सुरैया: जिसने गालिब की रूह को जिंदा किया
तुमने मिर्जा गालिब की रूह को जिंदा कर दिया.. सुरीली आवाज की मल्लिका सुरैया जमील शेख उर्फ सुरैया के लिए यह टिप्पणी देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने वर्ष 1954 में प्रदर्शित फिल्म मिर्जा गालिब में सुरैया के जीवंत अभिनय से मुग्ध होकर की थी।
मुंबई। तुमने मिर्जा गालिब की रूह को जिंदा कर दिया.. सुरीली आवाज की मल्लिका सुरैया जमील शेख उर्फ सुरैया के लिए यह टिप्पणी देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने वर्ष 1954 में प्रदर्शित फिल्म मिर्जा गालिब में सुरैया के जीवंत अभिनय से मुग्ध होकर की थी। सुरीली आवाज की मल्लिका सुरैया ने गायिकी के साथ-साथ अभिनय से भी लोगों को अपना दीवाना बनाया। अनमोल घड़ी, दिल्लगी,ऑफिसर, मिर्जा गालिब और रुस्तम सोहराब जैसी फिल्में उनकी बेमिसाल अभिनय और गायिकी की पहचान बयां करती है। सुरैया का जन्म 15 जून 1929 को पंजाब के गुजरांवाला शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। बचपन से ही सुरैया का रुझान संगीत की ओर था और वह पार्श्व गायिका बनना चाहती थी। हांलाकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नही ली थी बावजूद इसके संगीत के ऊपर उनकी काफी पकड़ थी। सुरैया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के न्यू गर्ल्स हाईस्कूल से पूरी की। इसके साथ हीं वह घर पर ही कुरान और फारसी की शिक्षा 5ाी लिया करती थी।
बतौर बाल कलाकार सबसे पहले उनकी वर्ष 1937 में उसने सोचा था फिल्म प्रदर्शित हुयी। लगभग 4 वर्ष तक बतौर बाल कलाकार उनकी कई फिल्में प्रदर्शित हुयी लेकिन इन फिल्मों से उनकी कुछ खास पहचान नही बन पा रही थी। सुरैया को अपना सबसे पहला बड़ा काम अपने चाचा हुजूर की मदद से मिला जो उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में बतौर खलनायक अपनी पहचान बना चुके थे। वर्ष 1941 में अपनी स्कूल की छुटिृयो के दौरान एक बार सुरैया मोहन स्टूडियो में फिल्म ताजमहल की शूटिंग देखने गयी। यहां उनकी मुलाकात फिल्म के निर्देशक नानु भाई वकील से हुयी जिन्हे सुरैया में फिल्म इंडस्ट्री का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने सुरैया को फिल्म के किरदार मुमताज महल के लिये चुन लिया। आकाशवाणी के एक कार्यक्रम के दौरान संगीत सम्राट नौशाद ने जब सुरैया को गाते सुना तब वह उनके गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुये। नौशाद के संगीत निर्देशन में पहली बार कारदार साहब की फिल्म शारदा में सुरैया को गाने का मौका मिला। इस बीच सुरैया को वर्ष 1946 में प्रदर्शित निर्माता निर्देशक महबूब खान की अनमोल घड़़ी में भी काम करने का मौका मिला। हांलाकि सुरैया इस फिल्म में सहअभिनेत्री थी लेकिन फिल्म के एक गाने सोचा था क्या-क्या हो गया.. वह बतौर पार्श्व गायिका श्रोताओ के बीच अपनी पहचान बनाने में काफी हद तक सफल रही। अपने वजूद को तलाशती सुरैया ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिये फूल और दर्द जैसी फिल्मों में छोटे रोल भी स्वीकार किए।
निर्माता जयंत देसाई की फिल्म चंद्रगुप्त के एक गानेके रिहर्सल के दौरान सुरैया को देख के.एल. सहगल काफी प्रभावित हुए और उन्होंने जयंत देसाई से सुरैया को फिल्म तदबीर में काम देने की सिफाशि की। वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म तदबीर में के .एल.सहगल के साथ काम करने के बाद धीरे-धीरे उनकी पहचान फिल्म इंडस्ट्री में बनती गयी और बाद में उन्होंने सहगल के साथ ही उमर खय्याम (1946) और परवाना (1947) जैसी फिल्म में भी अभिनय किया। वर्ष 1949-50 में सुरैया के सिने कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। अपनी प्रतिद्वंदी अभिनेत्रियों नरगिस और कामिनी कौशल से भी वह आगे निकल गयी। इसका मुख्य कारण यह था कि सुरैया अभिनय के साथ-साथ गाने 5ाी गाती थी। प्यार की जीत (1948), बड़़ी बहन और दिल्लगी (1950) जैसी फिल्मों की कामयाबी के बाद सुरैया शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंची। संगीतकार हुस्न लाल भगत के संगीत निर्देशन में प्यार की जीत, और बड़़ी बहन जैसी फिल्मों के लिये वो पास रहे या.. और ओ दूर जाने वाले.. जैसे गानो के जरिये सुरैया ने अपना अलग हीं समां बांधा संगीत सम्राट नौशद के संगीत निर्देशन में फिल्म दिल्लगी के गाने मुरली वाले मुरली बजा.. जैसे गाने के जरिये श्रोताओं को भाव वि5ाोर कर दिया। नौशाद के संगीत निर्देशन में सुरैया ने बाद में स्टेशन मास्टर, कानून और संजोग जैसी कई फिल्मों के लिये अपनी आवाज दी। सुरैया के सिने कैरियर में उनकी जोड़़ी प्रसिद्व निर्माता निर्देशक कारदार साहब के साथ खूब जमी। दोनो की जोड़ी वाली फिल्मों में शारदा के अलावा कानून, संजोग, दर्द, दिल्लगी, दास्तान और दीवाना जैसी न भूलने वाली फिल्में शामिल है।
सुरैया के सिने कैरियर में उनकी जोड़़ी फिल्म अभिनेता देवानंद के साथ खूब जमी। सुरैया और देवानंद की जोड़़ी वाली फिल्मों में विधा (1948), जीत (1949), शायर (1949), अफसर (1950), नीली (1950) और दो सितारे (1951) जैसी न भूलने वाली फिल्में शामिल है। फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देवानंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देवानंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गयी। देवानंद ने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देवानंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगी, लेकिन सुरैया की नानी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़़ी परवान नही चढ़ सकी। वर्ष 1954 में देवानंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। इससे आहत सुरैया ने आजीवन कुंवारी रहने का फैसला कर लिया। वर्ष 1950 से लेकर 1953 तक सुरैया के सिने कैरियर के लिये बुरा व1त साबित हुआ लेकिन वर्ष 1954 में प्रदर्शित फिल्म मिर्जा गालिब और वारिस की सफलता ने सुरैया एक बार फिर से फिल्म इंडस्ट्री मं अपनी पहचान बनाने में सफल हो गयी। फिल्म मिर्जा गालिब को राष्ट्रपति के गोल्ड मेंडल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। फिल्म को देख तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इतने भावुक हो गये कि उन्होंने सुरैया को कहा तुमने मिर्जा गालिब की रूह को जिंदा कर दिया.।
वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म रुस्तम सोहराब के प्रदर्शन के बाद सुरैया ने खुद को फिल्म इंडस्ट्री से अलग कर लिया। लगभग तीन दशक तक अपनी जादुई आवाज और अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाली भारतीय सिने जगत की महान पार्श्व गायिका और अभिनेत्री सुरैया ने 31 जनवरी 2004 को संसार से सदा के लिये विदा ले ली।
सुरैया के गानों की लंबी फेहरिस्त में से कुछ हैं- मेरे दिल को सजन समझा दो.., बागो में कोयल बोली.., एक दिल तेरा एक दिल मेरा.., बचपन गया जवानी आयी.., मैं क्या करू.., गरीबों की दुनिया.., बिगड़ी हुई तकदीर बनायी नही जाती.., सोचा था क्या-क्या हो गया.., बीच भंवर में आ फंसा है.., ऐसे में जी न लगाये.., दिल ले के चले नही जाओगे.., दिन-दिन जोबन ढलता जाये.., किनारे-किनारे चलते जायेंगे.., दूर पपीहा बोला.., अरमान भरा दिल बैठ गया.., तेरे नैनो ने चोरी किया .., अरमान लूटे दिल लूट गया.., बदरा के छांव तले.., बीते हुये दिन रात.., अंजामें मोहब्बत कुछ भी हो.., ए दिल किसे सुनाऊं.., ए इश्क हमें बरबाद ना.., अरमान लूटे दिल लूट गया.., तू मेंरा चांद मै तेरी चांदनी.., दिल की दुनिया उजड़ गयी.., दिल के धोखे में आज.., ए शमा तू बता तेरा परवाना.., मनमोर हुआ मतवाला.., बर्बाद मेरी दुनिया पल भर में.., कोई दिल में समाया चुपके-चुपके.., दिल में आ गया कोई.., चले जा रहे हो नजर चुराकर.., होली खेले नंदलाला.., नुक्ताचीन है गम.., आपसे प्यार हुआ जाता है.., ये कैसी अजब दास्तान.. जैसे न भूलने वाले गीत शामिल है।
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