Ghar Waapsi Review: एक टीस की तरह उभरती है वेब सीरीज घर वापसी, डिज्नी प्लस हॉटस्टार ने बनायी अपनी 'पंचायत'
Ghar Waapsi Review घर वापसी वेब सीरीज डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर शुक्रवार को स्ट्रीम की जा चुकी है। इस सीरीज में विशाल वशिष्ठ ने लीड रोल निभाया है। इसका निर्देशन रुचिर अरुण किया है। एक मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी भावनात्मक रूप से प्रभावित करती है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। घर वापसी एक कसक है, जिसे आप शिद्दत से महसूस करते हैं। यह एक टीस है, जो सीन-दर-सीन दिल में चुभती है। यह एक रिमाइंडर है, जो बताता है कि महत्वाकांक्षाओं का पीछा करते-करते आप क्या खो रहे हैं। आप जिसे पाने की जद्दोजहद में जुटे हैं, क्या वो इस लायक भी है कि उस पर अपनी जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियां लुटा दी जाएं। क्या कॉरपोरेट की देर रात ग्लैमरस पार्टियां परिवार के बीच गुजारे गये खिलखिलाते लम्हों से ज्यादा हसीन हैं?
डिज्नी प्लस हॉटस्टार की लेटेस्ट वेब सीरीज घर वापसी असल में देश के किसी भी शहर या कस्बे में रहने वाले मध्यमवर्गीय परिवार की आकांक्षाओं, महत्वाकांक्षाओं और रिश्तों की रस्साकशी का मुकम्मल प्रतिविम्ब है, जिसमें आपको अपनी झलक नजर आएगी। सीरीज को देखते हुए आप मुस्कुराते हैं, इमोशनल होते हैं और एक वक्त ऐसा आता है कि खुद को खोजने लगते हैं।
डिज्नी प्लस हॉटस्टार की घर वापसी को प्राइम की पंचायत और सोनी-लिव की गुल्लक कहा जा सकता है। शो की कहानी इंदौर में रहने वाले द्विवेदी परिवार की है। बड़ा बेटा शेखर द्विवेदी इंजीनियर है और बेंगलुरु (बैंगलोर) में नौकरी करता है। एप्रेजल की उम्मीद कर रहे शेखर की नौकरी एक दिन अचानक चली जाती है। वो इंदौर अपने घर आता है। दो साल बाद घर लौटा शेखर जैसे-जैसे परिवार के साथ वक्त बिताता है, समस्याओं के समाधान का हिस्सा बनता है, दोस्तों से मिलता है, पुरानी यादों में डूबता-उतराता है, उसका असमंजस बढ़ता जाता है। नौकरी की तलाश जारी रहती है, मगर जीवन में अंतत: क्या चाहिए, यह असमंजस बना रहता है। परिवार के साथ रहते हुए शेखर को एहसास होता है कि सपनों को पूरा करने की दीवानगी में डूबा वो क्या खो रहा था। इसके बाद वो ऐसा कदम उठाता है, जो उसकी जिंदगी का पूरी तरह बदल देता है।
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घर वापसी का सबसे मजबूत पक्ष इसका लेखन है। कार्तिक कृष्णन के कॉन्सेप्ट पर तत्सत पांडेय और भरत मिश्रा ने दिल को छू लेने वाली स्टोरी और स्क्रीनप्ले लिखा है। दिये गये परिवेश में किरदारों की सहजता और सादगी मन मोह लेती है। एक-एक किरदार देखा हुआ-सा लगता है। कुछ दृश्य तो वाकई ऐसे लगते हैं, जैसे लेखकों ने अपनी जिंदगी के कुछ लम्हे चुरा लिये हैं। यह दृश्य प्रभावित करते हैं।
शेखर जब इंदौर अपने घर लौटता है तो अल्मारी खोलकर पुरानी चीजों के बारे में पूछता, उन्हें तलाशता है। परिवार के बाकी सदस्यों के लिए जो सामान पुराना कचरा लगता है, वो शेखर के लिए यादों का पिटारा है। होली-दिवाली कभी-कभार घर पहुंचने वाले शेखर के लिए सब कुछ नया-नया लगता है। वो खुद को एक मेहमान की तरह पाता है। रिश्तों में औपचारिकता सी रहती है। किरदारों को लेकर जिस तरह खांचा खींचा गया है, वो कमाल है। इस सीरीज की दूसरी सबसे बड़ी ताकत कलाकारों का चयन और उनका अभिनय है।
इंदौर की पृष्ठभूमि में रची-बसी कहानी के किरदार उनकी खूबियों और खामियों को लिये हुए हैं। सभी किरदारों का शारीरिक गठन, रहन-सहन और बोलचाल असली-सी लगती है। इंदौरी भाषा का खास लहजा इन कलाकारों ने ऐसे पकड़ा है, लगता ही नहीं एक्टिंग कर रहे हैं। जिम्मेदार बड़े भाई और लगभग आदर्श बालक शेखर द्विवेदी के किरदार में विशाल वशिष्ठ, छोटे भाई संजय द्विवेदी के रोल में साद बिलग्रामी, बहन सुरुचि द्विवेदी के किरदार में अनुष्का कौशिक, पिता रतनलाल द्विवेदी के रोल में अतुल श्रीवास्तव और मां मधुवंती द्विवेदी के रोल में विभा छिब्बर ने बेहतरीन काम किया है।
इन्हें अभिनय करते हुए देखकर बिल्कुल एक रियल फैमिली की फील आती है। मगर, इन सभी में सबसे ज्यादा बधाई के पात्र अजितेश गुप्ता हैं, जिन्होंने शेखर के दोस्त दर्शन का किरदार निभाया है। एक ऐसी दोस्ती, जो सालों के फासले के बाद भी उसी शिद्दत से जिंदा है। ऐसे किरदार आज भी छोटे शहर-कस्बों में दिख जाते हैं, जो दोस्त की तरक्की से फूले रहते हैं और एक बुलावे पर हाजिर हो जाते हैं। अजितेश ने इस किरदार को इतनी शिद्दत से जीया है कि अभिनय और हकीकत के फर्क को मिटा दिया है। इस किरदार के हिस्से कुछ चुटीली लाइंस भी आयी हैं।
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सीरीज कुछ ऐसे सवालों के जवाब भी देने की कोशिश करती है, जो वर्क और लाइफ के बीच संतुलन से जुड़े हैं। पैसा-नाम कमाना ही खुशी होती है या अपनों के बीच रहना। ऐसे सवालों के जवाब शेखर के सीनियर मनीष भैया के जरिए देने की कोशिश की गयी है, जो शिकागो में कई साल नौकरी करने के बाद इंदौर लौटता है और वहां रेस्तरां खोल लेता है। इस किरदार में ज्ञानेंद्र त्रिपाठी की कास्टिंग परफेक्ट लगती है। शेखर के स्कूल की क्रश और तलाकशुदा रिद्धिमा बंसल के रोल में आकांक्षा ठाकुर बहुत नेचुरल लगती हैं। रिद्धिमा शेखर के जीवन में डिसाइटिंग फैक्टर की तरह आती है, जो उसे बड़े और चुनौतीपूर्ण फैसले लेने के लिए प्रेरित करती है।
सीरीज को देखते वक्त ऐसा महसूस होता है, मानो इंदौर की किसी मध्यमवर्गीय कॉलोनी के किसी घर में कैमरा लगाकर छोड़ दिया गया है और कैप्चर हुई फुटेज को एडिट करके छह एपिसोड की वेब सीरीज बना दी गयी। सीरीज के निर्देशक रुचिर अरुण ने सभी विभागों से बेहतरीन काम लिया है, जो हर दृश्य में नजर आता है। सिर्फ अपने घरों को छोड़कर महानगरों में नौकरी करने गये युवाओं को ही नहीं, उनके परिवारों को भी यह सीरीज देखनी चाहिए, ताकि अपने बच्चों की भावनाओं का अंदाजा हो सके।
कलाकार- विशाल वशिष्ठ, अजितेश गुप्ता, अनुष्का कौशिक, साद बिलग्रामी, विभा छिब्बर, अतुल श्रीवास्तव, आकांक्षा ठुकार, ज्ञानेंद्र त्रिपाठी आदि।
निर्देशक- रुचिर अरुण
निर्माता- डाइस क्रिएशन
प्लेटफॉर्म- डिज्नी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग- ***1/2