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150 वर्ष पहले एक साधू से सीखी फर्नीचर कला पहुंची सात समंदर पार

आदिवासी बहुत इलाका छोटा उदेपुर जिले का संखेड़ा अपनी हस्तकला कारीगरी के लिए आज वर्ल्ड फेमस है। इसके बारे में कहा जाता है 150 साल पहले संखेड़ा में एक साधू आए थे, जिसकी खूब सेवा की गई।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 09 May 2016 05:50 AM (IST)Updated: Mon, 09 May 2016 05:54 AM (IST)

वडोदरा। आदिवासी बहुत इलाका छोटा उदेपुर जिले का संखेड़ा अपनी हस्तकला कारीगरी के लिए आज वर्ल्ड फेमस है। इसके बारे में कहा जाता है 150 साल पहले संखेड़ा में एक साधू आए थे, जिसकी खूब सेवा की गई। इससे प्रभावित होकर साधू ने ग्रामीणों को खराद कला सिखाई। इससे आकर्षक फर्नीचर बनाए जा सकते हैं। आज वह कला इतनी फैली कि अब विदेशों में भी इस तरह के फर्नीचर की मांग बढ़ रही है।

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संखेड़ा के खरादी समाज के अध्यक्ष भीखाभाई खरादी के अनुसार 150 साल पहले हम सब लकड़ी का काम करते थे। हमारे समाज की माली हालत बहुत खराब थी। समाज के लोग मुख्य रूप से बढ़ई या भवन निर्माण का काम करते। उसी समय पावागढ़ तरफ से एक महात्मा हमारे गांव आए, ग्रामीणों ने उनकी खूब सेवा की। इससे खुश होकर उन्होंने ग्रामीणों को यह हस्तकला सिखाई। इसमें लाख की वनस्पति और रंग को लकड़ी पर इस तरह से लगाया जाता है, जिससे वह बहुत ही ज्यादा सुंदर दिखाई देने लगती है। एक प्रसाद या फिर वरदान के रूप में मिली यह कला आज बीज से पल्लवित होकर वटवृक्ष के रूप में सामने आ रही है। आज संखेड़ा के फर्नीचर की मांग पूरे देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है।

चीन के राष्ट्रपति भी बैठ चुके हैं संखेड़ा के झूले पर
संखेड़ा के फर्नीचर ने तब लोगों को आकर्षित किया, जब चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग जब भारत यात्रा पर आए थे, उस दौरान अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका स्वागत किया था। इस दौरान साबरमती रिवरफ्रंट पर दोनों की जब बातचीत हुई, तो जिस झूले पर बैठकर दोनों बातें कर रहे थे, वह कलात्मक झूला संखेड़ा के कारखाने में ही बनाया गया था। इस झूले को बनाने वाले नरहरि भाई सुथार आज भी उस झूले को याद करते हुए गर्व का अनुभव करते हैं।

वडोदरा, अहमदाबाद, मुम्बई जैसे महानगरों में भव्य शो रूम
इस कला में लकड़ी पर बहुत ही बारीक काम के साथ उसे आकर्षक रंगों से सजाया जाता है। संखेड़ा के ‘सुथार’ कारीगरों ने इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है। इसलिए उनकी मेहनत रंग ला रही है। आज अहमदाबाद, वड़ोदरा, मुम्बई जैसे महानगरों में इसके कई भव्य शो-रूम हैं। समय के साथ-साथ झूले, कलात्मक सोफे, बेड तथा स्टेंड भी बनाए जाने लगे हैं। संखेड़ा की इस कला को जीवंत रखने और उसे पीढ़ी दर पीढ़ी चलाए रखने के लिए एक कलाकार हिम्मत लाल मोहन लाल खरादी को 1967 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था।

150 परिवारों को रोजी-रोटी
यह लघु उद्योग करीब 150 परिवारों को न केवल रोजी-रोटी, बल्कि सात समुंदर पार भी प्रसिद्धि दिला रही है। पहले जो परिवार इस कला के माध्यम से खिलौने, बेलन, डंडे, झूले आदि बनाते थे, अब वे सोफा सेट, बैड, झूले, स्टेंड आदि भी बना रहे हैं। आज जब आधुनिक तरीके से बनाए जाने वाले फर्नीचरों की भरमार है, ऐसे में संखेड़ा के ये फर्नीचर अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए हैं।

संखेडा के दिनेश भाई की इकाई को 10 अवार्ड
संखेडा के दिनेश भाई खरादी की इकाई को श्रेष्ठतम फर्नीचर के लिए राज्य सरकार की तरफ से 8 और एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल की तरफ से दो अवार्ड मिल चुके हैं। वे बताते हैं कि अब हमारे फर्नीचर यूके, यूएसए, कनाडा के बाद गल्फ देशों और ऑस्ट्रेलिया में भी दिखने लगे हैं। यहां हमारे फर्नीचर की बहुत मांग है। बिना किसी विज्ञापन के हमारी कला का प्रचार हमारे ग्राहक ही कर रहे हैं। हमने भी अब इसे जीवंत रखने के लिए आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इससे हमारा गांव संखेड़ा ही नहीं, बल्कि पूरे गुजरात का नाम रोशन हुआ है।


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