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निजी स्कूलों की नहीं चलेगी मनमानी

विधानसभा में पिछले साल गुजरात निजी स्कूल (फीस नियमन) अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत सालाना शुल्क के तीन स्तर बनाए गए थे।

By BabitaEdited By: Published: Thu, 28 Dec 2017 01:21 PM (IST)Updated: Thu, 28 Dec 2017 01:21 PM (IST)
निजी स्कूलों की नहीं चलेगी मनमानी
निजी स्कूलों की नहीं चलेगी मनमानी

अहमदाबाद, जागरण संवाददाता। निजी स्कूलों की मनमानी फीस पर अंकुश लगाने के लिए बनाए गए स्कूल फीस नियमन अधिनियम को संवैधानिक ठहराते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने इसके अमल पर रोक से इन्कार कर दिया है। अदालत ने जनवरी 2018 से इसे लागू करने का भी आदेश दिया है। लंबे समय से स्कूल मालिकों की

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मनमानी के खिलाफ आंदोलन कर रहे अभिभावकों के लिए भी यह राहत की बात है। गुजरात सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह चूडास्मा ने कहा कि इस फैसले का असर पूरे देश में नजर आएगा। 

बुधवार को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और वीएम पंचोली की खंडपीठ ने गुजरात निजी स्कूल (फीस नियमन) अधिनियम को संवैधानिक ठहराया। अदालत ने इसे सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला बताया। उसने कहा कि सरकार राज्य बोर्ड, सीबीएसई और आइसीएसई सहित अन्य बोर्डों के लिए नियम बना सकती है। अदालत ने स्कूल संचालकों की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार उन्हें किसी तरह का अनुदान नहीं देती है। इसलिए स्कूलों की फीस भी तय नहीं कर सकती।

न्यायालय के मुताबिक, निर्धारित फीस से ज्यादा वसूलने वाले स्कूलों को तीन सप्ताह के भीतर फीस नियमन समिति (एफआरसी) के समक्ष गुहार लगानी होगी। तीन सप्ताह के भीतर समिति इस संबंध में निर्णय लेगी। पूरी प्रक्रिया को छह सप्ताह के भीतर पूरा करना होगा।  सरकार के इस कदम का राज्य के 11 हजार स्कूलों पर असर पड़ेगा। इनमें से छह हजार स्कूल संचालक सरकारी पहल का विरोध कर रहे थे।

अदालत के फैसले से दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है। चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता सरकार पर शिक्षा के निजीकरण का आरोप लगा रहे थे। लेकिन सरकार ने जनहित में सही कदम उठाया, जिसका अदालत ने भी समर्थन किया है।

 -नितिन पटेल, उप मुख्यमंत्री गुजरात 

अधिनियम क्या है

विधानसभा में पिछले साल गुजरात निजी स्कूल (फीस नियमन) अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत सालाना शुल्क के तीन स्तर बनाए गए थे। प्राथमिक स्कूलों के लिए 15 हजार, माध्यमिक स्कूलों के लिए 25 हजार और उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के लिए 27 हजार सालाना शुल्क तय किया गया था। इसका उल्लंघन करने पर जुर्माने का प्रावधान भी किया गया। इसके खिलाफ करीब 19 सौ स्कूलों के प्रबंधकों ने 40 से अधिक याचिकाएं दायर की थीं।


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