उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों के शिकार लोगों की आपबीती, कहा- जंगल में छिपकर बचाई जान
अचानक सैकड़ों की संख्या में नशे में धुत लोग लाठी, तलवार, फरसा आदि लेकर आए और मारपीट करने लगे। वे आंखें बंद कर बस हथियार घुमा रहे थे।
अहमदाबाद,जेएनएन। 28 सितंबर को हम हिम्मतनगर स्थित फैक्टरी में काम कर रहे थे। अचानक सैकड़ों की संख्या में नशे में धुत लोग लाठी, तलवार, फरसा आदि लेकर आए और मारपीट करने लगे। वे आंखें बंद कर बस हथियार घुमा रहे थे। जान बचाने को हम फैक्टरी की चहारदीवारी फांद कर भागे और जाकर जंगल में छिप गए।
बाद में कंपनी के मैनेजर ने जंगल में पुलिस के सहारे खोजा और स्टेशन भिजवाया। वहीं मालिक ने हमें पांच-पांच हजार रुपए देकर घर जाने को कहा।"
यह व्यथा बिहार के सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र के नटवर गोपी तथा नंदपुर व माड़ीपुर गांव के रवींद्र यादव, पप्पू यादव व भीष्म प्रसाद आदि ने सुनाई। दर्जनों युवक साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में 14 महीने की बच्ची से दुष्कर्म के बाद भड़की हिंसा के बाद वहां से गंजी-पैंट में ही भाग आए।
मेहसाणा और अहमदाबाद से भागकर शेखपुरा पहुंचे राहुल कुमार ने बताया कि गुजरात में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ हिंसा सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाई गई। पांच अक्टूबर की रात वह अन्य मजदूर साथियों के साथ खाना खाकर फैक्टरी से कुछ दूरी पर लेबर कॉलोनी में था। तभी लाठी-डंडों से लैस लगभग ढाई दर्जन बदमाशों ने हमला बोल दिया। बुरी तरह पिटाई की। सुबह तक गुजरात छोड़ने की चेतावनी देते हुए वे चले गए।
अहमदाबाद स्टेशन पर टिकट खिड़की पर भी कुछ लोग पूछताछ कर रहे थे कि कहां जा रहे हो पर किसी ने दिल्ली तो किसी ने राजस्थान बताकर जान बचाई। फैक्टरी मालिक ने बचाने का आश्वासन दिया, लेकिन सड़कों पर हालात देख वे लौट आए।
सिवान के कसदेवरा गांव निवासी धनु व सोनू मांझी अब सपने में भी गुजरात नहीं जाने की बात कह रहे हैं। मंगलवार को उनके घर पहुंचने पर सांसद ओमप्रकाश यादव उनसे मिलने पहुंचे। दोनों ने बताया कि जब वे फैक्टरी से काम कर निकले तो सड़कों पर बिहारी मजदूरों को खोज-खोजकर पीटा जा रहा था, जितने मजदूर वहां हैं, सबकी जान आफत में है। स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई मदद नहीं की जा रही है।