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फीफा विश्व कप 2018: फ्रांस ने दिखाया गजब का अनुशासन

1966 के बाद पहली बार विश्व कप फाइनल में छह गोल हुए हैं, जो शानदार था।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 07:17 PM (IST)Updated: Tue, 17 Jul 2018 07:20 AM (IST)
फीफा विश्व कप 2018: फ्रांस ने दिखाया गजब का अनुशासन

डिएगो मेराडोना का कॉलम

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किसी ने भी ऐसे विश्व कप फाइनल की कल्पना नहीं की होगी। इन दिनों नॉकआउट मैचों में इतने गोल देखने को कम ही मिलते हैं। 1966 के बाद पहली बार विश्व कप फाइनल में छह गोल हुए हैं, जो शानदार है। बेहतर टीम ने खिताब पर कब्जा किया। क्रोएशिया ने भी हार मानने से पहले अच्छा संघर्ष किया।

फ्रांस की रणनीति को लेकर काफी आलोचनाएं हो रही हैं। कहा जा रहा है कि दम होने के बावजूद टीम पूरी क्षमता से नहीं खेल पा रही है। हालांकि समय आने पर दिदिएर डेसचैंप्स के लड़कों ने सावधानी और आक्रामकता के बीच गजब का संतुलन दिखाया। दबाव में उनके अटैक ने शानदार प्रदर्शन किया। ऐसा लगा कि मानो उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ फाइनल के लिए बचाकर रखा हुआ था। हाफ टाइम के बाद फटाफट दो गोल काफी खतरनाक थे। इससे न सिर्फ फ्रांस को तीन गोल की बढ़त मिली, साथ ही उन्होंने क्रोएशिया को संदेश दे दिया कि उनका सामना ऐसी विपक्षी टीम से है, जो डिफेंस के साथ हमला करने में भी सक्षम है।

विवादित पेनाल्टी के बाद 1-2 से पीछे होने के बावजूद क्रोएशिया मैच में बना हुआ था। अर्जेंटीना के रेफरी ने फैसला लेने से पहले वीएआर के जरिये समीक्षा की। इसके बावजूद भी इवान पेरिसिक के शानदार गोल की बदौलत लुका मॉड्रिक एंड कंपनी दबदबा बनाने की कोशिश में जुटी रही मगर जोश में वे ब्रेक के दौरान के खतरे को भूल गए। फ्रांस सही समय का इंतजार कर रहा था। पॉल पोग्बा और एमबापे की स्ट्राइक ने पूरा मुकाबला ही खत्म कर दिया जबकि दूसरे हाफ में काफी समय बचा हुआ था। क्रोएशिया को भाग्य से मिले दूसरे गोल से चीजें नहीं बदलीं।

विश्व कप फाइनल में पहुंचने वाली सबसे छोटी टीम क्रोएशिया के खिलाडि़यों और प्रशंसकों के साथ मेरी संवेदनाएं हैं। पूरे टूर्नामेंट के दौरान उनके हार नहीं मानने का जज्बा फाइनल में भी दिखा। पिछड़ने के बावजूद बराबरी हासिल करने के बाद पेनल्टी ने उनका काम खराब कर दिया। इसके बाद मजबूत फ्रांस ने उन्हें काफी पीछे छोड़ दिया। इसके बावजूद कोच जाट्को डालिक और उनके खिलाडि़यों की संघर्ष की क्षमता और इच्छाशक्ति की तारीफ की जानी चाहिए। उनके इस प्रदर्शन से आने वाली पीढि़यां प्रेरित होंगी। मैं डेसचैंप्स को बधाई देता हूं। बेकेनबॉउर के बाद वह दूसरे व्यक्ति हो गए हैं, जिन्होंने कप्तान और कोच के तौर विश्व कप ट्रॉफी उठा सके हैं।

सिर्फ 39 फीसद कब्जे के बावजूद 4-2 से जीत दर्ज करने के लिए बहुत ज्यादा रणनीतिक अनुशासन की जरूरत है। इस टीम ने पिछले चार हफ्ते में ऐसा ही अनुशासन दिखाया। उनकी रुचि गेंद पर कब्जे से ज्यादा मैच पर अपनी पकड़ बनाने और अपनी रणनीति को सही ढंग से लागू करने में थी। शुरुआत में ज्यादा आक्रामक नहीं होने के लिए उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी, लेकिन समय आने पर उन्होंने आक्रामक रुख भी अपनाया।

पोग्बा और एन गोलो कांटे डिफेंसिव मिडफील्डर के रूप में मजबूत थे। ग्रीजमैन और एमबापे के फॉरवर्ड में होने का फ्रांस को फायदा मिला। 19 साल की उम्र के लिहाज से एमबापे में बहुत ज्यादा प्रतिभा है और विश्व कप फाइनल में गोल करने से उनका आत्मविश्र्वास काफी बढ़ेगा। कोच और क्लबों द्वारा उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो वह एक महान फुटबॉलर बन सकते हैं। उन्हें अपनी क्लास दिखाने का मौका मिला और उन्हें टीम की ओर से भी अच्छा समर्थन मिला है। इसकी वजह से फ्रांस चैंपियन बना। उन्होंने ऐसा सिस्टम तैयार किया, जिससे मौजूदा स्त्रोतों से हर विभाग में मजबूत टीम तैयार की जा सकी।


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