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Gujarat: सूरत में सीआर पाटिल से मिले अभिनव डेलकर

Gujarat दिवंगत सांसद मोहन डेलकर के पुत्र अभिनव डेलकर ने सूरत में गुजरात भाजपा अध्‍यक्ष सीआर पाटिल से मिलकर केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक प्रफुल्‍ल पटेल को हटाने की मांग की। उधर पूर्व मुख्‍यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने डेलकर परिवार से मिलकर उन्‍हें सांत्‍वना दी।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sun, 07 Mar 2021 09:11 PM (IST)Updated: Sun, 07 Mar 2021 09:30 PM (IST)
सूरत में सीआर पाटिल से मिले अभिनव डेलकर। फाइल फोटो

अहमदाबाद, जागरण संवाददाता। Gujarat: दादरा नगर हवेली के दिवंगत सांसद मोहन डेलकर के पुत्र अभिनव डेलकर ने सूरत में गुजरात भाजपा अध्‍यक्ष सीआर पाटिल से मिलकर केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक प्रफुल्‍ल पटेल को हटाने की मांग की। उधर, पूर्व मुख्‍यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने डेलकर परिवार से मिलकर उन्‍हें सांत्‍वना दी। अभिनव डेलकर ने पत्रकारों को बताया कि उनके पिता दिवंगत मोहन डेलकर काफी संघर्षशील व मजबूत नेता थे। प्रशासन की प्रताड़ना की बात वे बताते थे तथा उनके पत्र से भी यह स्‍पष्‍ट हो चुका है कि प्रशासन उन्‍हें परेशान कर रहा था, लेकिन इस बात की आशंका भी नहीं थी कि वे ऐसा कदम उठा सकते हैं। अभिनव ने गुजरात भाजपा अध्‍यक्ष सीआर पाटिल से मिलकर दीव-दमन तथा दादरा नगर हवेली के प्रशासक प्रफुल्‍ल पटेल को हटाने की मांग की। उनका कहना है कि पटेल अभी भी अपने पद पर हैं, यह हैरत की बात है।

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उधर, गुजरात के पूर्व मुख्‍यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने रविवार को दादरा नगर हवेली पहुंचकर पीड़ित परिवार को सांत्‍वना दी। गत शुक्रवार को आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह ने भी दिवंगत डेलकर के परिजनों से मिलकर उन्‍हें सांत्‍वना दी तथा सांसद डेलकर के खुदकुशी प्रकरण की न्‍यायिक जांच की मांग की थी। उन्‍होंने मांग की थी कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की निगरानी में यह जांच आगे बढ़े, ताकि दोषियों को इसकी सजा मिल सके। सिंह ने कहा कि सूरत के लोगों ने तथा गुजरात के लोगों ने आम आदमी पार्टी के रूप में गुजरात में भाजपा का विकल्प देखा है, इसलिए सूरत महानगर पालिका में उसे विपक्ष की भूमिका दी है। 

58 वर्षीय मोहन डेलकर ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत सिलवासा की फैक्ट्रियों में काम करने वाले जनजातीय समुदाय के लोगों के हक की लड़ाई से की थी। फिर उन्होंने अलग-अलग दलों में रहते हुए अपना राजनीतिक सफर आगे बढ़ाया। 1985 में उन्होंने आदिवासी विकास संगठन बनाया और 1989 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पहली बार संसद में पहुंचे। 1991 व 1996 में वह कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते। लेकिन 1998 में वह भाजपा में आ गए और उसके टिकट पर ही चुनाव भी जीते। 1999 में वह एक बार फिर निर्दलीय व 2004 में भारतीय नवशक्ति पार्टी के टिकट पर चुने गए। 2009 व 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन 2019 में वह एक बार फिर निर्दलीय ही भाजपा उम्मीदवार को हरा कर संसद में पहुंचे। निर्दलीय सांसद रहते हुए ही वह पिछले साल जनतादल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए थे।


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