अब सचिन, धौनी और विराट की लोकप्रियता को टक्कर देंगे ये खिलाड़ी
भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है। क्रिकेटरों के नाम बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़े रहते हैं। लेकिन अब इस खेल के खिलाड़ी भी युवाओं के आदर्श होंगे।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है। क्रिकेटरों के नाम बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़े रहते हैं। भारतीय खिलाड़ियों ही नहीं दुनियाभर के खिलाड़ियों के रिकॉर्ड लोगों को कंठस्थ होते हैं। क्रिकेट के तीन विश्वकप जीत चुके भारत में अब पहली बार फुटबॉल का अंडर 17 विश्वकप खेला जा रहा है।
क्रिकेट के देश में फुटबॉल के सपनों को कितने पंख लगेंगे यह तो आने वाले दिन ही बताएंगे। यहां हम आपको बता दें कि क्रिकेट में टीम इंडिया वनडे रैंकिंग ने चोटी पर है। टेस्ट में भी 'विराट' सेना अव्वल है। टी 20 में टीम इंडिया 5वें पायदान पर है। ये सब तो आप भी जानते ही हैं। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि फीफा रैंकिंग में भारत की रैंकिंग क्या है? जानते हैं तो बहुत अच्छी बात है। नहीं भी जानते तो कोई बात नहीं आप अल्पसंख्यक नहीं हैं। देश में ज्यादातर लोग भारत की फीफा रैंकिंग के बारे में नहीं जानते हैं। बता दें कि इस समय भारत की पुरुष टीम फीफा रैंकिंग में 107वें स्थान पर है।
अंडर-17 वर्ल्ड कप से उम्मीदें
भारत को फीफा अंडर 17 वर्ल्ड कप की मेजबानी मिली और इसीलिए भारत को इसमें खेलने का मौका भी मिल रहा है। जूनियर खिलाड़ियों के इस खेल में अगर भारत की उभरती प्रतिभाओं ने अच्छा प्रदर्शन करके दिखाया तो यह भारत ही नहीं समूचे उपमहाद्वीप में फुटबॉल के लिए अच्छे दिनों की शुरुआत हो सकती है। भारत को लीग स्टेज में अपने तीन मुकाबले यूएसए, कोलंबिया और घाना से खेलने हैं। उम्मीद है कि भारतीय टीम इन तीनों को अच्छी टक्कर देगी। Jagran.Com से खास बातचीत करते हुए खेल कमेंटेटर और वरिष्ठ खेल स्तंभकार मनोज जोशी ने कहा, 'हम अपनी टीम से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं न पालें, लेकिन अगर टीम अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में भी कामयाब हो जाती है तो यह बड़ी बात होगी।'
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वर्ल्ड कप बदल देगा माहौल
उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत में आयोजित हो रहा अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप भारत ही नहीं उपमहाद्वीप में फुटबॉल के लिए माहौल बदलकर रख देगा। हम यह उम्मीद इसलिए भी कर सकते हैं, क्योंकि क्रिकेट ने ऐसा ही करके दिखाया है। 1983 में कप्तान कपिल देव की टीम ने क्रिकेट विश्वकप अपने नाम किया था और उसके बाद इस खेल ने देश में धर्म की सूरत अख्तियार कर ली। 1987 में भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट विश्वकप खेला गया और 1992 विश्व कप में पाकिस्तान व 1996 वर्ल्ड कप में श्रीलंका क्रिकेट का सिरमौर बना। इसके बाद भी 2007 में टीम इंडिया ने पहला टी20 विश्वकप और 2011 में दूसरी बार वनडे क्रिकेट विश्वकप जीतकर क्रिकेट को जबरदस्त फायदा पहुंचाया। अब भारत में पहली बार फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप खेला जा रहा है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि यह भविष्य में मिलने वाली ढेरों सफलताओं की तरफ उठाया गया नन्हा कदम होगा। इस मामले में मनोज जोशी ने Jagran.Com से खास बातचीत में बताया 1983 में जब भारत ने क्रिकेट का वर्ल्डकप जीता था उस समय इस खेल में भी भारत की स्थिति कमोबेश आज के फुटबॉल जैसी ही थी। लेकिन उस विश्वकप जीत ने इस खेल को भारत में स्थापित कर दिया।
फुटबॉल में भी मिलेंगे सचिन, धौनी, विराट जैसे आदर्श
भारतीय क्रिकेट में कपिल देव और सुनील गावस्कर से लेकर सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, जहीर खान, महेंद्र सिंह धौनी और विराट कोहली तक कई आदर्श हैं। इन खिलाड़ियों ने पिछले कुछ सालों में क्रिकेट की दुनिया पर राज किया है। यह खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट का चेहरा हैं। लेकिन फुटबॉल में टीम इंडिया के कुछ चेहरों के बारे में पूछा जाए तो वायचुंग भूटिया और सुनील छेत्री के अलावा शायद ही कोई तीसरा नाम आपको और हमें याद आता हो। मनोज जोशी भी मानते हैं कि अंडर-17 फीफा वर्ल्डकप से साथ भारत ने फुटबॉल के लिए जो नन्हा कदम उठाया है यह भविष्य में ऐसे कई सितारे पैदा करेगा, जो फुटबॉल की दुनिया के चमकते सितारे होंगे। वह मानते हैं कि जितने बड़े-बड़े रोल मॉडल क्रिकेट में भारत के पास हैं उतने फुटबॉल में नहीं हैं। यह भी एक कारण है कि बच्चों का रुझान फुटबॉल की तरफ नहीं है।
सुधर रहा है भारत में फुटबॉल का भविष्य
साल 1993 में जब फीफा रैंकिंग शुरू हुई थी उस समय फुटबॉल खेलने वाले देशों में भारत की रैंकिंग 100 थी। लेकिन उसके बाद भारत रैंकिंग में लगातार फिसलता रहा है। इसके बाद के कुछ साल भारतीय फुटबॉल के लिए अच्छे नहीं रहे, लेकिन साल 1999 में भारत की रैंकिंग में सुधार हुआ और टीम 106 वें स्थान पर पहुंच गई। 21वीं सदी में भारतीय फुटबॉल ने दुर्दशा ही देखी है। साल 2006 में भारत की रैंकिंग 157, साल 2012 में 166, साल 2014 में 171 थी। पिछले तीन सालों में भारतीय फुटबॉल परिदृश्य में सुधार दिखा है। 2016 में भारत की रैंकिंग 135 थी। हालांकि इसी साल जुलाई-अगस्त में टीम इंडिया 96-97 रैंकिंग तक भी पहुंची थी, लेकिन फिलहाल टीम 107 वें नंबर पर है। सुधार की रफ्तार ऐसी ही रही तो जल्द ही क्रिकेट के देश में बच्चे फुटबॉलर बनने के भी सपने देखने लगेंगे।
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कुछ राज्यों तक सिमटी फुटबॉल की दुनिया
वरिष्ठ खेल स्तंभकार मनोज जोशी बताते हैं 'भारत में फुटबॉल की दुनिया सिर्फ कुछ राज्यों तक ही सिमट कर रह गई है। गोवा, पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में फुटबॉल के लिए माहौल है। उत्तर भारत में फुटबॉल के प्रति लोग उदासीन हैं, यही कारण है कि कुछ ही राज्यों से देश के तमाम फुटबॉल खिलाड़ी निकलते हैं।' बता दें कि फीफा अंडर-17 के लिए मौजूदा भारतीय टीम में 8 खिलाड़ी मणिपुर से हैं, जबकि कुल 10 खिलाड़ी उत्तर-पूर्व से हैं।
लीग आने से भारतीय फुटबॉल के अच्छे दिन आए
मनोज जोशी बताते हैं कि 1990 के दशक में भारतीय फुटबॉल की हालत अच्छी थी। उस दौरान कई बड़े खिलाड़ी थे। उस समय वायचुंग भूटिया और आईएम विजयन का नाम काफी लिया जाता था। उन्होंने बताया कि आई-लीग, आईएसएल जैसी फ्रेंचाइजी फुटबॉल लीग शुरू होने से जहां एक ओर देश में फुटबॉल के लिए जागरुकता बढ़ी है वहीं इस भारतीय खिलाड़ियों को पहचान व खेल का स्तर भी सुधरा है।
पिछले तीन साल में आया बदलाव
भारत में पहली बार जूनियर लेवल से ही फुटबॉल खिलाड़ियों पर काम किया गया है। तमाम तरह के टूर्नामेंटों से 55 जूनियर खिलाड़ियों की पहचान की गई। उन 55 खिलाड़ियों को अच्छा एक्सपोजर देना शुरू किया। पिछले दो साल में इन खिलाड़ियों ने 18 देशों का दौरा किया और 100 से ज्यादा मैच खेले, जिनमें कई राष्ट्रीय टीमों के साथ हुए मुकाबले भी शामिल हैं। यह सभी अंडर 17 खिलाड़ी हैं। मनोज जोशी ने Jagran.Com से बात करते हुए बताया कि उन्होंने भारतीय फुटबॉल में इतनी योजनाबद्ध तरीके से ट्रेनिंग होते नहीं देखा है। वह कहते हैं कि कई सीनियर खिलाड़ियों को कई सालों तक खेलने के बावजूद भी जो एक्सपोजर नहीं मिलता वह इन्हें 14 साल की उम्र में ही मिलना शुरू हो गया था।
कैसे बदलें फुटबॉल के हालात
देश में फुटबॉल के हालात सुधारने के लिए जरूरी यह है कि इस खेल में क्रिकेट की तरह ही स्टार हों, आइकन हों। बच्चों में इस खेल के प्रति आकर्षण हो। जहां एक क्रिकेटर डॉमेस्टिक खेलकर भी सालभर में लखपति बन जाता है वहीं फुटबॉल में खिलाड़ियों को उतना पैसा नहीं मिलता है। फुटबॉल में हालात सुधारने के लिए जिस पहली चीज की जरूरत है वह यह कि यहां जॉब व करियर की श्योरिटी हो। अगर पैसा और करियर की गारंटी होगी तो युवा इस खेल की तरफ भी आकर्षित होंगे।
उपमहाद्वीप में पिछड़ा फुटबॉल
एशियाई महाद्वीप में इरान-25, जापान-40, दक्षिण कोरिया-51 और चीन-62 जैसे ही कुछ देश हैं जो फुटबॉल में आगे दिखते हैं। खासतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में तो फुटबॉल की स्थित दोयम दर्जे की ही है। भारत जहां 107वें नंबर पर है, वहीं अफगानिस्तान-158, नेपाल-175, बांग्लादेश-196, श्रीलंका-198 और पाकिस्तान 200वें नंबर पर है। मनोज जोशी कहते हैं कि यह उपमहाद्वीप की समस्या है, क्योंकि उपमहाद्वीप में फुटबॉल के विकास की तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया है। उपमहाद्वीप के तमाम देश अन्य खेलों की तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं, जैसे भारत और बांग्लादेश क्रिकेट को तवज्जो देते हैं तो श्रीलंका ट्रैक ईवेंट (एथलेटिक्स) और पाकिस्तान स्क्वास में अच्छा कर रहा है। फुटबॉल उपमहाद्वीप के देशों की प्राथमिकता में है ही नहीं।
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