RK/RKay Review: कलात्मक समझौते पर व्यंग्यात्मक कहानी, फिल्म से मल्लिका शेरावत की दमदार वापसी
RK/RKay Review लम्बे समय तक परदे से दूर रहने के बाद मल्लिका शेरावत ने फिल्म आरके/आरके से बॉलीवुड में दमदार वापसी की। रजत कपूर ने फिल्म में अभिनय करने के साथ-साथ फिल्म के निर्देशन की कमान भी संभाली। जानिए कैसी है मल्लिका और रजत कपूर स्टारर फिल्म।
स्मिता श्रीवास्तव/मुंबई: RK/RKay Review: फिल्मों के किरदारों को लेकर लेखक बहुत सारे प्रयोग करते हैं। नायक के व्यक्तित्व को उभारने के लिए उसे कई अलग-अलग शेड्स देते हैं। हालांकि यह उनके व्यक्तित्व से काफी अलग होता है। कई बार लेखक ही फिल्म का निर्देशक ही होता है। किरदार के चलने-फिरने से लेकर उसकी हार-जीत का फैसला लेखक और निर्देशक ही करते हैं। क्या हो अगर कहानी का मुख्य किरदार ही फिल्म से भाग जाए? सुनने में थोड़ा अजीबोगरीब लगेगा, लेकिन इसी कांसेप्ट पर रजत कपूर ने फिल्म आरके/आरके की कहानी गढ़ी है। वही फिल्म के निर्देशक भी हैं।
आरके (रजत कपूर) फिल्म निर्देशक है। बिल्डर गोयल (मनुऋषि चड्ढा) उनकी फिल्म को फाइनेंस कर रहे होते हैं। आरके एक फिल्म बनाना चाहता है जो उर्दू भाषा को ट्रिब्यूट हो। उसकी फिल्म का नायक पिछली सदी के छठें दौर का महबूब आलम है। महबूब का इश्क गुलाबो (मल्लिका सेहरावत) के साथ है। एडीटिंग के दौरान आरके की टीम पाती है कि फिल्म के बाकी शॉट तो वैसे ही है, लेकिन नायक महबूब कहीं नजर नहीं आ रहा है। सब हैरान परेशान होते हैं। महबूब की खोज के दौरान आरके का बेटा कहता है कि उन्होंने किरदार को गढ़ा है तो उन्हें पता होगा कि महबूब कहां होगा।। वह सोचता है कि महबूब कहां जा सकता है फिर उसे ख्याल आता है कि गुलाबो से मिलने के लिए स्टेशन आया होगा। महबूब को लेकर आरके अपने घर आता है। महबूब फिल्म में वापस जाने को तैयार नहीं है। क्या आरके उसे फिल्म में वापस भेजने में सफल हो पाएगा ? यह वापसी आरके की होगी या महबूब की यह फिल्म का खास पहलू है। इसे देखने पर ही जानना बेहतर होगा।
बहरहाल, रजत ने अपनी कहानी के साथ अनूठा प्रयोग किया है। यह फिल्म लेखक और उसकी रचना के माध्यम से बिना दार्शनिक हुए जीवन, इच्छाओं, रोमांस, सिनेमा आदि के बारे में बात करती है जिसे वास्तविकता में कभी आजमाया नहीं जाता है। इसमें कलात्मक प्रक्रिया और निर्माता के घमंड को भी हास्य के पुट के साथ दर्शाया गया है। महबूब आलम के घर आने के बाद बाद कहानी कई दिशाओं में जाती है पर रजत ने बाकी किरदारों को ज्यादा विकसित करने पर जोर नहीं दिया। बहरहाल, क्राउड फंडिंग (लोगों के एकत्रित धन) से बनी छोटे बजट की यह फिल्म अपने ह्यूमर की वजह से मनोरंजन करती है। रजत ने बहुत करीने से अंत को समेटने की कोशिश की है। फिल्म के कई दृश्यों में दोहराव भी है।
बतौर महबूब आलम और आरके दोनों ही भूमिकाओं साथ रजत ने न्याय किया है। फिल्म में गुलाबो की भूमिका में मल्लिका सेहरावत का काम सराहनीय है। वह किरदार के लिए सही चुनाव लगी हैं। पिछली सदी के छठे दौर की भाव भंगिमाओं को उन्होंने खूबसूरती से आत्मसात किया है। हैरान परेशान निर्माता की भूमिका में मनुऋषि चड्ढा की मौजूदगी हर बार चेहरे पर मुस्कान लाती है। रणवीर शौरी का आक्रामक अंदाज याद रह जाता है। आरके की पत्नी सीमा की भूमिका में कुबरा सैत हैं। महबूब के घर आने के बाद उनके रिश्तों पर ज्यादा गहराई से काम करने की जरुरत थी। नमित दास एक सीन में अपने रैप से प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहते हैं। सीमित बजट के बावजूद फिल्म की प्रोडक्शन टीम ने परिवेश को समुचित तरीके से गढ़ा है। डीओपी राफे महमूद ने कई शॉट बहुत खूबसूरती से लिए हैं। सागर देसाई का संगीत कहानी के प्रभाव को बढ़ाता है।
फिल्म रिव्यू : आरके/ आरके
प्रमुख कलाकार: रजत कपूर, मल्लिका सेहरावत, रणवीर शौरी, कुबरा सैत, मनुऋषि चड्ढा
लेखक और निर्देशक: रजत कपूर
अवधि: एक घंटा 35 मिनट
स्टार: ढाई