपड़े खरीदने के अलावा महिलाओं ने सेवइयां, क्रॉकरी, मेवा, परचून के सामान की खरीददारी की। कुर्बानी के लिए बकरों की बिक्री हुई।
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कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाई जाती है बकरीद
जामा मस्जिद में मौलाना व हरियाणा के चीफ इमाम मोहम्मद असग़र कासमी ने बताया कि इस्लाम धर्म में बकरीद को कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। पैगंबर इब्राहिम से कुर्बानी देने की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहिम अलैय सलाम को कोई संतान नहीं थी। अल्लाह से औलाद की काफी मिन्नतों के बाद इन्हें एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम स्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे। कहते हैं कि एक रात अल्लाह ने इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुबरनी मांगी तो उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए आंखों पर पट्टी बांध दी और तलवार चलाई। जैसे ही पट्टी खोले तो पाया कि बेटा सामने ही खड़ा था उसकी जगह पास खड़े बकरे का धड़ कट गया था। तभी से बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस मौके पर हरियाणा वक्फ बोर्ड के एडमिनिस्ट्रिव ऑफिसर खिजर, इसराहिल, मोहम्मद अजहर व अन्य मौजूद रहे।
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