डेंगू के 71 मामले आए सामने, इंस्टाल नहीं हो पाई ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन
जिला अस्पताल के लिए आई मशीन छावनी पहुंचा दी गई लेकिन इंस्टाल नहीं होने से मरीजों को नहीं पहुंचा फायदा, मशीन रहती तो डेंगू के मरीजों को नहीं करना पड़ता रेफर, बल्ड बैंक की क्षमता बढ़ने से साल 2013 में हुई थी मंजूर
पवन पासी, अंबाला शहर
जिले में अब तक डेंगू के 71 मामले सामने आ चुके हैं। ताज्जुब यह है कि ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन होने के बावजूद मरीजों को प्लेटलेट्स के लिए रेफर किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के पास करीब एक साल से मशीन धूल फांक रही है लेकिन इसे इंस्टाल नहीं किया गया। अलबत्ता जिला अस्पताल के लिए आई इस मशीन को राजनीतिक खींचतान के चलते शहर से स्वास्थ्य मंत्री के गृह क्षेत्र के अस्पताल में रखवा दिया गया है। जबकि शहर अस्पताल में मौजूद ब्लड बैंक की ब्लड यूनिट क्षमता बढ़ जाने के बाद ही इसे मंजूरी मिली थी।
दूसरी तरफ, छावनी अस्पताल में अभी तक ब्लड बैंक की परमिशन तक नहीं आई है। राजनैतिक खींचतान का यह खामियाजा जनता भुगत रही है। मरीजों को प्लेटलेट्स के लिए या तो मेडिकल कॉलेज चंडीगढ़ व पीजीआई जाना पड़ रहा है या फिर निजी अस्पतालों में जेब कटानी पड़ रही है। वहीं, डेंगू सीजन में मरीजों की तादाद को देखते एलाइजा रीडर मशीनें मंगवाने का काम भी सिरे नहीं चढ़ पाया है। जबकि विभाग ने करीब साल भर पहले छावनी, शहर व नारायणगढ़ के लिए चार मशीनें मंगाने का दावा किया था।
डेंगू, एड्स, थैलीसीमिया व आग से झुलसे मरीजों के इलाज में महत्वपूर्ण यह मशीन बल्ड बैंक की क्षमता बढ़ने से साल 2013 में मंजूर हुई थी। करीब 60 लाख रुपये की बल्ड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन का लगभग चार साल तक इंतजार किया गया। मशीन आने के बाद कई महीनों तक इस मशीन का एक हिस्सा पॉलीक्लीनिक व दूसरा जिला अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में महज इस इंतजार में पड़ा रहा कि ट्रामा सेंटर में बनाए जाने वाले इसके कक्ष के लिए जरूरी 18 लाख रुपये के बजट को मंजूरी मिलेगी। अलबत्ता, जिला स्वास्थ्य विभाग से काफी प्रयासों के बावजूद जरूरी बजट को मंजूरी नहीं दी गई और मशीन स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के विधानसभा क्षेत्र स्थित छावनी अस्पताल में पहुंच गई। ऐसे में इस मशीन अब उन मरीजों को भी झटका लगा है जो जानलेवा रोगों में इलाज की उम्मीद कर रहे थे। छावनी जाने के बाद मशीन डेंगू सीजन में इंस्टाल नहीं हो पाई इसकी वजह स्पष्ट थी कि अस्पताल के पास ब्लड बैंक ही नहीं है और जिला अस्पताल में ब्लड बैंक था वहां इंस्टाल नहीं की गई। 5 हजार यूनिट से ज्यादा क्षमता पर मिली थी मशीन
- शहर नागरिक अस्पताल स्थित ब्लड बैंक की क्षमता 5 हजार यूनिट से करीब 7 हजार यूनिट तक पहुंचने पर ही साल 2013 में ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन को लेकर मंजूरी जिला अस्पताल को मिली थी। यह मशीन करीब डेढ़ साल पहले ही जिला अस्पताल पहुंच भी गई थी। हालांकि, वर्तमान ब्लड बैंक में मशीन के लिए पर्याप्त स्थान नहीं होने व ब्लड बैंक की क्षमता निरंतर बढ़ने से इसे ट्रॉमा सेंटर में लगाने का निर्णय लिया गया था। जिसके लिए 18 लाख रुपये का बजट तय कर मंजूरी को भेजा गया था। खून के तत्वों को अलग-अलग करती है मशीन
- ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन खून में शामिल तत्वों को अलग अलग कर देती है। पैथालॉजी विशेषज्ञों के मुताबिक थैलीसीमिया के मरीजों को आरबीसी, डेंगू के मरीजों को प्लेटलेट्स, आग से झुलसे मरीजों को प्लाजमा व एड्स के मरीजों को डब्ल्यूबीसी की जरूरत होती है। यह मशीन रक्त से लाल कणिकाएं (आरबीसी) श्वेत रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी), प्लेटलेट्स, प्लाजमा, फ्रेश फ्रोजन प्लाजमा(एफएफपी) को अलग कर देता है। इन तत्वों को ब्लड सेपरेटर मशीन से अलग करने के बाद पूरी बोतल खून चढ़ाने के बजाय इन तत्वों को चढ़ाया जाता है। ऐसे में इन मरीजों को रेफर करने से बचा जाता। यह मामला मेरे संज्ञान में नहीं है
-इस मामले में सिविल सर्जन डॉ. संत लाल वर्मा ने बताया कि मशीन को जिला अस्पताल से छावनी अस्पताल ले जाए जाने का मामला उनके संज्ञान में नहीं है। इसके बारे में पता किया जाएगा। जहां तक एलाइजा रीडर मशीनों की बात है छावनी में एक मशीन कैथल से मंगवाई गई थी।