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    Sukhee Review: शादी-बच्चों के बाद 'जिंदगी' खत्म नहीं होती, आत्म-सम्मान का संदेश देती है शिल्पा शेट्टी की फिल्म

    By Manoj VashisthEdited By: Manoj Vashisth
    Updated: Fri, 22 Sep 2023 12:30 PM (IST)

    Sukhee Review शिल्पा शेट्टी की फिल्म सुखी सिनेमाघरों में रिलीज हो गयी है। इस फिल्म में वो एक हाउसवाइफ के रोल में हैं जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से तंग आ गयी है। फिर उसे स्कूल रीयूनियन में शामिल होने का मौका मिलता है जो उसके नजरिए को पूरी तरह बदल देता है। फिल्म महिलाओं में आत्मसम्मान की भावना पर जोर देती है।

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    शिल्पी शेट्टी की फिल्म थिएटर्स में रिलीज हो गयी है। फोटो- इंस्टाग्राम

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। घरेलू महिलाओं की इच्‍छाओं, आकांक्षाओं और आत्‍मसम्‍मान वापस पाने को लेकर हिंदी सिनेमा में इंग्लिश विंग्‍लिश, तुम्‍हारी सुलु जैसी कई फिल्‍में बनी है। अब नवोदित निर्देशक सोनल जोशी द्वारा निर्देशित फिल्‍म सुखी भी इसी विषय को छूती है। बस यहां पर महिलाओं की दोस्‍ती और प्‍यार को जोड़ा गया है।

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    कहानी करीब चालीस वर्षीय पंजाबी हाउसवाइफ सुखप्रीत कालरा उर्फ 'सुखी' (शिल्‍पा शेट्टी) और उसकी तीन दोस्तों की है। यह सभी बीस साल बाद अपने स्कूल के रीयूनियन में भाग लेने के लिए दिल्ली आती हैं। इनमें आनंदकोट में रह रही सुखी होममेकर है। उसका नाम भले ही सुखी है, लेकिन असल जिंदगी में सुख नहीं हैं।

    उसका पति गुरु (चैतन्‍य चौधरी) कंबलों का बिजनेस करता है। वह सुखी को घर की मुर्गी दाल बराबर समझता है। उनकी 15 साल की बेटी जस्‍सी है। वह भी अपनी मां के काम का कोई सम्‍मान नहीं करती है। मेहर (कुशा कपिला) दिल्‍ली में, मानसी (दिलनाज ईरानी) लंदन में काम करती है, जबकि तन्‍वी (पवलीन गुजराल) शादीशुदा है।

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    रीयूनियन से मिली सोच को नई दिशा

    रीयूनियन की पार्टी के दौरान उनकी मुलाकात विक्रम उर्फ चमगादड़ (अमित साध) से होती है। कालेज के दिनों से ही विक्रम दिल ही दिल में सुखी से प्‍यार करता है, लेकिन कभी इजहार नहीं किया। कालेज के दौरान आत्‍मविश्‍वासी, हर काम में अग्रणी रहने वाली सुखी अब पूरी तरह बदल चुकी है।

    रीयूनियन में जब वह पुरानी सहपाठियों से मिलती है तो सब यह जानकर अचंभित होते हैं कि सुखी होममेकर है, जबकि पढ़ाई में कमजोर रही उसकी सहपाठी फैशन डिजाइनर वगैरह बन चुकी हैं। रीयूनियन के बाद सुखी और उसके दोस्‍तों के जीवन की परतें खुलती हैं। सुखी के प्रेम विवाह के बाद उसके माता पिता ने उससे नाता तोड़ लिया होता है।

    वह उनसे मिलने के लिए रुकना चाहती है, लेकिन गुरु से आपसी कहासुनी के बाद वह दिल्‍ली रुकने का फैसला करती है। गुरु उससे घर वापस न लौटने को कहता है। इस दौरान सुखी की दोस्‍तें उसे आत्‍मसम्‍मान पाने तक दोबारा घर न लौटने को कहती हैं। इस दौरान सुखी वापस 17 वर्षीय लड़की बनकर दोबारा से ज़िंदगी का आनंद उठाती हैं।

    महिलाओं से जुड़े मुद्दे

    फिल्‍म के एक दृश्‍य में संवाद है कि महिला सशक्‍तीकरण पर कितनी फिल्‍में बनाएंगे? एक किरदार जवाब देता है सब एक जैसी होती हैं। इम्तियाज अली को जब हैरी मेट सेजल और तमाशा फिल्‍म में असिस्‍ट कर चुकी सोनल जोशी निर्देशित सुखी भले ही चार दोस्‍तों की कहानी हो, लेकिन मुख्‍य रूप से सुखी के जीवन पर केंद्रित है।

    यहां पर भी महिला सशक्‍तीकरण का मुद्दा है, लेकिन उसमें कोई नयापन नहीं है। फिल्‍म के फर्स्‍ट हाफ में राधिका आनंद द्वारा लिखी कहानी तेजी से आगे बढ़ती है। दोस्‍तों से मिलने के बाद सुखी की दबी भावनाओं को आवाज मिलती है। वहीं, दूसरी ओर मुहल्‍ले में उसे लेकर किस तरह की बातें होती हैं, पड़ोसी कैसे बर्ताव करते हैं, कैसे बात का बतंगड़ बनता है, उसका चित्रण निर्देशक सोनल जोशी ने अच्‍छे से किया है।

    साथ ही दोस्‍तों के जरिए बताया कि कठिन परिश्रम के बावजूद महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिलता, बच्‍चा न होने के लिए सास के ताने सुनने पड़ रहे। दिक्‍कत यह है कि उन्‍होंने दोस्‍तों की जिंदगी की तकलीफ को संवाद में ही निपटा दिया है।

    अगर उनकी जिंदगी की मुश्किलों को बेहतर तरीके से पर्दे पर दिखाया जाता तो कहानी ज्‍यादा बेहतर होती। हालांकि, फिल्‍म में कई पल आते हैं जो आपको भावुक कर जाते हैं। इसमें सुखी की बेटी का स्‍कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिता में दिया गया भाषण उल्‍लेखनीय है।

    अनुत्तरित रह गये कुछ सवाल

    कुछ सवालों के जवाब नहीं दिये गये हैं, मसलन बीस साल में एक बार भी सुखी ने माता पिता से मिलने का प्रयास क्‍यों नहीं किया? इतनी दोस्‍ती के बावजूद चारों दोस्‍तों में कभी कोई किसी से मिलने क्‍यों नहीं आया?

    सेकेंड हाफ में कहानी थोड़ा खींची हुई लगती है। विक्रम का सुखी साथ प्रसंग कहानी में कुछ खास जोड़ता नहीं है। कुछ दृश्‍यों को अनावश्‍यक विस्‍तार दिया गया है। चुस्‍त एडिटिंग से फिल्‍म की अवधि को कम किया जा सकता था। अच्‍छी बात यह है कि फिल्‍म यौन इच्छाओं से जुड़े मुद्दों पर नहीं आती है।

    यह उन महिलाओं की जिंदगी में जाती है, जो शादी के बाद खुद को घर तक सीमित कर लेती हैं। स्‍कूल रीयूनियन का दृश्‍य शानदार है, जहां अपने ही सहपाठी बुजुर्ग नजर आते हैं।

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    कोरोना के बाद शिल्पा की दमदार वापसी

    बहरहाल, कोरोना काल के बाद सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली सुखी शिल्‍पा शेट्टी की पहली फिल्‍म है और उन्हीं के कंधों पर है। उन्‍होंने सुखी की चंचलता, जिम्‍मेदारी और दबी इच्‍छाओं को खूबसूरती से रेखांकित किया है। दादू बने विनोद नागपाल के साथ उनकी अच्‍छी बांडिंग दिखाई है।

    दोस्‍तों की भूमिका में आई कुशा कपिला, दिलनाज ईरानी, पवलीन गुजराल ने अपने किरदारों साथ न्‍याय किया है। चारों के एकसाथ दृश्‍य फिल्‍म में कहीं-कहीं हंसी के पल लाते हैं। पुरानी दोस्‍ती की यादों को ताजा करते हैं। पड़ोसन की भूमिका में ज्‍योति कपूर का काम उल्‍लेखनीय है।

    धारावाहिक कहीं तो होगा से अपनी पहचान बनाने वाले चैतन्‍य चौधरी अपनी भूमिका में जंचते हैं। अमित साध की मेहमान भूमिका है, लेकिन वह किरदार में रमे नजर आते हैं। फिल्‍म का गीत संगीत साधारण है।