नेक इरादे की बिखरी फिल्म 'अता पता लापता'
अभिनेता राजपाल यादव ने अपने थिएटर, फिल्म और जीवन के अनुभवों को समेटते हुए नायाब फिल्म बनाने की कोशिश की है। कथ्य और शिल्प के स्तर पर इस तरह की फिल्म हिंदी में नहीं बनी है। स्वयं राजपाल यादव इसे 'म्यूजिकल केऑस' कहते हैं। वास्तव में यह फिल्म म्यूजिकल भी है और केऑस भी है। राजपाल यादव ने थिएटर के ढेर सारे अ
अभिनेता राजपाल यादव ने अपने थिएटर, फिल्म और जीवन के अनुभवों को समेटते हुए नायाब फिल्म बनाने की कोशिश की है। कथ्य और शिल्प के स्तर पर इस तरह की फिल्म हिंदी में नहीं बनी है। स्वयं राजपाल यादव इसे 'म्यूजिकल केऑस' कहते हैं। वास्तव में यह फिल्म म्यूजिकल भी है और केऑस भी है।
राजपाल यादव ने थिएटर के ढेर सारे अभिनेता साथियों को इस फिल्म में इकट्ठा किया है। महत्वपूर्ण बात है कि सभी ने राजपाल यादव के क्रिएटिव इरादे में विश्वास किया है और छोटी एवं क्षणिक भूमिकाओं के लिए तैयार हो गए हैं। इस दौर की हिंदी फिल्मों में सहायक भूमिकाओं में हम जितने कलाकारों को देखते हैं, वे सभी इस फिल्म में मौजूद हैं। यहां तक कि दारा सिंह और सत्यदेव दुबे भी खास भूमिकाओं में हैं।
'अता पता लापता' एक फंतासी फिल्म है। मूलरूप से आजादी के बाद के हिंदुस्तान के दशा-दिशा को एक मकान की चोरी के बहाने पेश किया गया है। पूरा सिस्टम अंदर ही अंदर सड़ चुका है। हर तरफ भ्रष्टाचार और मानसिक प्रदूषण है। राजपाल यादव दोहरी भूमिका में आते हैं। वे सूत्रधार के तौर पर पूरी फिल्म को जोड़ते हैं। हर प्रसंग और घटना के बाद वे गीतों से स्थितियों का बखान करते हैं। इन गीतों में देश के सच और झूठ को स्पष्ट शब्दों में बयान किया गया है।
इरादे में नेक होने के बावजूद शिल्प की नवीनता से यह फिल्म बिखरी हुई लगती है। कथ्य अत्यंत प्रभावशाली है, लेकिन शिल्प उसका साथ नहीं देता। राजपाल यादव ने इस फिल्म में नौटंकी और थिएटर के गुणों को समाहित किया है। यह खूबी ही फिल्म को और बिखेर देती है। हिंदी फिल्मों के बने-बनाए तरीके और सलीके से अलग यह फिल्म कुछ कहने की कोशिश करती है। राजपाल यादव को इस साहस का श्रेय तो दिया ही जा सकता है कि उन्होंने कुछ नया करने की कोशिश की है।
इस फिल्म में राजपाल यादव की प्रतिभा के कई पहलू दिखाई पड़ते हैं। अभी तक उनकी इमेज एक कॉमेडियन की बनी रही है। 'अता पता लापता' देखने से पता चलता है कि इस कथित हास्य कलाकार के दिल में कितना बड़ा सामाजिक दर्द है। उन्होंने इस दर्द को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
[अजय ब्रह्मात्मज]
[रेटिंग: तीन स्टार ***]
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