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इस वजह से डिजिटल पर दिखाया जा रहा है थ्रिलर और डार्क कंटेंट: निर्देशक अक्षय चौबे

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बीते दिनों ‘सेक्रेड गेम्स’ ‘मिर्जापुर’ ‘डेल्ही क्राइम’ ‘आर्या’ ‘पाताल लोक’ समेत कई वेब सीरीज हिट रही हैं। खास बात यह है कि इन सभी में जिंदगी के स्याह पहलू और अपराध की दास्तां बयां की गई।

By Priti KushwahaEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 11:11 AM (IST)Updated: Fri, 20 Nov 2020 11:23 AM (IST)
Director Akshay Choubey Open Up About Why Digital Platform Shows Thriller And Dark Content

प्रियंका सिंह, जेएनएन। जब तक बैठने को न कहा जाए, तब तक शराफत से खड़े रहो, ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं.. शाकाल के हाथ में जितने पत्ते होते हैं, उतने ही उसके आस्तीन में भी होते हैं.. इस तरह के कई इंटेंस डायलॉग हीरो और विलेन फिल्मों में कहते हुए नजर आए हैं। पहले की फिल्मों में हीरो इंटेंस जरूर होते थे, लेकिन डार्क नहीं। डार्क किरदार विलेन के होते थे। कहानी विलेन और हीरो के बीच की डायलॉगबाजी पर चलती थी, लेकिन डिजिटल ने डार्क कंटेंट और किरदारों की परिभाषा बदल दी है। वेब सीरीज के हीरो का किरदार भी कहानी के मुताबिक डार्क हो सकता है। जरूरी नहीं कि वह हर बार सही या गलत हो। वह परिस्थिति के मुताबिक खुद को बदलता रहता है। ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘मिर्जापुर’, ‘मुं भाई’, ‘डेल्ही क्राइम’, ‘आर्या’, ‘अभय’, ‘पाताल लोक’ समेत कई डार्क वेब सीरीज हैं, जिनमें किरदार हालातों के मुताबिक अपना स्याह और सफेद दोनों पक्ष रखते हैं। 

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डिजिटल पर नहीं चलते विलेन:  

जानकारों के मुताबिक फिल्में एक फॉमरूला के तहत बनती हैं। दर्शक फॉमरूला फिल्में देखकर बोर हो गए हैं। सिनेमा में डार्क और इंटेंस किरदारों को एक्शन में डाल दिया जाता है। डिजिटल का कंटेंट अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुताबिक बनता है। इसलिए गाने और एक्शन के बजाय वे किरदार चलते हैं, जो आम इंसान की भीतर की भावना को दर्शाएं। ‘मिर्जापुर’ का लगभग हर किरदार डार्क रहा है। पहले सीजन के क्रिएटर और निर्देशक करण अंशुमन कहते हैं कि यह समय की डिमांड है, जिसके मुताबिक हम चल रहे हैं। डार्क किरदारों को लिखने में एक कैनवास मिलता है। कलाकारों को उसे अपने तरीके से एक्सप्लोर करने का वक्त मिलता है। सीन का मुख्य और सपोटिर्ंग किरदार उस सीन का केंद्र बन जाता है। यहां एक हीरो, एक विलेन वाला फॉर्मेट नहीं है। डिजिटल पर स्क्रीन टाइम ज्यादा मिलता है, ऐसे में हर किरदार की सिर्फ अच्छाई ही नहीं दिखेगी, उसका डार्क पक्ष भी दिखेगा। लेखक होने के नाते हम उन डार्क किरदारों की कल्पना कर सकते हैं। पहले हम थिएटर में शाकाल और मोगैंबो जैसे विलेन को पसंद करते थे, लेकिन डिजिटल के दौर में खलनायक गायब हो गए हैं। हमारे अंदर का जो एक विलेन है, वह आजकल दिख रहा है। 

न स्पेस, न टाइपकास्ट का डर:  

‘इनसाइड एज’ और ‘मुं भाई’ शोज कर चुके अभिनेता अंगद बेदी कहते हैं कि डार्क किरदारों को डिजिटल पर अच्छा खासा स्पेस मिलता है। वह स्पेस सिनेमा नहीं दे सकता है, क्योंकि वहां एक या दो प्राइमरी किरदारों पर ही दर्शक ध्यान दे पाते हैं। डिजिटल पर मेरे दर्शक 17 से 35 साल की उम्र के बीच हैं। उनकी पसंद के मुताबिक काम करना पड़ता है, वे थ्रिलर ज्यादा देखना पसंद करते हैं। इंटेंस किरदार में जाना मेरे लिए एक अनकंफर्टेबल जोन है, लेकिन सच्चाई यह है कि किरदार में एक गंभीरता होनी चाहिए। इंसान होने के नाते हम में सभी तरह की भावनाएं होती हैं। इंसान बुरा या अच्छा नहीं होता है। उसकी संगत और अनुभव उसे वैसा बनाते हैं। किरदार इंसानियत से भरपूर होना चाहिए। ऐसे किरदार वेब पर अच्छे लिखे जा रहे हैं। ‘क्रैकडाउन’ वेब सीरीज से डार्क जोन में शामिल हुए साकिब सलीम कहते हैं कि फिल्मों में मैं गंभीर और डार्क किरदार कर ही नहीं पाया, क्योंकि वहां ऑफर ही नहीं हुए। वेब नई चीजें करने का हौसला देता है, क्योंकि यहां बॉक्स ऑफिस का दबाव नहीं है। ‘तैश’ फिल्म और वेब सीरीज के अभिनेता हर्षवर्धन राणो के मुताबिक, डार्क और गंभीर किरदारों को निभाना आसान नहीं है। वह कहते हैं कि ‘तैश’ में उनके किरदार में रोष की भावना थी। वह इंटेंस था। उसके लिए खुद को दो हफ्ते तक चारदीवारी में कैद करना पड़ा, ताकि सही भावनाएं निकल पाएं। उस मनोदशा को समझने की कोशिश की। 

हर प्लेटफॉर्म पर हिट होता है अच्छा कंटेंट:  

इन दिनों अभिनेत्रियों को भी इंटेंस ड्रामा का हिस्सा बनने के मौके खूब मिल रहे हैं। वेब सीरीज और फिल्म दोनों ही फॉर्मेट में रिलीज ‘तैश’ की अभिनेत्री कृति खरबंदा कहती हैं कि ओटीटी हो या सिनेमा अच्छा कंटेंट सभी जगह चलता है। भले ही डार्क हो या हल्की फुल्की कॉमेडी। श्रीराम राघवन सर ने ‘एक हसीना थी’, ‘अंधाधुन’ बनाई। बिजॉय नांबियार की फिल्म ‘शैतान’, ये सब थिएटर में रिलीज हुईं और दर्शकों ने उन्हें पसंद किया। ये सब फिल्में तयशुदा बजट में बनी हैं और बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छे परिणाम दिए हैं। ‘तैश’ के लिए मुङो बहुत सारे लोगों ने मैसेज करके कहा कि काश हमने इसे बड़ी स्क्रीन पर देखा होता। आप डार्क कंटेंट बनाकर ओटीटी पर डाल देंगे, लेकिन कहानी में ही दम नहीं होगा तो प्लेटफॉर्म कोई भी हो दर्शक नहीं देखेंगे। 

एंटरटेनमेंट बने रहना जरूरी:  

‘कोड एम’ और ‘मुं भाई’ वेब सीरीज के निर्देशक अक्षय चौबे कहते हैं कि सिनेमा के लिए कहा जाता है कि इंसान टेंशन से दूर हटने के लिए नाच-गाने वाली फिल्में देखने जाता है। डिजिटल पर थ्रिलर और डार्क कंटेंट चल रहा है, क्योंकि यहां लोग ऐसा कंटेंट देखना चाहते हैं, जिसके साथ वह वक्त बिता सकें। डार्क कंटेंट के हर एपिसोड का अंत इस तरह किया जाता है कि आगे की कहानी देखने की जिज्ञासा होती है। पहले एपिसोड से ही एक रिश्ता बन जाता है। महामारी की वजह से परेशान लोगों के लिए हंसी और खुशी देने वाले कंटेंट को डिजिटल पर लाने की बातें हो रही थीं, जो सही है, लेकिन उसके बावजूद डार्क कंटेंट ही ज्यादा चल रहे हैं, क्योंकि ये दर्शकों को बांध रहे हैं। दर्शक आपका प्रोडक्ट तभी देखना चाहेंगे, जब वे उससे रिलेट करेंगे। अगर आप इस दुनिया से परे कोई चीज, जैसे एवेंजर्स और सुपरहीरो वाली फिल्में लेकर आ रहे हैं तो दर्शक उसे इसलिए पसंद करते हैं, क्योंकि वह वैसा बनना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पता है कि यह संभव नहीं है। डिजिटल रियलिस्टिक कंटेंट के साथ चलता है। अगर यहां हम कुछ अवास्तविक चीज दिखा देंगे तो दर्शकों का कनेक्शन टूट जाएगा। हालांकि इस बात का भी उतना ही ध्यान रखना पड़ता है कि किरदार हर वक्त इंटेंस या डार्क न हो, उसमें ह्यूमर डायलॉग्स के जरिए लाया जाता है, ताकि एंटरटेनमेंट बना रहे। अगर कोई किरदार बंदूक तानकर यह कह दे कि आज मैं तेरा खून कर दूंगा, तो मजा नहीं आएगा।  

जिसके मन में अंधेरा हो वह है डार्क किरदार : 

‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘मिर्जापुर’ वेब सीरीज का हिस्सा रहे अभिनेता पंकज त्रिपाठी फिल्मों में डार्क किरदारों से लेकर कॉमेडी तक हर प्रकार के किरदारों में नजर आ चुके हैं। डिजिटल पर डार्क किरदारों को समझाते हुए वह कहते हैं कि डार्क का मतलब होता है अंधेरा। जिस किरदार के मन में अंधेरा होता है, वह डार्क किरदार है। उसका लेना-देना हीरो या विलेन से नहीं है। माना जाता है कि सफेद मतलब अच्छा और काला मतलब बुरा। डार्क किरदार में स्याह पक्ष ज्यादा होता है। हालांकि यह कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है। कहानी और उसमें दिखाई गई परिस्थितियों पर काफी कुछ निर्भर करता है, जिसे डिजिटल खुलकर दिखा पा रहा है। मैं तो किरदार को ग्रे देखता हूं। 

सुंदर दिखने का वक्त गया : 

‘मर्जी’ और ‘बेताल’ जैसे वेब शो कर चुकीं आहाना कुमरा कहती हैं कि डिजिटल पर इंटेंस किरदार करने के बाद अब अभिनेत्रियों को अभिनय के लिए जाना जाता है। आने वाली पीढ़ी के लिए रास्ता बन रहा है, जहां उन्हें सुंदर दिखने और नाच-गाने पर कास्ट नहीं किया जाएगा। हम वर्ल्ड सिनेमा से मुकाबला कर रहे हैं। खूबसूरती में अटके रह गए तो निम्न स्तर का काम ही कर पाएंगे।


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