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    OMG 2 Review: एडल्ट एजुकेशन पर तार्किक बात करती है फिल्म, पंकज और अक्षय ने सिनेमा में खींची नई लकीर

    By Manoj VashisthEdited By: Manoj Vashisth
    Updated: Fri, 11 Aug 2023 10:53 AM (IST)

    OMG 2 Review वर्जित समझे जाने वाले विषयों पर ऐसे दौर में फिल्म बनाना जब संवेदनाएं हदों से गुजर रही हों हिम्मत का काम है। अक्षय कुमार को इस बात के लिए बधाई देनी होगी कि कमर्शियल फिल्मों की असफलता के बावजूद उन्होंने इस चुनौतीपूर्ण विषय को चुना और इसमें पंकज त्रिपाठी का उन्हें भरपूर साथ मिला है। ओएमजी 2 एडल्ट सर्टिफिकेट वाली जरूरी फिल्मों में गिनी जाएगी।

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    पंकज त्रिपाठी और अक्षय कुमार के साथ यामी गौतम। फोटो- ट्विटर

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। OMG 2 Review: फिल्‍म के अंत में डायलाग है कि 1835 में अंग्रेज अफसर लार्ड मैकाले ने भारत में भ्रमण करके अंग्रेज सरकार को यह रिपोर्ट दी कि अगर भारत को गुलाम बनाना है तो सबसे पहले इनकी सांस्कृतिक धरोधर, शिक्षा पद्धति और गुरुकल को नष्‍ट करो। वह गुरुकुल जहां पर कामशास्‍त्र भी पढ़ाया जाता है और ब्रिटिश एजुकेशन एक्ट 1835 लागू किया।

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    दुख की बात यह है कि आज देश को आजाद हुए 75 साल हो गए और हम आज तक वही शिक्षा पद्धति पढ़ाते आ रहे हैं। पूरा यूरोप एडल्ट एजुकेशन पढ़ाकर खुद को मॉडर्न और हमें सांप-बिच्‍छू का देश कहने लगा। दरअसल, हमारे देश में एडल्ट एजुकेशन अभी भी वर्जित विषय माना जाता है।

    सार्वजनिक रूप ये लोग इस विषय पर बात करने से हिचकिचाते हैं। वर्ष 2012 में रिलीज अक्षय कुमार और परेश रावल अभिनीत फिल्‍म ओह माय गाड! भगवान के नाम पर व्यवसाय चलाने वाले लोगों के खिलाफ थी। करीब 11 साल बाद आई इसकी सीक्‍वल ओएमजी 2 में एडल्ट एजुकेशन का मुद्दा उठाया गया है।

    अमित राय लिखित यह कहानी इसकी अज्ञानता से होने वाले नुकसान, अपराध और इस विषय को पढ़ाने के तरीकों को भी बताने का प्रयास करती है।

    क्या है फिल्म की कहानी?

    महाकाल की नगरी में शिव भक्‍त कांती शरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) सुख शांति से अपने परिवार के साथ जीवनयापन कर रहा होता है। अचानक से उसकी जिंदगी में भूचाल आता है जब उसके किशोर बेटे विवेक (आरुष वर्मा) को अश्लीलता के आरोप में स्‍कूल से निष्‍कासित कर दिया जाता है।

    दरअसल, उसके बेटे का स्‍कूल के टायलेट में प्राइवेट मोमेंट का वीडियो वायरल हो जाता है। स्‍कूल अपनी प्रतिष्‍ठा को बचाए रखने के लिए विवेक को स्‍कूल से निकाल देता है। अपने बेटे की अश्लील हरकत से शर्मिंदा और लोकलाज के डर से कांति अपने परिवार के साथ किसी रिश्‍तेदार के यहां जाने का फैसला करता है।

    इस बीच सामाजिक प्रताड़ना और अपमान की वजह से विवेक आत्‍महत्‍या का प्रयास करता है। यह हालात कांति को रूढ़िवादी विचारों के खिलाफ सवाल उठाने को मजबूर करते हैं। वह अपने बेटे के मानसिक उत्पीड़न के लिए स्कूल, झोलाछाप डाक्‍टर और उन लोगों पर मुकदमा करता है, जो सेक्‍स के प्रति अशिक्षा के अभाव में लोगों की मासूमियत और अज्ञानता का फायदा उठाते हैं और अपनी जेब भरते हैं।

    स्‍कूल की तरफ से मुकदमा कामिनी माहेश्वरी (यामी गौतम) लड़ती है। फिल्‍म में उनके जरिए तर्क दिया जाता है कि मास्टरबेट पाप है, हमारा रूढ़िवादी समाज अभी तक यौन शिक्षा के लिए तैयार नहीं है। यह एडल्ट एजुकेशन के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को बताता है।

    अदालत में न्यायाधीश पुरुषोत्तम नागर (पवन मल्होत्रा) के सामने एडल्ट एजुकेशन को लेकर दलीलें पेश की जाती हैं। यह शिक्षा पद्धति के साथ समाज की उन खामियों को उजागर करता है, जो लंबे समय से संस्‍कृति की आड़ में दबी हुई हैं। इस दौरान महादेव के दूत (अक्षय कुमार) समय-समय पर कांति की मदद करते हैं।

    कैसा है स्क्रीनप्ले, अभिनय और संवाद? 

    अमित राय की तारीफ करनी होगी कि उन्‍होंने बेहद अहम विषय को तार्किक तरीके से पेश किया है। उन्‍होंने हर सीन पर बारीकी से काम किया है। संवाद तार्किक होने के साथ चुटीले हैं। यही वजह है कि OMG 2 देखते हुए आप असहज महसूस नहीं करते हैं।

    कहानी का पूर्वानुमान होने के बावजूद आप अंत तक उससे जुड़े रहते हैं। सही मायने में एडल्ट एजुकेशन की अहमियत को रेखांकित करने के प्रयास में वह सफल नजर आते हैं। हालांकि फिल्म अदालती कार्यवाही के चित्रण में कुछ छूट लेती है।

    कलाकारों की बात करें तो अक्षय कुमार लगातार सामाजिक और वर्जित विषय आधारित फिल्‍मों को तरजीह दे रहे हैं। टायलेट एक प्रेमकथा, पैडमैन जैसी फिल्‍मों के बाद उन्‍होंने ओएमजी 2 में अहम भूमिका निभाई है। शिव भगवान के दूत के रुप में वह प्रभावित करते हैं।

    फिल्‍म का भार पंकज त्रिपाठी के कंधों पर है। सामाजिक निंदा और तिरस्‍कार सह रहे परम शिव भक्‍त पिता की भूमिका में पंकज जंचे हैं। अदालती कार्यवाही के दौरान वह अपने तर्कों को बेहद सहजता से पेश करते हैं। फिल्‍म भाषा की अहमियत भी खूबसूरती से रेखांकित करती है।

    एक सीन में कांति कहता है कि वो बोलो जो कान को सुनने में अच्‍छा लगे। वहीं, बचाव पक्ष की तेज तर्रार वकील की भूमिका में यामी गौतम प्रभावित करती हैं। उन्‍होंने इस विषय को लेकर रूढ़िवादी सोच, हिचक, असहजता बताने वाले दृश्‍यों को अपने अभिनय से शानदार बनाया है।

    न्यायाधीश की भूमिका में पवन मल्‍होत्रा का काम उल्‍लेखनीय है। वह अपनी भूमिका के लिए याद रह जाते हैं। वहीं, सहयोगी भूमिका में आए कलाकारों का काम उल्‍लेखनीय है। फिल्‍म का गीत संगीत कहानी साथ सुसंगत है। खास तौर पर हर हर महादेव कर्णप्रिय है।

    पर्दे पर महाकाल की नगरी उज्‍जैन को देखकर भक्तिभाव जागृत होता है। अगर कुछ छोटी-मोटी खामियों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो अमित के साहस की दाद देनी होगी कि उन्‍होंने वर्जित विषय को मनोरंजक तरीके से उठाया।

    रेटिंग: साढ़े तीन स्टार

    अवधि: 156 मिनट