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    Garmi Web Series Review: पुरानी जमीन पर तिग्मांशु ने काटी नई फसल! एंग्री यंग मैन व्योम यादव 'गर्मी' का 'हासिल'

    By Manoj VashisthEdited By: Manoj Vashisth
    Updated: Fri, 21 Apr 2023 12:29 PM (IST)

    Garmi Web Series Review तिग्मांशु धूलिया की फिल्मों और सीरीज की कहानियों को अपराध और राजनीति से जीवन मिलता है। प्राइम वीडियो के लिए तांडव बना चुके धूलिया इस बार छात्र राजनीति से गर्मी बढ़ा रहे हैं। सीरीज सोनीलिव पर आ गयी है। कैसी है जानने के लिए रिव्यू पढ़ें।

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    Garmi Web Series Review Streaming On SonyLIV. Photo- Instagram

    मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। तिग्मांशु धुलिया ने अपने डायरेक्टोरियल करियर की शुरुआत 'हासिल' फिल्म से की थी। यह फिल्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर (अब प्रयागराज) की यूनिवर्सिटी में होने वाली छात्र राजनीति पर आधारित थी। प्रयागराज तिग्मांशु का होम टाउन भी है। यह बात 2003 की है।

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    ठीक 20 साल बाद तिग्मांशु एक बार फिर छात्र राजनीति की तरफ लौटे हैं और वेब सीरीज 'गर्मी' लेकर आये हैं। हालांकि, हासिल और गर्मी के बीच 'साहेब बीवी और गैंगस्टर', 'पान सिंह तोमर' जैसी फिल्में तो 'तांडव' और 'द ग्रेट इंडियन' मर्डर जैसी वेब सीरीज भी हैं। वैसे, ये सभी कहानियां अलग हैं, मगर इन्हें जोड़ने वाला जॉनर एक ही है। 

    क्या है 'गर्मी' वेब सीरीज?

    तिग्मांशु की सभी फिल्मों और सीरीज को अपराध और राजनीति की कहानियों से ऑक्सीजन मिलती है। सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही सीरीज 'गर्मी' का विषय भी राजनीति और अपराध का गठजोड़ ही है। 9 एपिसोड की सीरीज में तिग्मांशु की प्रेरणा उनका अपना शहर और वहां का विश्विद्यालय बना है, जिसे सीरीज में उन्होंने काल्पनिक नाम त्रिवेणीपुर विश्वविद्यालय दिया है।

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    त्रिवेणीपुर यूनिवर्सिटी में होने वाली छात्र संघ की राजनीति और मुख्यधारा की सियासत के साथ इसका गठबंधन, गर्मी की कहानी का आधार है। यह सीरीज बताती है की किस तरह त्रिवेणीपुर यूनिवर्सिटी राजनेताओं के लिए एक प्रयोगशाला की तरह है, जहां विद्यार्थियों को भविष्य का नेता बनने के लिए तैयार किया जाता है।

    हालांकि, इसमें और भी बहुत कुछ शामिल रहता है। राजनीति में जाति, धर्म और अर्थ, सारे तत्व मायने रखते हैं, इसकी ट्रेनिंग छात्रों को विश्वविद्यालय स्तर पर ही मिलनी शुरू हो जाती है। अपनी-अपनी जाति के विद्यार्थियों के समूह बनाकर राजनीति करने की शिक्षा उन्हें विधायक और मुख्यमंत्री के मुकाम तक लेकर जाती है।

    वहां तक पहुंचने के लिए कितनी तिकड़मबाजी करनी होती है, कितनों को धोखा देना है, कब और कैसे मौके पर चौका मारना है, सब ट्रेनिंग विद्यार्थी जीवन में हो जाती है। हॉस्टल इन छात्र नेताओं का अड्डा बन गये हैं, जहां इनकी हुकूमत चलती है।

    यह छात्र यहां से ट्रेनिंग पाकर मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश करते हैं। यह सब इतना आसान भी नहीं होता। कई सीढ़ियां चढ़नी होती हैं, जिसके बाद उन्हें मौके मिलते हैं। यह एक पूरी चेन होती है, जिसमें व्यापारी से लेकर स्थानीय नेता, दबंग और बाहुबली सबकी तय भूमिका होती है। 

    सत्ता में बैठे लोग अपनी जरूरत के हिसाब से तय करते हैं कि किसे आगे बढ़ाना है और किसको पीछे धकेलना है। इसका चुनाव छात्र संघ की राजनीति से किया जाता है। उन पर बाकायदा पैसा खर्च किया जाता है। पहले यह छात्र बड़े नेताओं के छोटे-बड़े काम करते हैं। उनके नफा-नुकसान का ध्यान रखते हैं और फिर धीरे-धीरे योग्यता के अनुसार उन्हें जिम्मेदारियां दी जाती हैं।

    क्या है गर्मी वेब सीरीज की कहानी?

    'गर्मी' वेब सीरीज ऐसे ही कुछ छात्रों की कहानी है, जो अपनी-अपनी उम्मीदों और महत्वाकांक्षाओं के साथ विश्वविद्यालय में राजनीति कर रहे हैं। ये सत्ता में बैठे बड़े लोगों के हाथों की कठपुतली भी हैं, लेकिन विश्वविद्यालय को अपनी रियासत और खुद को वहां का राजा मानते हैं।

    इस कहानी के केंद्र में अरविंद शुक्ला नाम का किरदार है, जो मध्यमवर्गीय परिवार से आता है। उसके पिता त्रिवेणीपुर के पास स्थित कस्बे लालगंज में इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल हैं। पिता चाहते हैं कि बेटा आइएएस की तैयारी करे और इसके लिए त्रिवेणी विश्वविद्यालय जाए, क्योंकि लालगंज में सिविल सर्विसेज की तैयारी का माहौल नहीं है। त्रिवेणीपुर ने कई आइएएस दिये हैं, पर शायद पिता नहीं जानते या समझना नहीं चाहते कि विश्वविद्यालय ने नेता भी दिये हैं।

    अरविंद अपने परिवार से दूर नहीं होना चाहता, परंतु पिता की जिद के आगे उसकी नहीं चलती और वह त्रिवेणीपुर विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र प्रथम वर्ष में दाखिला ले लेता है। अरविंद गर्म मिजाज है और वह जुल्म सहने का बिल्कुल आदी नहीं है।

    विश्वविद्यालय के मौजूदा छात्र संघ अध्यक्ष बिंदु सिंह और उपाध्यक्ष गोविंद मौर्य में बिल्कुल नहीं बनती है। दोनों ही विधायक का चुनाव लड़ने की ख्वाहिश पाले हुए हैं। इसी उम्मीद में अपने-अपने आकाओं के इशारों पर काम करते हैं। इन किरदारों के बीच कुछ और किरदार हैं। विनीत कुमार ने बाबा वैरागी का रोल निभाया है, जो त्रिवेणीपुर में पहलवानी का अखाड़ा चलाता है, मगर इसके आड़ में वह राजनीतिक अखाड़े का माहिर खिलाड़ी है।

    स्टूडेंट्स के लिए बाबा किंग मेकर का काम करता है। राज्य की सियासत और छात्र राजनीति के बीच एक ब्रिज की तरह है। गोविंद मौर्य उसके इशारों पर चलता है। वहीं, बिंदु सिंह को उभरते हुए नेता के तौर पर देखा जाता है और उसकी सियासी हलके में अच्छी पकड़ है। स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर मृत्युंजय सिंह उसका करीबी है।

    मृत्युंजय सिंह एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है, जो अपनी जाति के अधिक से अधिक लोगों को पुलिस और सेना में देखना चाहता है। अगर कोई क्षत्रिय आइएएस की तैयारी करना चाहता है तो वो उसे आइपीएस चुनने के लिए प्रेरित करता है। इसके पीछे उसका मानना है की अपनी जाति के जितने ज्यादा लोग इन सेवाओं में होंगे, उतना ही देश पर और देश की सियासत पर अपना दबदबा रहेगा।

    इसी सोच के चलते वह स्वजाति के बिंदु सिंह को सपोर्ट करता है। अरविंद शुक्ला हॉस्टल में रहने लगता है। उसके कुछ दोस्त बन जाते हैं, जिनमें स्थानीय व्यापारी और बाबा के करीबी जायसवाल का बेटा भी है। एक लड़की सुरभि भी अरविंद के दोस्तों में शामिल है। सुरभि एमए पॉलिटिक्स अंग्रेजी से कर रही है।

    इन लोगों के प्रभाव में आकर अरविंद थिएटर ज्वाइन कर लेता है। इसी क्रम में सुरभि के साथ उसकी नज़दीकियां हो जाती हैं। विश्वविद्यालय की राजनीति, बाबा वैरागी, मृत्युंजय सिंह, जायसवाल के बीच होते हुए कहानी अहम मोड़ पहर पहुंचती है।

    एक लड़ाई में घायल हुए अरविंद से मिलने के लिए सुरभि चोरी-छिपे ब्वायज हॉस्टल जाती है, जहां बिंदु सिंह अपने ग्रुप के साथ पहुंच जाता है और सुरभि को जलील करने लगता है। सुरभि उनसे बचकर भागती है और इसी भागम भाग में ब्वॉयज हॉस्टल की छत से कूद जाती है। गंभीर रूप से जख्मी सुरभि की अस्पताल में मौत हो जाती है।

    सुरभि की मौत के लिए अरविंद बिंदु को जिम्मेदार मानता है और कुछ साथियों के साथ मिलकर उस पर जानलेवा हमला करता है। बिंदु कोमा में चला जाता है। हालात ऐसे बनते हैं कि अब अरविंद शुक्ला को छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ना है, मगर उसके सामने मुसीबतों का पूरा पहाड़ खड़ा है।

    कैसे हैं कथा, पटकथा, अभिनय?

    गर्मी के शुरुआती तीन एपिसोड धीमे लगते हैं, मगर चौथे एपिसोड से कहानी जो रफ्तार पकड़ती है, उसके बाद इसे बिंज वॉच करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। सीरीज दर्शक को अपने रोमांच में जकड़ लेती है। छात्रों के बीच टकराव के दृश्य, यूनिवर्सिटी में राजनीतिक गतिविधियां, विचारधाराओं की लड़ाई, स्थानीय नेताओं से छात्रों का इंटरेक्शन और विश्वविद्यालय का माहौल... तिग्मांशु ने इन दृश्यों को वास्तविकता के काफी करीब रखा है।

    सीरीज की सबसे बड़ी खासियत इसकी स्टार कास्ट है। कुछ को छोड़कर ज्यादातर कलाकार नवोदित हैं और सभी मुख्य पात्रों ने सराहनीय काम किया है। अरविंद शुक्ला के किरदार में व्योम यादव परफॉर्मेंस आला दर्जे की है। व्योम को ओटीटी स्पेस का नया एंग्री यंग मैन कहा जा सकता है। गुस्सैल, लेकिन परिवार के लिए जिम्मेदार, भरोसेमंद दोस्त और उसूलों पर चलने वाले युवक के रूप में व्योम ने कमाल की परफॉर्मेंस दी है।

    उनके चेहरे पर जहां मध्यम वर्गीय परिवार की अपेक्षाओं का बोझ झलकता है, वहीं सिचुएशन आने पर तेवर बदलते हुए देर नहीं लगती। बाकी सहयोगी कलाकारों में बिंदु सिंह के रोल में पुनीत सिंह, गोविंद मौर्य के किरदार में अनुराग ठाकुर, इंस्पेक्टर मृत्युंजय सिंह के रोल में जतिन गोस्वामी ने बेहतरीन काम किया है। जतिन को दर्शकों ने द ग्रेट इंडियन मर्डर के बाद गुलमोहर में भी देखा होगा।

    यह सभी पात्र एक दूसरे को सपोर्ट करते नजर आते हैं और कहानी की रवानगी को कायम रखने में मदद करते हैं। विनीत कुमार ने बाबा वैरागी के किरदार को जीवन दे दिया है। अंतिम एपिसोड्स में मुकेश तिवारी जेल में बंद अपराधी के किरदार में मौजूदगी दर्ज करवाते हैं, मगर उनके कद के हिसाब से किरदार हल्का है। 

    सुरभि के किरदार में दिशा ठाकुर को ज्यादा समय नहीं मिला, पर जितना मिला उसमें उन्होंने असर छोड़ा है। सुरभि और अरविंद की दोस्त रुचिता के किरदार में अनुष्का कौशिक को इस बार ज्यादा मौका नहीं मिला, मगर दूसरे सीजन में उनके किरदार को विस्तार मिलेगा, जिसका अंदाजा क्लाइमैक्स से हो जाता है। जायसवाल के किरदार में पंकज सारस्वत बहुत नेचुरल लगे हैं। मुकेश तिवारी के किरदार दिलबाग के भाई के रोल में प्रवेश राणा आखिरी एपिसोड में आते हैं। उनके किरदार का भी दूसरे सीजन में विस्तार होगा।

    गर्मी सीरीज में तिग्मांशु ने भले ही पुरानी जमीन पर नई फसल काटी हो, मगर इन कलाकारों ने सीरीज का टेम्पो हाई रखा है, जिसकी वजह से गर्मी बोर नहीं करती। तिग्मांशु धूलिया ने कहानी और किरदारों में प्रयागराज का मिजाज बखूबी पकड़ा है। किरदारों का स्वैग और लहजा बारीकी से पकड़ा है।

    तिग्मांशु ने प्रयागराज नाम का कहीं इस्तेमाल नहीं किया है, मगर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग के विहंगम दृश्य स्थापित करते हैं कि कहानी कहां दिखाई जा रही है। सीरीज के संवाद सहज और सामान्य बातचीत वाले हैं। बोलने के लहजे में नाटकीयता नहीं है। वाक्यों में गालियां बहुत हैं, जिसकी वजह से कुछ किरदार असहज भी कर सकते हैं। अगर तिग्मांशु धूलिया का सिनेमा देखने की आदत है तो शायद अजीब ना लगे। 

    कलाकार- व्योम यादव, पुनीत सिंह, जतिन गोस्वामी, विनीत कुमार, मुकेश तिवारी आदि।

    निर्देशक- तिग्मांशु धूलिया

    प्लेटफॉर्म- सोनी लिव

    अवधि- लगभग 50 मिनट के 9 एपिसोड्स।

    रेटिंग- ***

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