Exclusive Interview: 'द फैमिली मैन 2' की कामयाबी पर बोले मनोज बाजपेयी- 'अभी जो हो रहा है, ऐतिहासिक है!'
मेरे जीवन में यह दो या तीन बार हुआ। एक सत्या दूसरा गैंग्स ऑफ़ वासेपुर और तीसरा यह फैमिली मैन। इसके लिए कोई तैयारी नहीं थी कि ऐसा होने वाला है। दर्शकों और ऊपर वाले का धन्यवाद कर रहा हूं।
नई दिल्ली [मनोज वशिष्ठ]। 3 जून की रात अमेज़न प्राइम वीडियो पर वेब सीरीज़ द फैमिली मैन के दूसरे सीज़न के आते ही दर्शकों ने इसे हाथों-हाथ लिया। पिछले कुछ वक़्त में ऐसा बहुत कम हुआ है कि किसी चर्चित वेब सीरीज़ के दूसरे सीज़न को दर्शकों ने इतना प्यार दिया हो। आम तौर पर दूसरे सीज़न निराश करते रहे हैं।
ज़ाहिर है कि इस कामयाबी से द फैमिली मैन की पूरी फैमिली बेहद ख़ुश है। सीरीज़ में श्रीकांत तिवारी का किरदार निभाने वाले बहुआयामी कलाकार मनोज बाजपेयी ख़ुद इस कामयाबी ख़ुश और हैरान, दोनों हैं। जागरण डॉट कॉम के साथ 'एक्सक्लूसिव बातचीत' में मनोज ने अपने किरदार, सह-कलाकार सीमा बिस्वास और सामंथा अक्कीनेनी, तीसरे सीज़न को लेकर दिल से और दिलचस्प बातें साझा कीं।
इस सफलता का सबसे बड़ा टेक-अवे आपके लिए क्या है?
यह प्रतिक्रिया इसलिए मिल रही है, क्योंकि दर्शकों का चुनाव बड़ा अप्रत्याशित होता है। पता नहीं होता कि किस चरित्र, किस कहानी से उनका वास्ता बहुत गहरा बैठेगा। हमने तो यह सोचा था कि पहले सीज़न की तरह या उससे 10 फ़ीसदी से कम भी रिस्पॉन्स आये तो हम सेकंड सीज़न का जो श्राप होता है, उसे पार कर जाएंगे, लेकिन अभी जो हो रहा है, मेरे ख़्याल से यह ऐतिहासिक है और इसकी कल्पना कोई एक्टर या फ़िल्ममेकर कभी नहीं कर सकता।
मेरे जीवन में यह दो या तीन बार हुआ। एक सत्या, दूसरा गैंग्स ऑफ़ वासेपुर और तीसरा यह फैमिली मैन। इसके लिए कोई तैयारी नहीं थी कि ऐसा होने वाला है। दर्शकों और ऊपर वाले का धन्यवाद कर रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि हर फ़िल्म (वेब सीरीज़) के साथ यह सम्भव नहीं है। हर काम के साथ सम्भव नहीं है।
श्रीकांत तिवारी के किरदार का नई जेनरेशन से कनेक्शन को कैसे देखते हैं?
एक नया फैन बेस बना है, मनोज जी। एक नया दर्शक वर्ग मेरे लिया बना है। उस दर्शक वर्ग का मेरे काम से साबका नहीं पड़ा था या वो मेरे काम से परिचित नहीं था। और जो नया प्रशंसक बना है, वो 15 साल, 16 साल, 13 साल, 14 साल, इस तरह का दर्शक वर्ग बना है, क्योंकि मेरे जितने भी काम हैं, वो ज़्यादातर वयस्क लोगों के लिए रहे हैं। कभी इस उम्र के लोग मेरे साथ जुड़े नहीं। वो जो युवा वर्ग है, वो आज मेरा काम देख रहा है, फिर लोगों के बताने पर मेरा पिछला काम देख रहा है। तब उसका परिचय मनोज बाजपेयी के साथ हो पा रहा है। यह बहुत दिलचस्प बात मेरे जीवन में घर रही है।
श्रीकांत तिवारी के किरदार में कई रंग नज़र आते हैं। इस किरदार को निभाने में मनोज बाजपेयी का अंश कितना है?
मनोज बाजपेयी का अंश किसी भी किरदार में ढूंढ पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल काम है। चूंकि मैं कर रहा हूं तो थोड़ा-बहुत तो मिलेगा। दुनिया का कोई एक्टर इतना नहीं कर सकता कि बिल्कुल अलग चेहरा लेकर आ जाए, लेकिन श्रीकांत तिवारी को हमने डायरेक्टर के साथ बैठकर बनाया था सीज़न वन करने से पहले।
उसकी एक बैक स्टोरी है। वो कहां से आता है? कौन है? कितना पढ़ा-लिखा है? क्या करना चाहता है? वो कॉलेज में क्या था? उसके भाई के साथ संबंध कैसे हैं? उसकी मां के साथ संबंध कैसे हैं? उसके सास-ससुर के साथ संबंध कैसे हैं? उसका प्रेम सुचि के साथ कैसे हुआ? कब मिले थे? यह सारी घटनाएं हमारे दिमाग़ में हैं। उसकी सोच कैसी है? देश को लेकर उसकी सोच कैसी है? वो सब कुछ हम साथ में लेकर चलते हैं। जब आप इस तरह से काम करना शुरू करते हैं, तो एक व्यक्ति का निर्माण कर रहे होते हैं, जो अभिनेता से दीगर होता है।
भीखू म्हात्रे हो या सरदार ख़ान... आपके किरदार काफ़ी इंटेंस रहे हैं। इन किरदारों ने बतौर अभिनेता आपको कितना निचोड़ा है?
जिस तरह की भूमिकाएं मैं करता रहा हूं, अगर आप उनकी लिस्ट उठाकर देखेंगे तो मैं कहूंगा कि नब्बे प्रतिशत चरित्रों ने मुझे निचोड़ा है। वो एक चुनौती रही है। उस चुनौती के साथ मैं काम करता हूं। जो कैरेक्टर निचोड़ने की चुनौती देंगे, मैं उन्हीं कैरेक्टर्स को करना चाहूंगा, क्योंकि मुझे हमेशा लगता रहा है कि मैं एक्टर किस काम का, अगर अलग-अलग तरह की भूमिकाएं ना कर पाऊं। अपनी शैली और अपनी तकनीक बदल नहीं पाऊं। नई-नई तकनीक ना सीखूं और अपने दर्शकों को कुछ नया नहीं दे पाऊं। एक चुनौती रही है, अपने को उस तरफ़ लेकर जाने की। इसलिए, एक कैरेक्टर को दूसरे कैरेक्टर में ढूंढना बड़ा मुश्किल काम होता है।
सोशल मीडिया में आपकी एक तस्वीर सर्कुलेट हो रही, जिसमें एक तरफ़ फूलन देवी के साथ मान सिंह हैं और दूसरी तरफ़ पीएम बसु के साथ श्रीकांत तिवारी हैं। यह तस्वीर एक तरह से आपके करियर का सारांश है...
(ज़ोर से हंसते हुए) अब देखिए, सीमा बिस्वास जैसी अदाकारा। एक समय में हम दोनों दिल्ली रंगमंच पर व्यस्त थे। काफ़ी काम कर रहे थे और दोनों का ही चयन हुआ था श्री शेखर कपूर जी की फ़िल्म (बैंडिट क्वीन) में काम करने के लिए। वहां से जर्नी शुरू होकर 26 साल हो गये और वापस हम एक सीन, एक फ्रेम में आये, जहां सीमा पीएम बसु बनी हैं और मैं श्रीकांत तिवारी।
On the different sides of law:#25YearsChallenge by Seema Biswas and @BajpayeeManoj. pic.twitter.com/RE3AcdJrGk— CinemaRare (@CinemaRareIN) June 7, 2021
यह अपने-आप में बड़ा अजीब सा माहौल था, जब हम दोनों साथ में काम कर रहे थे। सीमा कम बोलती हैं। अगर आप सीमा से बात करने जाएंगे तो सीमा कम बोलती हैं और जब बोलती हैं तो दो ही शब्द बोलती हैं। उससे ज़्यादा बात नहीं करतीं, लेकिन वो फोटो देखने के बाद ऐसा लगा, जैसे मेरे सामने से पूरा फ्लैशबैक चला गया हो। ऐसा ही कुछ महसूस हुआ।
वेब सीरीज़ मनोरंजन का अपेक्षाकृत नया माध्यम है। वेब सीरीज़ और सिनेमा... इन दोनों माध्यमों में आपको कौन-सा माध्यम अधिक सहज लगता है और काम करने में मज़ा आता है?
अभिनय जहां करना होता है, वहां मज़ा आता है। पिछले दिनों रंगमंच के कुछ साथियों के साथ मिलकर रंगमंच का कुछ काम शुरू किया था, लेकिन हो नहीं पाया। मज़ा, मुझे वहां भी आ रहा था। अभिनेता हूं, अभिनय करने में मज़ा आता है।
अभिनय के नये आयाम को तलाशने में बड़ा मज़ा आता है। पर ये जो शोज़ हैं, यह बड़ा कठिन काम है साहब! मतलब यह काम चलता ही जाता है, कभी ख़त्म होता ही नहीं है और जब आपको लगता है, शूटिंग हो चुकी है। तब भी काम चलता रहता है।
यह उस लिहाज़ से मुश्किल है कि एक किरदार को आपको लम्बे समय तक जीना पड़ता है और फिर सेकंड सीज़न बनाया तो फिर उसी किरदार को ज़िंदा करना। वापस सेकंड सीज़न के लिए ख़ुद को उसी मन:स्थिति में लेकर जाना और वापस उन सारे एलिमेंट्स को लेकर आना, उसी बॉडी लैंग्वेज को, अभिनय के उसी पक्ष को लेकर आना, सहज काम नहीं रहा है। आप फ़िल्मों में काम करते हैं तो 30-40 दिन, ज़्यादा से ज़्यादा 50 दिनों में खाली हो जाते हैं। (हंसते हुए) यहां आप चीखते-चिल्लाते रहते हो कि मुझे ब्रेक दे दो, लेकिन जल्दी मिलता नहीं है।
सामंथा अक्कीनेनी के अभिनय और एक्शन की काफ़ी तारीफ़ हो रही है। कुछ जगह तो वो श्रीकांत तिवारी की टीम पर भारी पड़ती नज़र आयीं। उनके अभिनय को लेकर आप क्या कहना चाहेंगे?
बहुत कमाल की एक्टर हैं। जिस तरह से पूरे तन-मन के साथ काम किया उन्होंने। जिस तरह तैयारी की उन्होंने। अब तो उनके मार्शल आर्ट्स ट्रेनिंग का वीडियो भी आ रहा है। उसके अलावा उन्होंने जो तमिल बोली है, वो बिल्कुल अलग तरह की है। उसके बाद उस ट्रेनिंग को करना।
उस मानसिक ज़ोन में जाना। वो बड़ा कठिन काम होता है और जिस तरह से सामंथा ने अपने काम को अंजाम दिया है, वो कमाल है। मैं तो चाहता हूं कि लोग ज़्यादा से ज़्यादा से बात करें सामंथा के बारे में, क्योंकि सामंथा ने ना सिर्फ़ अच्छा काम किया है, बल्कि सीज़न 2 को एक नया आयाम दिया है। तो बात क्यों ना की जाए।
एक अभिनेत्री इस तरह का काम करती है, फिजिकल चैलेंज लेती है और उसमें वो खरा उतरती है। हमें उनके काम को सेलिब्रेट करना चाहिए। ना सिर्फ़ एक अभिनेत्री के तौर पर, बल्कि एक स्त्री के तौर पर भी। आप चाहे स्त्री हों या पुरुष हों, आप किसी के काम को कम नहीं आंक सकते हो।
तीसरे सीज़न की मांग तेज़ हो रही है। कितना इंतज़ार करना होगा?
देखिए साहब... लोग बात कर रहे हैं तीसरे सीज़न की। यह बातचीत अमेज़न (प्राइम) और राज एंड डीके (क्रिएटर्स) के बीच पहले होनी है। फिर राज एंड डीके अपने राइटर्स के साथ बैठकर, जो कहानी उन्होंने सोची हुई है, उसे स्क्रिप्ट में तब्दील करेंगे।
स्क्रिप्ट में तब्दील होने के बाद फिर उन्हें एक्टरों से बात करनी है। फिर एक्टरों की डेट्स लेनी हैं। फिर टेक्नीशियंस की डेट लेनी हैं। यह बड़ा लम्बा-चौड़ा काम होता है साहब। डेढ़ साल से पहले सोचिए भी मत कि कुछ आप लोगों के सामने आ पाएगा।
मैं समझ रहा हूं कि लोगों ने पहले घंटे में देखना शुरू किया और ख़त्म कर दिया और अब दोबारा भी देख रहे हैं। ज़ाहिर बात है, मैं उनके उत्साह को समझ रहा हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद, लेकिन एक शो बनाना ऐसा है, जैसे तीन फ़िल्में बनाना।
अब आप नेटफ्लिक्स की सीरीज़ रे में ग़ज़ल गायक के किरदार में दिख रहे हैं। उसके बारे में कुछ बताना चाहेंगे?
ज़्यादा कुछ बताने के लिए मना है, बस इतना कहना चाहूंगा कि सत्यजीत रे साहब की कहानी है। बड़े कमाल की कहानी है वो। उनकी बहुत पॉपुलर कहानी है। मैंने भी बहुत पहले पढ़ी थी। अभिषेक चौबे (निर्देशक) और उनके राइटर ने जिस तरह से अनुवाद किया है, जिस दुनिया में उसे ढाला है, वो काबिले-तारीफ़ है।
वो एक दुनिया ऐसी है, वो एक किरदार ऐसा है, जो मैंने कभी नहीं किया था। वहां पर जाकर मैंने सिर्फ़ सीखा है। अभिनेता के तौर पर मैं सीखकर बाहर आया हूं। वो एक घंटे का काम करने में हमें 12-14 दिन लगे, लेकिन वो 12 दिन मेरे लिए वर्कशॉप की तरह थे, मैं कुछ नया सीखकर आया।
कुछ नये तरीक़े से चीज़ों को कर रहा था। एक अलग दुनिया का किरदार था। आशा करता हूं, वो जो सारी मेहनत है, वो जो सारी कोशिश है। वो दर्शकों तक पहुंचेगी। उस कहानी का नाम है 'हंगामा है क्यों बरपा'। उसे देखिए ज़रूर और जब आप सब लोगों की प्रशंसा कर रहे होंगे तो मेरे बारे में भी लिखिए ज़रूर।