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Rashmi Rocket Interview: 'मीडिया में मशहूर कर दे, हर वकील को ऐसे केस का इंतज़ार रहता है'- अभिषेक बनर्जी

Abhishek Banerjee Interview अभिषेक बनर्जी के करियर में बतौर एक्टर पहला बड़ा मुकाम स्त्री के रूप में आया। 2020 में आयी अमेज़न प्राइम की वेब सीरीज़ पाताल लोक में भाव-शून्य हथौड़ा त्यागी के किरदार में उनकी अदाकारी का दर्शकों ने एक नया आयाम देखा।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Mon, 11 Oct 2021 09:52 PM (IST)Updated: Wed, 13 Oct 2021 10:05 AM (IST)
Abhishek Banerjee plays lawyer in Rashmi Rocket. Photo- Instagram

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। अभिषेक बनर्जी ने पिछले कुछ सालों में अपनी अदाकारी से काफ़ी प्रभावित किया है। नायक के साथ सहायक भूमिकाओं में भी अभिषेक अलग ही चमकते हैं। फ़िल्मों और वेब सीरीज़ में कास्टिंग डायरेक्टर की ज़िम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ अदाकारी का हुनर दिखाते रहे अभिषेक बनर्जी के करियर में बतौर एक्टर पहला बड़ा मुकाम स्त्री के रूप में आया। इसके बाद अभिषेक लगातार सहायक किरदारों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा रहे हैं। 2020 में आयी अमेज़न प्राइम की वेब सीरीज़ पाताल लोक में भाव-शून्य हथौड़ा त्यागी के किरदार में उनकी अदाकारी का दर्शकों ने एक नया आयाम देखा।

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इस साल अभिषेक अजीब दास्तांस, हेलमेट और अनकही कहानियां जैसी फ़िल्मों में अपनी अदाकारी का दमख़म दिखा चुके हैं और अब 15 अक्टूबर को ज़ी5 पर रिलीज़ हो रही रश्मि रॉकेट में एक बिल्कुल ऐसे किरदार में नज़र आएंगे, जो उनके लिए बिल्कुल नया है। फ़िल्म में अभिषेक, तापसी पन्नू और प्रियांशु पेन्युली के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करेंगे। रश्मि रॉकेट में वकील बने अभिषेक ने जागरण डॉट कॉम के साथ अपने किरदार की तैयारियों और अहमियत पर विस्तार से बात की। 

'पहली बार पढ़ा-लिखा किरदार निभा रहा हूं'

यह पूछने पर कि वो पहली बार एक वकील का कोट पहने हुए किसी फ़िल्म में नज़र आएंगे, अभिषेक तपाक से मुस्कुराते हुए कहते हैं- ''पहली बार पढ़ा-लिखा किरदार निभा रहा हूं। सबसे एक्साइटिंग यही था कि एक डिग्री वाला कैरेक्टर करने को मिल रहा है। लॉयर एक ऐसा किरदार है, जो थिएटर, नाटकों या अदाकारी के पटल की बात करें तो बड़ा अहम किरदार बन जाता है। उस कहानी में कोई भी सामाजिक समस्या चल रही हो तो सिस्टम से लड़ने के लिए वकील ही आता है।

 

 

 

 

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हर एक्टर के अंदर एक लालसा होती है कि कभी ना कभी हमें भी इस तरह का किरदार निभाने को मिलेगा, जिसमें कलाकारी की इतनी सारी बारिकियां होती हैं, क्योंकि लॉयर के कैरेक्टर में परफॉर्मेंस बहुत ज़रूरी है। वो जो लाइंस बोलता है, वो बहुत अहम है। देखा जाए तो 'प्ले एक्टिंग' इस पेशे में पहले से ही है। रियल और रील के उसी संतुलन को ढूंढना मेरे लिए बहुत दिलचस्प था। मैंने फ़िल्म देखी नहीं है, लेकिन करने में मुझे बहुत मज़ा आया। मुझे इस किरदार के लिए लोगों की प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार है।

‘कैरेक्टर के ज़रिए निकलती है सिस्टम से नाराज़गी की भड़ास’

इस किरदार के लिए तैयारियों पर अभिषेक कहते हैं- ''मेरे घर में कोई कलाकार नहीं है। पापा सीआईएसएफ (CISF) में थे तो मैं लगभग फौज वाली बैकग्राउंड में ही पैदा हुआ और पला-बढ़ा। दूर-दूर तक कोई रिश्तेदार वकालत के पेशे से नहीं जुड़ा है। कोई आइडिया नहीं था, कैसे करूंगा। मैंने कुछ केसों के वीडियो देखने की कोशिश की, लेकिन उससे मुझे कुछ समझ में नहीं आया। कुछ तो बहुत ज़्यादा बोरिंग थे, क्योंकि बहुत जानकारीपरक थे। वैसे वहां भी बहुत फ़िल्मीनेस है। फिर मैंने कुछ दोस्तों से बात की। उनसे बात करते-करते उन्हें ऑब्जर्ब करने लगा। वो लोग कैसे हैं? उनकी सोच कैसी है? उनकी सोच हमेशा लॉ में चल रही होती है। पीनल कोड… अच्छा यह केस है तो यह धारा लग जाएगी। वो जिस केस में होते हैं, उसमें इतना खो जाते हैं कि फिर वो उनकी ज़िंदगी बन जाता है।

 

 

 

 

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मैंने फ़िल्म में उसी चीज़ को हासिल करने की कोशिश की है। इस केस के बाद क्या होगा, यह नहीं पता, लेकिन अभी इशित (अभिषेक का किरदार) की ज़िंदगी में रश्मि का केस सबसे इम्पॉर्टेंट है। वो यंग ल़ॉयर है। फ्रेश लॉयर है। हम भी अभी भारत की युवा पीढ़ी हैं। हमारे अंदर भी बहुत-सी ऐसी चीजें हैं, जो बोलना चाहते हैं, सिस्टम से लड़ना चहते हैं। वो जो भड़ास होती है, वो कहीं ना कहीं कैरेक्टर के ज़रिए निकाल दी जाती है।''

'हर वकील को एक फेमस करने वाले केस का इंतज़ार रहता है'

अभिषेक के किरदार को आख़िर रश्मि का केस कैसे मिलता है? इस पर अभिषेक कहते हैं- ''यह बहुत दिलचस्प बात है कि कोई केस तब तक केस नहीं बनता, जब तक क्लाइंट (मुवक्किल) याचिका दायर नहीं करता या केस दायर नहीं करता। जैसे एक्टर्स अलग-अलग स्क्रिप्ट्स ढूंढते रहते हैं, वैसे ही वकील भी दिलचस्प केस/घटनाएं ढूंढते रहते हैं। कभी-कभी इसलिए भी होता है कि शायद मीडिया में कवरेज मिले। हर वकील की यह निरंतर खोज चलती रहती है कि कोई ऐसा केस आ जाए, जो मीडिया में फेमस कर दे। उसी तरह इशित को रश्मि का केस मिलता है।

 

 

 

 

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एक ऐसे बेतुके नियम से, जो बहुत पुराने टाइम में बनाया गया था, एक स्पोर्ट्समैन की ज़िंदगी में क्या दिककतें आ सकती हैं? उस केस को लड़ने के लिए यह वकील आगे आता है। यही सबसे ज़रूरी ज़िम्मेदारी भी है लॉयर्स की कि सिर्फ़ क़ानून का पालन ही ना करें, बल्कि जिन क़ानूनों को बदलना है या ख़त्म करना है, उनकी भी बात करें। वो काम सिर्फ़ एक वकील ही कर सकता है। एक आम आदमी को तो नहीं पता कि कौन सा कानून कितना पुराना है, क्या बदलाव हो सकते हैं। कॉमन मैन का लीगल राइट बहुत बड़ा राइट है, उसका प्रोटेक्शन ढंग से नहीं हुआ तो जिस फ्रीडम की हम बात करते हैं, वो शायद हमारे पास नहीं रहेगी।''

'फ़िल्म में एक एथलीट के लिए लड़ रहा हूं, जो देश के लिए गोल्ड ला सकती है'

तापसी पन्नू के किरदार के साथ अपने किरदार की ट्यूनिंग पर अभिषेक कहते हैं- ''मैंने तापसी को हमेशा एक एथलीट के तौर पर देखा। मैं इंडिया की एक ऐसी एथलीट के लिए लड़ रहा हूं, जो देश के लिए गोल्ड ला सकती है। वास्तविक जीवन में यह इंस्पिरेशन मुझे मेरे दोस्त वैभव टंडन से मिली, जो आईआईटी से पढ़े हैं और ओलम्पिक क्वेस्ट नाम की एक स्पॉन्सर बॉडी के साथ काम करते हैं। यह संस्था भारत के एथलीट्स को चुनकर ओलम्पिक की स्पॉन्सरशिप दिलवाती है।

 

 

 

 

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एक स्पोर्ट्समैन की ज़िंदगी में क्या हो रहा होता है, हमें पता नहीं होता। हम सुनते हैं कि फलां एथलीट ट्रक से जाती थी या नाव से जाती थी। लोग बस जीत की आभा देखते हैं, लेकिन उन खिलाड़ियों की सक्सेस के लिए कुछ लोग निरंतर काम करते हैं। इस फ़िल्म में मैंने इस पहलू को मानवीय रिश्ते की तरह नहीं देखा है। एक वकील और एक स्पोर्ट्समैन के संबंध की तरह देखा है। उस एथलीट में एक उम्मीद देखी और उसे वो उम्मीद दिलाने की कोशिश की। इसीलिए पूरी फ़िल्म के दौरान एक मज़ाक हो गया था कि इशित को गले लगाना भी नहीं आता। उसे समझ नहीं आता कि ह्यूमेन इमोशंस कहां लेकर आएं, उसके लिए बस एक केस है।''

'मेरे किरदार में एक ऑकवर्ड ह्यूमर है'

अभिषेक का किरदार सुनने में भले ही संजीदा लगे, मगर उसमें एक ह्यूमर भी है। अभिषेक कहते हैं कि यह किरदार सीरियस लगता है, मगर उसमें कुछ मज़ाकिया तत्व भी हैं, क्योंकि जब गगन (प्रियांशु पेन्युली) और रश्मि साथ में होते हैं और इशित इन्हें देख रहा होता है तो इशित इन्हें हाय नहीं कहता, क्योंकि इन दोनों के बीच कुछ चल रहा होता है। पति-पत्नी के बीच कुछ चल रहा है और तीसरे बंदे को कुछ नहीं पता तो इस तरह का एक 'ऑकवर्ड ह्यूमर' है, जो हमने निभाने की कोशिश की है।


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