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भाजपा की तीन सीटों पर फूट से दो गंवाई

जिले की राजनीति में हुई उठापटक में जहां दो सीटों पर भाजपा को जीत मिली वहीं दो सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। कहीं हार तो कहीं जीत की समीक्षा होनी तय है। अब तक के हालातों पर गौर करें तो भाजपा की फूट के चलते जहां मुलाना और नारायणगढ़ सीट गंवानी पड़ी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 Oct 2019 10:27 AM (IST)Updated: Sun, 27 Oct 2019 06:35 AM (IST)
भाजपा की तीन सीटों पर फूट से दो गंवाई
भाजपा की तीन सीटों पर फूट से दो गंवाई

दीपक बहल, अंबाला : जिले की राजनीति में हुई उठापटक में जहां दो सीटों पर भाजपा को जीत मिली, वहीं दो सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। कहीं हार तो कहीं जीत की समीक्षा होनी तय है। अब तक के हालातों पर गौर करें तो भाजपा की फूट के चलते जहां मुलाना और नारायणगढ़ सीट गंवानी पड़ी। वहीं, अंबाला शहर में भाजपा का वोटबैंक सन 2014 की तुलना में गिर गया। महज अंबाला छावनी विधानसभा सीट पर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने मतदाताओं में अपनी पैठ को बरकरार रखा, बिना किसी स्टार प्रचार के वह पिछली बार से भी अधिक वोटों से जीतें हैं। जबकि भाजपा सरकार में जिले की चारों सीटों पर काफी विकास हुआ है, इसके बावजूद दो सीटों कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत ने कई सवाल उठा दिए हैं। छावनी में विज ने बरकरार रखी बढ़त

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अंबाला छावनी विधानसभा से भाजपा के प्रत्याशी अनिल विज ने चुनाव प्रचार में अपने द्वारा कराए गए विकास कार्य को जीत का हथियार बनाया। जनता के बीच रहकर उन्होंने काम किया। रोजाना अपने आवास पर लोगों की शिकायतें सुनीं, जबकि सुबह के समय अपने समर्थकों के साथ छावनी के सदर बाजार चौक पर चाय पीना नहीं छोड़ा। इसी अंदाज ने विज को आम जनता के करीब ला दिया। दूसरी ओर इस सीट पर कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई, जिसका फायदा विज ने भी उठाया। कांग्रेस एकजुट होकर इस सीट पर नहीं लड़ सकी, जिसका उसे नुकसान हुआ। हालांकि इस सीट पर कांग्रेस से बागी आजाद उम्मीदवार चित्रा सरवारा ने टक्कर तो दी, लेकिन फूट का असर देखने को मिला।

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शहर में भाजपा जीती, लेकिन ग्राफ गिर गया

अंबाला शहर विधानसभा में बेशक भाजपा ने सीट तो जीत ली, लेकिन उसका ग्राफ काफी गिर गया। लगातार दूसरी बार असीम गोयल विधायक चुने गए लेकिन इस बार टिकट लेने वालों में खुद जिला अध्यक्ष जगमोहन लाल और प्रदेश प्रवक्ता संजय शर्मा सहित कई टिकट की दावेदारों में शामिल थे। हालांकि, इस सीट पर कांग्रेस फूट के चलते दो धड़ों में बंट गई थी। जबकि इसी सीट से दो बार विधायक बने विनोद शर्मा साइलेंट रहे लेकिन वे मनोहर सरकार की योजनाओं के कसीदें कार्यकर्ताओं की बैठक में कर चुके थे। इसी बीच शर्मा के समर्थक रमेश मल खुलकर असीम गोयल के प्रचार में जुट गए। वहीं दूसरी ओर पूर्व मंत्री चौधरी निर्मल सिंह ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर अपनी मौजूदगी का अच्छा खासा अहसास कराया, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं और वे अपनी जमानत तक जब्त करवा बैठे। इस परिस्थिति में भी भाजपा का ग्राफ 2014 के मुकाबले नीचे गिर गया। हालांकि सीट तो भाजपा के खाते में गई, लेकिन चर्चाओं में फूट होना और दूसरा विकल्प शहर से पूर्व मंत्री चौधरी निर्मल सिंह का चुनाव लड़ना सामने आया है।

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मुलाना में भी भाजपा को हुआ नुकसान

मुलाना विधानसभा की विधायक संतोष चौहान सारवान को पूरा यकीन था कि इस बार भी पार्टी उनको टिकट देगी। इसी को लेकर वे फील्ड में भी रहीं। लेकिन भाजपा ने सारवान का टिकट काटकर राजबीर सिंह बराड़ा को टिकट थमा दिया। इस कारण से सारवान समर्थक नाराज हो गया। इसका फायदा सीधे तौर पर कांग्रेस को मिला। भाजपा ने हालांकि इस डैमेज को कंट्रोल करने का प्रयास तो किया, लेकिन हल्के अंतर से चूक गई। यदि गुटबाजी हावी न होती, तो स्थिति अलग हो सकती थी। यहां पर कांग्रेस ने भाजपा की किलेबंदी में सेंध मार दी और यह सीट अपने खाते में डाल दी।

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नारायणगढ़ में भाजपा की फूट को कांग्रेस ने भुनाया

नारायणगढ़ विधानसभा में भी भाजपा को फूट का नुकसान उठाना पड़ा। यहां से पार्टी ने कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी के करीबी माने जाने वाले सुरेंद्र राणा को मैदान में उतारा। हालांकि नायब सिंह सैनी की पत्नी सुमन सैनी इस सीट पर भाजपा टिकट की दावेदार मानी जा रहीं थीं। यहां पर भाजपा का एक गुट साइंलेंट रहा। शुरुआती दौर में तो सुरेंद्र सैनी ने दमखम तो दिखाया, लेकिन गुटबाजी के कारण धीरे-धीरे लोग भी साइंलेंट हो गए। इसी का फायदा यहां कांग्रेस को मिला और साइलेंट वोट ने कांग्रेस की शैली चौधरी को एकतरफा जीत दिला दी।


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