ये हैं फीफा वर्ल्डकप के दमदार कोच, जो बना सकते हैं अपनी टीम को चैंपियन
फुटबॉल मैच में कोच मैच के दौरान साइड लाइन के पास ही खड़ा रहता है। वही सारी रणनीति तय करता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। एक टीम को चैंपियन बनाने में जितना योगदान एक खिलाड़ी का होता है, उतना ही उस टीम को तैयार करने वाले कोच का भी होता है। हर बार की तरह 2018 फीफा विश्व कप में भी कोचों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। अर्जेंटीना के जॉर्ज सांपोली, ब्राजील के टिटे और जर्मनी के जोकिम लो से लेकर पुर्तगाल के फर्नांडो सांतोस पर अपनी राष्ट्रीय टीम को संवारने की जिम्मेदारी है।
क्रिकेट की अपेक्षा फुटबॉल में कोच की जिम्मेदारी मैच के दौरान बहुत ज्यादा होती है क्योंकि क्रिकेट मैच के दौरान कोच पवेलियन में बैठा होता है और अहम निर्णय कप्तान ही करता है लेकिन फुटबॉल में कोच मैच के दौरान साइड लाइन के पास ही खड़ा रहता है। वही सारी रणनीति तय करता है। टीम चुनने का अधिकार और संयोजन का जिम्मा भी उसी का होता है। फुटबॉल मैच के दौरान आपको कोच साइडलाइन के पास खड़े होकर चिल्लाते हुए नजर आ जाएंगे, तो जानिये फीफा विश्व कप के कुछ चुनिंदा फटबॉल कोच के बारे में ...
दिदिएर डेसचैंप्स
मार्सेली, जुवेंट्स, चेल्सी और वेलेंसिया जैसी क्लबों के अलावा फ्रांस की टीम से खेल चुके दिदिएर डेसचैंप्स फिलहाल राष्ट्रीय टीम की कोचिंग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। फ्रांस के लिए 100 से ज्यादा मुकाबले खेलने वाले डेसचैंप्स 2012 से फ्रांस के कोच की भूमिका में हैं। उनकी कोचिंग में ही फ्रांस ने 2016 के यूरो कप के फाइनल में जगह बनाई थी। उनकी कोचिंग में फ्रांस ने 74 में से 46 मुकाबले जीते हैं।
जोकिम लो
जर्मन टीम के कोच लो को मौजूदा समय के सबसे काबिल और सफल कोच के रूप में जाना जाता है। ब्राजील में इनकी देख-रेख में 2014 में हुए विश्व कप में जर्मनी ने कब्जा जमाया था जबकि 2017 में रूस में हुए कन्फेडरेशन कप में भी उनकी टीम ने खिताबी जीत हासिल की थी। 2004 में सहायक कोच बनने के बाद उन्हें 2006 में जर्मनी का मुख्य कोच बनाया गया। 12 साल की उनकी कोचिंग में जर्मनी ने 160 मुकाबलों में से 106 में जीत हासिल की है जबकि 24 में हार और 30 मुकाबले ड्रॉ रहे हैं। अगर जोकिम इस बार भी जर्मनी को खिताब दिलाने में सफल होते हैं वह विटोरियो पोजो की सफलता को दोहरा लेंगे। इटली के कोच रहे पोजो ही 1934 और 1938 में लगातार दो विश्व कप जीतने वाले इकलौते कोच हैं। उनके अलावा कोई भी यह उपलब्धि हासिल नहीं कर सका। कार्लोस बिलार्डो और फ्रेंज बेकेनबउर इसके करीब आए और अर्जेंटीना व पश्चिमी जर्मनी के लिए दो बार फाइनल में पहुंचे, लेकिन उन्हें एक बार ही जीत मिली। सिर्फ इटली (1934 और 1938) और ब्राजील (1958, 1962) लगातार दो विश्व कप जीतने वाली टीमें रहीं हैं। जोकिम के पास जर्मन टीम के लिए यह सफलता दोहराने का मौका है। जोकिम ने कहा है कि वह नए सिरे से इतिहास रचने के लिए तैयार है।
जुलेन लोपेटेग्यू
पूर्व गोलकीपर जुलेन लोपेटेग्यू को जूनियर से लेकर सीनियर स्तर पर स्पेन की टीम को चिंग देने का अनुभव है। जुलेन को 2016 में स्पेन की राष्ट्रीय टीम का मुख्य कोच बनाया गया था। 2003 में उन्हें स्पेन की अंडर-17 टीम का सहायक कोच बनाया गया, लेकिन वह आगे चलकर स्पेन की अंडर-19 और अंडर-21 टीमों से मुख्य कोच के रूप में जुड़े। उन्होंने इन दोनों टीमों को यूरोपीयन चैंपियन बनने में अहम भूमिका निभाई। अब तक जुलेन की देख-रेख में स्पेन की टीम 18 मुकाबले खेल चुकी है, जिसमें से 13 में उसे जीत और पांच में हार मिली है। जुलेन टीम को 4-2-4 के कांबिनेशन में खिलाना पसंद करते हैं।
जॉर्ज सांपोली
अर्जेंटीना के कोच जॉर्ज सांपोली एक आक्रामक शैली के कोच हैं जिन्होंने 2017 में अर्जेंटीना राष्ट्रीय टीम को कोचिंग देने के लिए सेविया क्लब को छोड़ दिया था। सांपोली चिली के साथ 2012 से लेकर 2016 तक कोच की भूमिका निभा चुके हैं। उस दौरान 2015 में चिली ने उनकी देख-रेख में कोपा अमेरिका कप का खिताब जीता था। बचपन से ही सांपोली को फुटबॉल से बेहद लगाव था और उन्होंने जूनियर स्तर पर खेलना भी शुरू कर दिया था, लेकिन 1979 में 19 साल की उम्र में गंभीर चोट लगने की वजह से उन्होंने फुटबॉल खेलना छोड़ दिया।
एडेनॉर लियोनार्डो बाची उर्फ टीटे
ब्राजील के कोच एडेनॉर लियोनार्डो बाची उर्फ टीटे की सफलता की कहानी बहुत लंबी है। 2016 में ब्राजील से जुड़ने से पहले वह कई शीर्ष क्लबों को सफलता के शिखर पर पहुंचा चुके थे। टीटे को उनके तीखे तेवर के लिए जाना जाता है। उनकी देख-रेख में ब्राजील ने विश्व कप क्वालीफाइंग मुकाबलों में लगातार सात जीत हासिल कीं और विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली टीम बनी। टीटे की कोचिंग में ब्राजील ने 19 मैचों में 15 जीत हासिल कीं, जबकि एक में उसे हार मिली है। टीटे ने 1978 में कासियस क्लब के साथ पेशेवर फुटबॉल में कदम रखा और फिर कई दूसरे क्लबों से भी खेले। 27 साल की उम्र में घुटने की चोट की वजह से उन्हें बतौर खिलाड़ी फुटबॉल को अलविदा कहना पड़ा। 1990 में उन्होंने कोच के रूप में फुटबॉल में अपनी नई भूमिका की शुरुआत की।
फर्नांडो सांतोस
2014 में पुर्तगाल के कोच बनाए जाने से पहले फर्नांडो सांतोस चार साल तक ग्रीस को अपनी सेवाएं दे चुके थे। सांतोस की देख-रेख में पुर्तगाल 2016 का यूरो चैंपियन बना था। अपनी कोचिंग के दौरान 48 मुकाबलों में से 32 में पुर्तगाल को जीतते देखने वाले सांतोस ने विश्व कप क्वालीफाइंग के 10 में से नौ मुकाबले जीते थे। वह पुर्तगाल के बिग-थ्री क्लबों का प्रबंधन देख चुके हैं। सांतोस इलेक्ट्रिकल और टेलीकम्युनिकेशन में इंजीनिर्यंरग की डिग्री हासिल कर चुके हैं।
गेरेथ साउथगेट
इंग्लैंड के लिए 57 मुकाबले खेलने वाले पूर्व डिफेंडर गेरेथ साउथगेट 2016 से राष्ट्रीय कोच की भूमिका निभा रहे हैं। 2013 से लेकर 2016 तक उन्होंने इंग्लैंड की अंडर-19 टीम को कोचिंग दी थी और फिर सीनियर टीम के मुख्य कोच बने। उनकी कोचिंग में इंग्लैंड ने खेले 16 में से आठ मुकाबले जीते हैं, जबकि दो में उसे हार मिली है और छह मुकाबले ड्रॉ रहे हैं। साउथगेट 4-4-2 के कांबिनेशन में टीम को खिलाना पसंद करते हैं।