अब स्कूबा डाइविंग से करें 80 फीट नीचे दिव्य द्वारका नगरी के अवशेषों के दर्शन
ऐसी मान्यता है कि मेवाड़ से निकलकर मीरा बाई जब यहां पहुंचीं तो श्रीकृष्ण के ध्यान में रहते हुए ही वह यहां उनकी मूर्ति में समा गईं।
शत्रुघ्न शर्मा, द्वारकापुरी। समुद्र में समाई प्राचीन द्वारका नगरी को अब आप समुद्र तल तक जाकर अपनी आंखों से भी देख सकते हैं। इसके लिए थोड़ी मशक्कत जरूर करनी पडे़गी। स्कूबा डाइविंग के छोटे से प्रशिक्षण और हिम्मत जुटाकर समुद्र की गहराइयों में छिपे रहस्य को देखा-समझा जा सकेगा। मानव सभ्यता की इस विकसित स्वर्ण नगरी के समुद्र में समा जाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक कथा कल्कि का अवतार होने से पहले एक सभ्यता का खुद को समाप्त कर लेने का भी है। कई द्वारों से मिलकर बनी द्वारका के तीन भाग समुद्र में समा गए हैं।
एक भाग आज की बेट द्वारका (समुद्र में बने टापू पर स्थित) उसके गवाह के रूप में खड़ी है। ऐसी मान्यता है कि मेवाड़ से निकलकर मीरा बाई जब यहां पहुंचीं तो श्रीकृष्ण के ध्यान में रहते हुए ही वह यहां उनकी मूर्ति में समा गईं। गोमती (गुजरात), कोशावती व चंद्रभागा नदी का संगम यहीं पर है और आसपास समुद्र होने से सब जगह का पानी खारा है, लेकिन यहां बने पांडवों के पांच कुओं का पानी मीठा है।
दिव्य द्वारका नगरी के अवशेषों के दर्शन
स्कूबा डाइविंग ट्रेनर शांतिभाई बंबानिया बताते है, लोगों में समुद्र तल खासकर प्राचीन द्वारका के खंडहरनुमा अवशेषों को देखने का खासा उत्साह और जिज्ञासा होती है। वे पहले स्कूबा डाइविंग का कुछ घंटे प्रशिक्षण देते हैं, जब व्यक्ति पानी के अंदर रहने की हिम्मत और अनुभव जुटा लेता है तो फिर अंडर वाटर यात्रा शुरू होती है। 60 से 80 फीट नीचे जाने के बाद दिव्य द्वारका नगरी के अवशेषों के दर्शन होते हैं। समुद्री शैल के आवरण में लिपटे, लाखों मछलियों की अठखेलियों व क्रीड़ा का स्थल बने ये अवशेष खुद अपनी कहानी बयां करते हैं। यहां विशालकाल प्रतिमाओं के अवशेष, जंगली जानवरों की आकृतियां, कई तरह की कलाकृतियां व विशालकाय द्वार और स्तंभ नजर आते हैं।द्वारका भारत के सात प्राचीन शहरों में से एक है। अन्य छह शहरों में मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांचीपुरम और अयोध्या हैं। द्वारका को ओखा मंडल, गोमतीद्वार, आनर्तक, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारीदुर्ग आदि नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथानकों के अनुसार भगवान कृष्ण ने यहां 36 साल राज किया। यदुवंश के वज्रनाभ द्वारका के अंतिम शासक बने जो कुछ साल राज करने के बाद हस्तिनापुर चले गए। प्राचीन द्वारका पहले एक मिथक और काल्पनिक कथा के रूप में प्रचलित थी। सबसे पहले वायुसेना के पायलटों की इस पर नजर पड़ी। जामनगर के गजट में भी इस नगरी का उल्लेख मिलता है। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ने तट से 20 किमी अंदर सोनार तकनीक से 4000 वर्ग मीटर क्षेत्र में शोध शुरू किया तो लकड़ी, पत्थर, हड्डियों के हजारों साल पुराने अवशेष मिले। सोनार जल के अंदर वस्तुओं को पता करने की ऐसी तकनीक है, जिसमें पराश्रव्य तरंगों का इस्तेमाल होता है। स्कूबा डाइविंग ट्रेनर अत्री मेहता बताते हैं कि सितंबर से अप्रैल माह तक करीब एक हजार लोग समुद्र में गोता लगाने आते हैं। अगले सीजन तक वे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑसिनोग्राफी गोवा से द्वारका प्राचीन मंदिर के सामने की लोकेशन की स्वीकृति लेना चाहेंगे ताकि प्राचीन नगरी के दर्शन करा सकें।
स्कूबा डाइविंग
स्कूबा (सेल्फ कंटेंड अंडरवाटर ब्रीथिंग एपरेटस) पानी के नीचे डाइविंग का एक ऐसा तरीका है जिसमें गोताखोर एक ऐसे उपकरण का इस्तेमाल करता है जिसकी वजह से पानी के अंदर आसानी से सांस लेता रहता है। इसमें एक या एक से अधिक डाइविंग सिलेंडर होते हैं, जिसमें उच्च दबाव पर सांस लेने वाली गैस होती है।
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