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Soni Review: महिला पुलिस अफसर की ईमानदारी को दर्शाती वेब फिल्म 'सोनी'

फिल्म में महिला अफसरों और महिला पुलिस प्रशासन से जुड़ी महिलाओं की स्थिति को बेहद खूबसूरती से दर्शाया गया है.

By Rahul soniEdited By: Published: Wed, 06 Feb 2019 05:35 PM (IST)Updated: Wed, 06 Feb 2019 05:35 PM (IST)
Soni Review: महिला पुलिस अफसर की ईमानदारी को दर्शाती वेब फिल्म 'सोनी'
Soni Review: महिला पुलिस अफसर की ईमानदारी को दर्शाती वेब फिल्म 'सोनी'

फिल्म : सोनी

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कलाकार : गीतिका विद्या ओहल्याण, सलोनी बत्रा, विकास शुक्ला

निर्देशक : इवान अय्यर

वेब चैनल : नेटफ्लिक्स

रेटिंग : चार 

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। हाल ही में एक महिला ऑफिसर की तस्वीर और वीडियो सामने आई थी, जिसमें वह अपराधियों को पकड़ने के लिए पूरे सूट बूट और आँखों में कजरा लगा कर, होंठों पर लिपस्टिक लगा कर पहुंची थीं. उस वीडियो को अगर ध्यान से देखें तो आप गौर करेंगे कि ऐसा लग रहा है, जैसे उन्होंने बकायदा इसी वीडियो शूट के लिए वह मिशन रखा हो.

बता दें कि इन दिनों फिल्मी सितारों की तरह पुलिस ऑफिसर्स भी अपने पीआर मैनेजर रखते हैं. चूंकि इन सभी की ख्वाहिश है कि सिंघम जैसी फिल्में इन पर भी फिल्माई जायें. ऐसे में कई बार पुलिस अफसरों के इस बनावटीपन और उनके किस्से प्रभावित नहीं करते. लेकिन हाल ही में नेटफ्लिक्स ने सोनी के रूप में एक बेहतरीन फिल्म रिलीज की है. महिला पुलिस अफसर पर बनी यह हिंदी फिल्मों में अबतक की सबसे ईमानदार फिल्मों में से एक है.

फिल्म में महिला अफसरों और महिला पुलिस प्रशासन से जुड़ी महिलाओं की स्थिति को बेहद खूबसूरती से दर्शाया गया है. छोटे परदे पर कई साल पहले उड़ान नामक एक शो काफी लोकप्रिय हुआ था. इस शो के बाद अब तक महिला पुलिस को लेकर कभी कोई ठोस शो या अच्छी कहानियाँ सामने नहीं आयीं. चंदमुखी चौटाला जैसे शो केवल मजकियां और महिला के योवन को दर्शाने तक ही सीमित रहे. प्रियंका चोपड़ा प्रकाश झा की जय गंगाजल में पुलिस ऑफिसर की भूमिका में नजर आयीं थीं. लेकिन यह बॉलीवुड की मसाला फिल्मों में आगे नहीं बढ़ पाई थीं.

हिंदी फिल्मों में अभी पुलिस ऑफिसरों पर बनी सबसे ताजा फिल्म का उदाहरण सिम्बा है, जिसमें एक्शन कॉमेडी ही नजर आती है. इससे पहले दबंग और बाकी फिल्मों में पुलिस अफसरों को हास्य अंदाज़ में ही अधिकतर प्रस्तुत किया गया है. लेकिन उन सभी लिहाज से सोनी फिल्म एक सार्थक प्रयास है, जो कि महिला अफसरों की जिंदगी को वास्तविक तरीके से प्रस्तुत करती है. फिल्म की कहानी दो महिलाओं पर है.

महिला आईपीएस अफसर कल्पना और महिला पुलिस सोनी की जिंदगी के इर्द-गिर्द है. कल्पना ऐसे परिवार की बहू है, जो कि खानदानी रईस तो हैं ही और जिनके पति आला अफसर हैं. कल्पना एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर की भूमिका निभाना चाहती हैं और वह दिल्ली में महिलाओं के साथ हो रहे अपराध पर कमान कसना चाहती हैं. लेकिन किस तरह वह इसमें सफल नहीं हो पातीं, बार-बार उन्हें किस तरह बड़े-बड़े नेताओं और बिजनेसमैन के पॉवर की वजह से घुटने टेकने पड़ते हैं. वहीं अपने साथ काम कर रही बहादुर सिपाही सोनी को न चाहते हुए भी वैसी जगह तबादला करना पड़ता है.

कल्पना एक काबिल पुलिस ऑफिसर होने के बावजूद अपने घर पर अपनी सास की रूढ़िवादी सोच का ही शिकार होती हैं. बार-बार अपने पति से ताने सुनती है और न चाहते हुए भी पति के अफसराना के सामने सिर झुकाने पर मजबूर होती हैं. फिल्म के एक दृश्य में कल्पना के पति कहते हैं कि नौकरी कर रही हो वही करो. इससे स्पष्ट है कि भले ही महिलाएं कितने भी ऊंचे पद पर विराजमान क्यों न हो जायें. घर में अब भी उनकी स्थिति अपने पति से नीचे ही होती है. इस द्वन्द के बीच कल्पना को सोनी मिलती है, जो कि बोल्ड है, जो कि सिन्दूर यह दिखाने के लिए नहीं लगाती कि वह शादी शुदा है. वह किसी भी तरह के झंझावत से बाहर अपने अनुसार जिंदगी जीती है. लेकिन अपनी प्रोफेशनल जिंदगी में अपनी धुन और ईमानदारी और बहादुरी के कारण हर बार उन्हें जिल्लत ही सहनी पड़ती है.

फिल्म में दिल्ली में होने वाले अपराधों के उस वर्ग को भी बखूबी दिखाया गया है, जिसमें दिल्ली को अपने पिता की जागीर समझ कर हर वक़्त गंध मचाने और उत्पात मचाने वाले लौडें किस तरह अपने बाप के नाम पर अपराध करते फिरते हैं और फिर आराम से बच भी निकलते हैं. कल्पना घुटते हुए भी किस तरह सोनी के साथ न्याय नहीं करती हुई उसे अमृता प्रीतम की किताब रसीदी टिकट देती है. अमृता की इस किताब का लेखक किसलय और निर्देशक इवान ने इतनी खूबसूरती से इस्तेमाल किया है. वह आप फिल्म देखने के बाद समझ सकेंगे. यह फिल्म हर महिला को जरूर देखनी चाहिए, जो देश के लिए कुछ करना चाहती हैं.

साथ ही यह फिल्म उन महिलाओं की कहानी और घुटन, मजबूरी को भी दर्शाता है, जो आला अफसर बनने के बाद भी घर में महज एक ,महिला के रूप में ही देखी जाती हैं, जिनके अपने अस्तित्व की लड़ाई जारी होती है. सोनी एक आई ओपनर फिल्म हैं. यह उस सच को भी उजागर करती है, जिसमें हर वह पुरुष वर्ग जो कि महिलाओं को ऊंचे पद पर देखने के बाद उन्हें किरण बेदी और बैंडिट क्वीन कह कर उनका मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते और उन सच को भी दर्शाती है, जिसमें पुरुष की पहली नजर में महिला एक भोग की वस्तु ही नजर आती है. यह फिल्म एक करारा जवाब भी है. यह फिल्म हिंदी श्रेणी में नेत्फ्लिक्स की एक बेहतरीन पेशकश है.


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