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फीफा ने भारतीय फुटबॉल का किया अपमान : पीके

भारतीय फुटबॉलर प्रदीप कुमार (पीके) बनर्जी ने फुटबॉल की सर्वोच्च संस्था फीफा पर भारतीय फुटबॉल का अपमान करने का आरोप लगाया।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sat, 21 Oct 2017 07:05 PM (IST)Updated: Sun, 22 Oct 2017 10:07 AM (IST)
फीफा ने भारतीय फुटबॉल का किया अपमान : पीके

कोलकाता। किंवदंती भारतीय फुटबॉलर प्रदीप कुमार (पीके) बनर्जी ने फुटबॉल की सर्वोच्च संस्था फीफा पर भारतीय फुटबॉल का अपमान करने का आरोप लगाते हुए नई दिल्ली में गत छह अक्टूबर को अंडर-17 विश्वकप के उद्घाटन मैच के दौरान देश के कई पूर्व दिग्गज फुटबॉलरों को सम्मानित नहीं करने पर क्षोभ जताया है।

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उद्घाटन मैच के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिर्फ पीके बनर्जी, बाइचुंग भूटिया, आइएम विजयन, सुनील छेत्री, भास्कर गांगुली और बेमबेम देवी को सम्मानित किया था। पीके ने शनिवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'क्रिकेट में हम स्टार खिलाडिय़ों को जानते हैं, लेकिन फुटबॉलरों को जान-बूझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। अगर ऐसा ही रवैया रहा तो फुटबॉल की लोकप्रियता कैसे बढ़ेगी? भारतीय फुटबॉल समुदाय की आस्था के लिए ये एक बड़ी क्षति है।

पीके ने फीफा की स्थानीय आयोजन कमेटी को आगामी 28 अक्टूबर को कोलकाता के विवेकानंद युवाभारती क्रीड़ांगन में होने वाले विश्वकप के ग्रैंड फिनाले के दौरान अपने भाई प्रसून बनर्जी, श्याम थापा, अरुण घोष, सुभाष भौमिक, मुहम्मद हबीब और सुधीर कर्मकार जैसे पूर्व दिग्गज फुटबॉलरों को सम्मानित कर गलती सुधारने का सुझाव दिया है। पीके ने कहा, 'मैं प्रसून का नाम सिर्फ इसलिए नहीं ले रहा क्योंकि वह मेरा भाई है। वह एशिया के शीर्ष फुटबॉलरों में से एक रहा है और देश की संसद में प्रवेश करने वाला पहला फुटबॉलर है। अगर प्रसून जैसे उल्लेखनीय शख्स को नजरंदाज किया जा सकता है तो दूसरों के बारे में आप सोच सकते हैं। अगली पीढ़ी के पास भारतीय फुटबॉल के लिए अपना जीवन न्योछावर के लिए क्या प्रोत्साहन बचेगा? मैं ये सिर्फ बंगाल या भारत के परिप्रेक्ष्य में नहीं कह रहा बल्कि फुटबॉल खेलने वाले समस्त युवा समुदाय के लिए कह रहा हूं।

पीके ने ग्रैंड फिनाले के टिकट आवंटन को लेकर फीफा की स्थानीय आयोजन कमेटी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, 'ये शर्मनाक है कि स्थानीय आयोजन कमेटी पूर्व फुटबॉल दिग्गजों को लॉटरी सिस्टम के आधार पर टिकट बांट रही है। नि:संदेह आम लोग ग्रैंड फिनाले देखने के हकदार हैं, लेकिन किसी को भी अतीत और उन फुटबॉलरों के योगदान को नहीं भूलना चाहिए।

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