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बेटे की चाहत में हो गईं 16 बेटियां

बेटे की चाहत में एक परिवार में अब तक 17 संतानें पैदा हो चुकी हैं, लेकिन अब भी दंपती बेटे की चाहत में एक और संतान के जन्म की तैयारी कर रहा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 06 May 2016 06:35 AM (IST)Updated: Fri, 06 May 2016 06:41 AM (IST)
बेटे की चाहत में हो गईं 16 बेटियां

वडोदरा, दाहोद। ‘हम दो-हमारे दो’ की बात एक सुखी परिवार पर फिट बैठती है, लेकिन यह बात बेटे की चाहत रखने वाले इस दंपती के लिए कोई मायने नहीं रखती। कुछ ऐसा ही मामला दाहोद जिले में सामने आया है, जहां बेटे की चाहत में एक परिवार में अब तक 17 संतानें पैदा हो चुकी हैं, लेकिन अब भी दंपती बेटे की चाहत में एक और संतान के जन्म की तैयारी कर रहा है।

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दाहोद जिले के गरबाडा में रहने वाला किसान परिवार को बेटे की चाहत थी, लेकिन एक के बाद लगातार 14 बेटियों का जन्म हो गया। आखिकार पंद्रहवीं संतान के रूप में बेटे का जन्म हुआ। इस पर भी दंपती एक और बेटा चाहता था, लेकिन फिर एक के बाद एक दो बेटियां और हो गईं। इस तरह बच्चों की संख्या 17 पर जा पहुंचीं। आगामी कुछ दिनों में इनके घर 18वें बच्चे का जन्म भी होने जा रहा है।

दो बेटियों की हो चुकी है मौत
गरबाडा गांव में रहने वाले 35 वर्षीय रामसिंह संगोड पेशे से किसान हैं। लगभग 15 वर्ष की उम्र में ही रामसिंह की कनूबेन से शादी हो गई थी। इस 20 वर्ष के वैवाहिक जीवन में इनके घर 14 बेटियों का जन्म हुआ। वंश आगे बढ़ाने के लिए दंपती बेटा चाहता था। इनमें से दो बेटियों की मौत डेढ़ से दो वर्ष की उम्र के बीच बीमारी के कारण हो चुकी है। गत दिसंबर 2013 में इनके घर बेटे का जन्म हुआ और इसके बाद फिर दो बेटी पैदा हुईं। रामसिंह अब भी एक और बेटा चाहते हैं। इस समय कनूबेन गर्भवती हैं और आगामी कुछ दिनों में एक और संतान को जन्म देने जा रही हैं।

...इसलिए चाहते हैं और एक बेटा
रामसिंह को विश्वास है कि उनका 18वां बच्चा बेटा ही होगा। एक और बेटे के जन्म के बारे में रामसिंह का कहना है कि उनकी दो बेटियों की मौत डेढ़ से दो वर्ष की उम्र के बीच ही हो गई थी। अगर कोई अनहोनी बेटे के साथ हो गई तो उनका वंश आगे कौन बढ़ाएगा। इसीलिए वे एक और बेटा चाहते हैं।

सिर्फ चार बेटियां ही जाती हैं स्कूल
रामसिंह की 16 बेटियां थीं, जिनमें से दो की मौत हो चुकी हैं। वहीं, दो बड़ी बेटियों की शादी हो चुकी है। अब भी परिवार में 12 बेटियां हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। इसके चलते चार बड़ी बेटियां ही स्कूल जाती हैं। स्कूल के बाद वे भी मेहनत-मजदूरी में मां-बाप का हाथ बंटाती हैं।

मजूदरी कर चलाना पड़ रहा है घर
रामसिंह के पास गांव में थोड़ी सी ही जमीन है और वह परिवार के लालन-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। रामसिंह और कनूबेन दोनों ही अनपढ़ हैं। इसलिए उन्हें दिन-रात मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट भरना पड़ रहा है।


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