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जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा

भगवान जगन्नाथ सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के अवतार हैं। संपूर्ण जगत के पालनकर्ता होने की वजह से ही उन्हें जगन्नाथ कहा जाता है। श्रीकृष्ण का यह रूप पूरे भारत में पूजनीय है। उड़ीसा स्थित जगन्नाथपुरी इनका पावन धाम है। धार्मिक दृष्टि से इस स्थान का इतना महत्व है कि इसे प्रमुख चार धामों में से एक माना गया है।

By Edited By: Published: Tue, 02 Jul 2013 12:52 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2013 12:52 PM (IST)
जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा

भगवान जगन्नाथ सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के अवतार हैं। संपूर्ण जगत के पालनकर्ता होने की वजह से ही उन्हें जगन्नाथ कहा जाता है। श्रीकृष्ण का यह रूप पूरे भारत में पूजनीय है। उड़ीसा स्थित जगन्नाथपुरी इनका पावन धाम है। धार्मिक दृष्टि से इस स्थान का इतना महत्व है कि इसे प्रमुख चार धामों में से एक माना गया है।

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अनूठी रथ यात्रा

जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा विश्वप्रसिद्ध है। इस संबंध में यह किंवदंती प्रचलित है कि एक बार द्वारका मे सुभद्रा जी ने नगर देखने की इच्छा व्यक्त की, तब अपनी प्रिय बहन को नगर भ्रमण करवाने के उदं्देश्य से श्रीकृष्ण और बलराम जी अपने-अपने रथों पर बैठकर निकल पड़े। इसी घटना की स्मृति में प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन रथ यात्रा-महोत्सव का आयोजन होता है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर से भाई श्रीबलराम तथा बहन सुभद्रा जी के साथ निकलकर अलग-अलग रथों पर बैठकर गुंडीचा मंदिर जाते हैं, जहां उनके श्रीविग्रह की रचना हुई थी। रथ यात्रा महोत्सव की अवधि में नौ दिन भगवान जगन्नाथ अपने प्रिय भाई-बहन के साथ यहीं विराजते हैं। मंदिर से भगवान जगन्नाथ, श्रीबलराम और सुभद्रा जी को उनके रथों पर बैठाकर संत और भक्त जन झूम-झूमकर उनकी जय-जयकार करते हुए रथों के रस्से खींचते हुए चलते हैं। इस वर्ष यह त्योहार 21 जून को मनाया जाएगा।

दर्शन का माहात्म्य

रथ पर विराजमान भगवान जगन्नाथ के दर्शन का बड़ा माहात्म्य है। पुराणों में लिखा है कि इस यात्रा के दर्शन का सौभाग्य भी भगवद्कृपा से ही प्राप्त होता है। जो भक्त रथारूढ़ श्रीजगन्नाथ के दर्शन करता है, वह मोह-माया के सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर भगवान के निज धाम में प्रवेश का अधिकारी बन जाता है। भगवान जगन्नाथ के नाम का संकीर्तन करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। उनकी रथ यात्रा में भाग लेने वाले का जीवन धन्य हो जाता है। भक्तगण बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ भगवान का रथ खींचते हैं। मार्ग में दोनों तरफ खड़े श्रद्धालु पुष्प वर्षा और आरती करके रथ यात्रा कर रहे अपने आराध्यदेव का स्वागत और पूजन करते हैं।

आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन रथों की वापसी होती है तथा आषाढ़ शुक्ल एकादशी को रथों पर विराजमान सभी विग्रहों का श्रंृंगार सोने के आभूषणों से किया जाता है। द्वादशी के दिन विशेष पूजा-अर्चना के बाद मंदिर में श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी का पुन:प्रवेश होता है।

श्रीजगन्नाथ संपूर्ण जगत के पालक हैं। इसीलिए उनकी शरण में आकर भक्त पूर्णत: निर्भय हो जाता है।

जागरण सखी

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