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दुष्कर्म मामले में हाई कोर्ट ने किशोर की सजा को बढ़ाकर किया दस साल

कोर्ट ने कहा कि बच्चों को किसी भी तरह का अपराध करने से पहले सोचना चाहिए कि उनकी एक गलती उनके जीवन का एक दशक बर्बाद कर सकती है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 14 Jun 2018 01:44 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jun 2018 01:44 PM (IST)
दुष्कर्म मामले में हाई कोर्ट ने किशोर की सजा को बढ़ाकर किया दस साल

शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। सौराष्ट्र गुजरात में एक स्कूली छात्रा से दुष्कर्म करने के मामले में हाई कोर्ट ने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन्स फ्रोम सेक्सुअल ऑफेंस पॉस्को के तहत आरोपित की सजा बढ़ाकर 10 साल कर दी। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों से कहा है कि स्कूल कॉलेजों में पढ़ने वाले बच्चों को इस कानून से अवगत कराया जाए। निचली अदालत ने इस प्रकरण में सात साल की सजा दी थी।

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देवभूमि द्वारका के खंभालिया में 22 मार्च, 2014 को एक किशोर 16 साल की स्कूली छात्रा को भगाकर ले गया था। किशोर किशोरी को कई जगह घुमाता रहा। उसने उसके साथ कई बार दुष्कर्म भी किया। पीड़िता के पिता ने किशोर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। सुनवाई के बाद निचली अदालत ने उसे सात साल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह व अल्पेश कोग्जे की बेंच ने इस मामले में सरकार की सजा बढ़ाने की अपील पर सुनवाई की। अतिरिक्त महाधिवक्ता जानी ने अदालत में कहा कि सोशल मीडिया के चलते आजकल बच्चे जल्द संपर्क में आ जाते हैं और गंभीर अपराध कर बैठते हैं। इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

सरकारी वकील मीतेश अमीन ने आरोपित को भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366, 376 के तहत सजा की मांग की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने सजा को 10 साल कर दिया। गुजरात हाई कोर्ट की बेंच ने बच्चों को यौन अपराध से सुरक्षा प्रदान कराने के लिए बनाए गए पॉक्सो एकट को लेकर एक दिशा निर्देश जारी करते हुए केंद्र व राज्य सरकारों से कहा है कि स्कूल, कॉलेज व समाज में बच्चों तक इस बात की जागरूकता फैलाई जानी चाहिए कि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन्स फ्रोम सेक्सुअल ऑफेंस पॉस्को के तहत अवयस्क को भी 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। बच्चों को किसी भी तरह का अपराध करने से पहले सोचना चाहिए कि उनकी एक गलती उनके जीवन का एक दशक बर्बाद कर सकती है।

अदालत ने पुलिस, शिक्षा विभाग व संबंधित संस्थाओं को भी इस पर जागरूकता फैलाने के निर्देश दिए। संबंधित संस्थाओं को निर्देश दिया है कि दसवीं व बारहवीं में पढ़ने वाले बच्चे अनजाने में कानून का उललंघन करते हैं, जिससे उन्हें रोकना चाहिए। पॉक्सो एक्ट की इस जानकारी को प्रचार माध्यमों के जरिए समाज व खासकर बच्चों तक पहुंचाई जानी चाहिए कि छोटे बच्चों को भी सजा का प्रावधान है।


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