वेब समीक्षा: लस्ट स्टोरीज़ है मानसिकता का मायाजाल
लस्ट स्टोरीज़ चार छोटी-छोटी लघु फिल्में हैं जिनका निर्देशन अनुराग कश्यप, ज़ोया अख्तर, दिबाकर बेनर्जी और करण जौहर ने किया है।
- राहुल सोनी
- कलाकार : राधिका आप्टे, विक्की कौशल, भूमि पेडनेकर, मनीषा कोइराला, संजय कपूर, कियारा आडवाणी व अन्य
- निर्देशक : अनुराग कश्यप, ज़ोया अख्तर, दिबाकर बनर्जी, करण जौहर
- रेटिंग - 2.5/5 स्टार
जैसा की वेब सीरीज़ को नाम 'लस्ट स्टोरीज़' दिया गया है वैसा ही इसकी कहानियों का विषय भी है। लस्ट मतलब वासना होता है। इस वेब सीरिज़ में चार कहानियों का फिल्मांकन किया गया है जो महिलाओं पर ज्यादा केंद्रित लगती हैं। खास तौर पर उनकी कामना और इच्छाओं को लेकर। हर कहानी में इच्छा, दीवानगी और अधूरेपन को दर्शाया गया है। दरअसल, लस्ट स्टोरीज़ चार छोटी-छोटी लघु फिल्में हैं जिनका निर्देशन अनुराग कश्यप, ज़ोया अख्तर, दिबाकर बेनर्जी और करण जौहर ने किया है।
कहानियां कही न कही मेट्रो लाइफ की असल कहानियों से कड़ी जोड़ती हैं। सही-गलत और नैतिक-अनैतिक किसके लिए क्या सही है, यह इन चारों कहानियों में बखूबी देखा जा सकता है। ऐसा कहा जा सकता है कि, हर इंसान की अपने जीवन में प्राथमिकताएं अलग-अलग होती हैं। ऐसे में आप क्या करना चाह रहे हैं और क्या नहीं, इसका निर्णय खुद ही करना होता है, चाहे फिर वो सही हो या गलत। कहानियां संस्कारी बिल्कुल भी नहीं हैं इसलिए इन्हें परिवार के साथ देखना ठीक नहीं होगा।
इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर संस्कारों को रखा ताक पर
इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज़ होने के कारण सेंसर बोर्ड का दखल नहीं है इसलिए भारतीय संस्कारों को ताक पर रखा गया है। खुलेपन से सभी बातों को रखा गया है और दिखाया गया है।
फिल्मांकन में बदलाव
समय जैसे-जैसे बीतता जा रहा है कहानियों को कहने का तरीका और माध्यम बदला है। माध्यम तो वेब सीरीज़ है जो कि आज का उभरता माध्यम बन चुका है। वही कहानी कहने के तरीके की बात करें तो इसमें बोल्डनेस जरूर आई है। इस वेब सीरिज में विचारों को लेकर भी खुलापन है। फिलहाल वेब सीरीज़ पर कोई लगाम नहीं है तो इसमें बोल्डनेस है और कुछ सीन बोल्ड हैं। इसमें अधेड़ उम्र वाली मनीष कोइराला में बिकिनी भी पहनती हैं।
पहली स्टोरी - टीचर और स्टूडेंट के बीच रिलेशनशिप
शुरूआत करते हैं पहली कहानी से है जो कि एक टीचर कालिंदी (राधिका आप्टे) और स्टूडेंट तेजस (आकाशठोसर ) के रिश्ते को लेकर है। इस कहानी की सूत्रधार खुद राधिका बनती हैं और वे अपने बारे में समय-समय पर बताती हैं। राधिका कालिंदी की जिंदगी में घटित हो रही घटनाओं के बारे में बताती हैं और इसलिए राधिका के लंबे-लंबे मोनोलॉग हैं। कालिंदी के अपने पति के साथ कैसे रिश्ते हैं इसका कोई खास जिक्र नहीं है लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की पूरी आजादी है। इस आजादी का वह फायदा उठाकर अपने स्टूडेंट के साथ यौन संबंध बनाती हैं। लेकिन इसके बाद एक तरफ डर जाती है कि स्टूडेंट इमोशनल न हो जाए और दूसरी तरफ आश्चर्य होता है कि स्टूडेंट को प्यार क्यों नहीं हुआ। इस कारण कालिंदी खुद उस स्टूडेंट की पर्सनल लाइफ के बारे में जानने की कोशिश करती है। इसके साथ कोशिश होती है कि अपने वजूद, इमेज और ईमान को बचाने की। परफॉर्मेंस की बात करें तो राधिका मझी हुई कलाकार हैं और उनकी एक्टिंग जबरदस्त थी। उनके मोनोलॉग आपको बांधे रखने के लिए हैं। निर्देशन करने वाले अनुराग कश्यप अपनी बात को अलग तरीके से कहने में सफल दिखाई देते हैं क्योंकि कहानी को बेहतरीन अंदाज में पेश किया गया है। अनुराग वैसे भी कहानी को अलग ढंग से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने एक बार फिर यहां वो कर दिखाया है।
दूसरी स्टोरी - घर मालिक और कामवाली
एक घर के मालिक अजित (नील भूपालम) और काम वाली बाई सुधा (भूमि पेडणेकर) के बीच के रिश्ते की है जिसका कोई नाम नहीं है। लेकिन जब अजित का परिवार घर आता है और उसकी शादी की बात करता है तो सुधा मायूस हो जाती है। इस मायूसी में कही न कही अजित के लिए उसका प्यार झलकता है। पूरी फिल्म में सुधा के ज्यादा संवाद नहीं हैं। वो सिर्फ काम करती है नज़र आती है। सुधा पूरी ईमानदारी से घर का काम करती है और उसके काम को देखकर लगता है कि वो उसे अपना घर मानती हो। अजित की शादी की खबर से उसका भरोसा नहीं बल्कि भ्रम टूटता है। क्योंकि वो सपने बुनने लगती है। इसके बाद वो बिना रोए, बिना आवाज किए चली जाती है। परफॉर्मेंस लेवल पर बात की जाए तो भूमि बॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं और फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय से बेहतरीन छाप छोड़ी है। इस किरदार में भी उनका फिल्मी अनुभव साफ झलक रहा है। ज़ोया अख्तर का निर्देशन सटीक और कमाल का है। सरल कहानी को बड़ी सहजता के साथ दिखाया है जिसमें किसी भी प्रकार का कोई दिखावा नहीं है। कुछ भी अलग से दिखाने की कोशिश नहीं की गई है।
तीसरी स्टोरी - दो दोस्त और वो
तीसरी कहानी एक पति-पत्नी और दोस्त की है। पति-पत्नी के बीच ईगो के कारण दोनों के बीच खड़ी दीवार में अचानक पत्नी को उसके पति के खास दोस्त का सहारा मिल जाता है। रीना सुकून महसूस करती है और इसलिए रीना (मनीषा कोईराला) और सुधीर (जयदीप अहलावत ) एक बीच हाउस पर साथ होते हैं। बिस्तर पर अंतरंग भी हैं। पति सलमान (संजय कपूर) से रीना की बातचीत होती है लेकिन फिलहाल वो हर बार की तरह पति से गुस्सा है और इस कारण सुधीर के पास है। रीना और सुधीर कॉलेज के समय के दोस्त हैं। खुशी की तलाश में रीना को सुधीर के साथ सुकून मिलता है। लेकिन आखिर में पति के आने पर दोनों सब बताने का प्यान बनाते हैं लेकिन असमंजस में ऐसा कुछ नहीं होता। एक तरफ सुधीर को अपने जिगरी दोस्त के सामने शर्मिंदा होने का डर सताता है तो दूसरी तरफ रीना से दूर होने का। लेकिन किसी को कुछ नहीं बताया जाता और सब अपनी-अपनी जिंदगी में लौट जाते हैं। दिबाकर बेनर्जी के निर्देशन में इस कहानी को कहा गया है। दिबाकर का निर्देशन सटीक लगता है और वे अपनी बात कह पाते हैं।
पति-पत्नी परिवार और इच्छाएं
चौथी कहानी में औरतों के आत्मसंतुष्टि से जुड़ी है। एक लड़की है (कियारा आडवाणी) जो स्कूल में पढ़ाती है। उसकी शादी होती है। शादी के बाद पति उसे उस प्रकार संतुष्ट नहीं कर पाता जिस प्रकार एक महिला चाहती है। दिन पर दिन गुजरते हैं, लेकिन स्थिति वही रहती है। इस लड़की के कॉलेज में एक तलाकशुदा औरत है, जो लाइब्रेरी में स्वतः संतुष्ट होती है। ऐसा करते हुए वह लड़की देख लेती है। इसलिए वह भी यही तरीका अपनाने की कोशिश घर पर करती है लेकिन हालात कुछ ऐसे हो जाते हैं कि सबकुछ परिवार सदस्यों के सामने हो जाता है। संस्कारी सास बहू को मायके भेज देती है। लेकिन पति एक महीने बाद उसे वापस लेने जाता है। करण जौहर के निर्देशन में इस कहानी को कहा गया है जिसमें आज के मेट्रो लाइफ के विचारों के साथ संस्कारी विचार भी नज़र आते हैं। उन्होंने लड़की और उसकी सास की अलग-अलग भावनाओं और प्राथमिकताओं को दर्शाया है।