सतरंगी उत्सव के सजीले बोल
प्यार की पिचकारी, अपनों से होने वाले हर गिले-शिकवे का दहन। बुरा न मानो की सीना जोरी और गालियों की मीठी बौछार भी। इसी उत्सव का नाम है होली। समग्रता का अहसास लिए हुए एक ऐसी उदात्त परंपरा है यह, जो आपको जीवन से जोड़ती है। थके-हारे मन को झकझोरते
प्यार की पिचकारी, अपनों से होने वाले हर गिले-शिकवे का दहन। बुरा न मानो की सीना जोरी और गालियों की मीठी बौछार भी। इसी उत्सव का नाम है होली। समग्रता का अहसास लिए हुए एक ऐसी उदात्त परंपरा है यह, जो आपको जीवन से जोड़ती है। थके-हारे मन को झकझोरते हुए कहती है जियो जी-भर के..
मन के भावों की तरह कई रंग घुले हुए हैं इस महोत्सव में, पर जब रंग मिल जाएं तो एक ही रंग बनता है समरसता का। आइए मन की हर दीवार गिरा दें, गिले-शिकवे भुलाकर अपनों को डुबो दें इस खास रंग में।' कहती हैं जयपुर की निष्ठा। यह सच है कि मन करे और उस अनुसार माहौल न मिले तो होली का असली रंग कहीं खोने लगता है। मशीनी जिंदगी में ज्यादातर यही हो रहा है। अब जबकि होली दस्तक दे चुकी है हम समझें रंगों के इस उत्सव की अहमियत। न भूलें कि अपने और औरों का दुख-दर्द बांटकर, टूटती-बिखरती संवेदनाओं को सजाकर आनंद और उल्लास जगाकर यह उत्सव मिलाता है खुद को खुद से...।
रंग जाएंगे तो जानेंगे
'एक दौर था जब मोहक रंगों की फुहारों से मन भी भीग जाते थे। उन यादों को रिप्लेस करना मुश्किल है।' दिल्ली की मधु अपने बचपन का जिक्र करते हुए यह कहना नहीं भूलतीं कि उत्सव से दूर होकर हम जिंदगी से दूर हो रहे हैं। वह कहती हैं, बचपन की होली किसे याद नहीं जिसमें एक टोली बनाकर हम लोगों को रंगने निकल पड़ते थे। धीरे-धीरे छोटी टोली विशाल टोली में तब्दील हो जाती थी। मधु कहती हैं, 'वे दिन नहीं न सही, पर त्योहार और उसका प्रभाव आज भी वही है।Ó
हरा रंग चढ़ जाएगा
सोशल वर्क में स्टडी कर रही हैं निष्ठा। उन्हें उन लोगों से कोफ्त होती है, जो होली न खेलने का बहाना कर पानी बचाने या स्किन खराब होने जैसी बातों को बनाते हैं। उनके मुताबिक, एक दिन के लिए यदि हम इन बातों को भूल जाएं तो होली को सही मायनों में एंजॉय कर सकेंगे। निष्ठा कहती हैं, 'पानी बचाने की बात अपनी जगह सही है। जिनकी त्वचा संवेदनशील है वे होली पर थोड़ा परहेज करें यह भी मान सकती हूं मैं, पर केवल इन बातों के लिए आप होली को भला-बुरा कहें तो यह मुझे हजम नहीं होता। सच तो यह है कि यदि आपका मन बोझिल हो तो आपके पास ढेरों बहाने होते हैं अपनी बात को सही ठहराने के। एक बार होली खेल लें तो यही मन हरा हो जाएगा। रंगों की कीमत जान जाएंगे आप।Ó वास्तव में अच्छी आदतें तो और भी दिन डाली जा सकती हैं। एक ही दिन के लिए क्यों इसका रोना रोया जाए। यदि आपकी आदत में शुमार है पानी की बचत करना तो आप होली के दिन भी इसका ख्याल जरूर रखेंगे। एक दौर में कीचड़ से खेलना इसलिए तो अच्छा लगता था कि भीतर के सारे गुबार निकल जाएं और बाहर जो आपके कपड़े और देह पर कीचड़ लगा है उसमें भी आनंद ढूंढ़ लें। अब तो कीचड़ से बचते हैं लोग, धूल-मिट्टी से कितने लोग खेलते हैं होली, पर कुछ भी हो जाए, अजब इफेक्ट है इस उत्सव का।
मैजिक है इस मस्ती में
भागदौड़ भरी जिंदगी की वजह से ही मन कितना भी मलिन हो जाए होली का प्रभाव कुछ ऐसा है कि मन की सारी दीवारें ढहने लगती हैं। कानपुर की श्रुति कहती हैं, 'संयुक्त परिवार में रहते हुए मैंने जाना है कि उत्सव का वास्तविक अर्थ क्या होता है। होली का त्योहार पूरे परिवार को प्रेम के रंग में रंग देता है। जितने भी मनमुटाव हों वे दूर होने लगते हैं। मैं तो उन्हें रंग लगाती हूं, जो रंगों से दूर भागते हैं। खूबसूरत बात यह है कि रंग लगते ही वे इसके जादू के प्रभाव में खुद चले आते हैं।Ó श्रुति के मुताबिक, भाभियों और चचेरे भाई-बहनों के साथ रंग खेलना अच्छा लगता है। जिन्हें सूखे रंगों से खेलना पसंद है उनके साथ जबरदस्ती नहीं करती, पर जो सूखे रंगों से भी नाक-भौं सिकोड़ते हैं, उन्हें रंगने का मजा कुछ और है। इसका कारण एक ही है इससे वे बाहर से भले चिढ़ जाएं, लेकिन मन ही मन खुश होते हैं। मन को खुश करना यही तो इस त्योहार का संदेश है।
दहन कर दो दुश्मनी
योगा एक्सपर्ट गरिमा सेतिया कहती हैं हर उत्सव अपने मूल स्वरूप से बाहर निकलने लगा है, क्योंकि हमने सोच बदल ली है। बस बढिय़ा खाना, पार्टी और धूम-धमाल करने से हम नहीं जान पाएंगे कि होली का मतलब क्या है? इसके लिए जरूरी है कि हम पारंपरिक रूप से इसे मनाएं। गरिमा कहती हैं, 'यह भी नहीं कि हम एक दिन के लिए लोगों से प्यार से मिलें और बाकी दिनों में दूरी बना लें। औपचारिकताओं से दूर जब हम वास्तव में होली मनाएंगे तभी इसका असली मतलब समझ पाएंगे।Ó भारतीय संस्कृति में त्योहारों का उद्देश्य यही है। समरसता के रंग को समझें और उसे जीवन में उतार लें। गरिमा के मुताबिक, यूथ उम्मीद जगाते हैं वे इसे परंपराओं की तरह नहीं ढोते, जीते हैं होली को। मैंने देखा है केवल होली के दिन ही नहीं, आम दिनों में भी वे आपसी दुश्मनी को दहन करना जानते हैं।
जगा लें एक नई उम्मीद
विजया भारती, लोक गायिका
यह पर्व अपने आप में इतना अनोखा है कि इससे दूर नहीं हो सकते आप। होली से दूर भागने की वजह एक ही है कि अक्सर रंगने के नाम पर दुश्मनी निकालते हैं लोग। बुरे अनुभव का ही असर है कि होली जैसा त्योहार कुछ लोगों को अब फीका लगने लगा है। मैं तो कलाप्रेमियों के बीच रहती हूं। इस दौरान एक अजब सा माहौल होता है। मैं शो आदि के सिलसिले में कहीं बाहर भी होती हूं तो इस अवसर को मिस नहीं करती। रात में ही सही अपने घर में बैठकर देर रात तक चलता है यह कार्यक्रम। थक-चूर होकर भी मन का उत्साह जाता नहीं। होली का प्रभाव इतना खूबसूरत है कि इंसान कितना भी अंदर से थका हो उसका मन तरंगित होने लगता है।
सीमा झा