420 IPC Movie Review: बिना शोर-शराबे वाली एक बढ़िया अदालती कहानी, साथ में सधी हुई अदाकारी
420 IPC Movie Review 420 आईपीसी की सबसे अच्छी बात यही है कि यहां जो अदालत या अदालती कार्यवाही नजर आती है उसमें कहीं भी अतिरंजिता या अतिरेकता नहीं है। फिल्म सादगी से कानूनी दांवपेंचों के चित और पट वाले अंदाज में आगे बढ़ती है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा में कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों की कमी नहीं है। बीआर चोपड़ा की आइकॉनिक 'कानून' से लेकर 'दामिनी' और 'मेरी जंग' से होते हुए अक्षय कुमार की 'जॉली एलएलबी' और ताजातरीन तमिल फिल्म 'जय भीम' तक... एक से बढ़कर एक कोर्ट रूम ड्रामा आये हैं। बीच में बहुचर्चित मराठी फिल्म 'कोर्ट' का नाम भी कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों की जरूरी लिस्ट में शामिल किया जा सकता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी वेब सीरीज और फिल्मों की सूरत में तमाम लीगल ड्रामा मौजूद हैं। ऐसे में जी5 पर एक और कोर्ट रूम ड्रामा आया है- 420 आईपीसी। कुछ फिल्मों को छोड़ दें तो ज्यादातर कोर्ट रूम ड्रामा भारी-भरकम संवादों, अति-नाटकीयता और अदालतों के अंदर गैरजरूरी हीरोगीरी के मसालों में सने नजर आते हैं, जिनके लिए इन्हें दर्शकों का प्यार और खूब तालियां भी मिलीं।
420 आईपीसी की सबसे अच्छी बात यही है कि यहां जो अदालत या अदालती कार्यवाही नजर आती है, उसमें कहीं भी अतिरंजिता या अतिरेकता नहीं है। फिल्म सादगी से कानूनी दांवपेंचों के चित और पट वाले अंदाज में आगे बढ़ती है और धीरे-धीरे दर्शक को अपने कथ्य से जोड़ती जाती है। एक साधारण-सा दिखने वाला केस क्लाइमैक्स आते-आते बहुत बड़ा हो जाता है और फिल्म एक तार्किक अंत पर खत्म होती है।
कहानी के केंद्र में पांच मुख्य किरदार हैं- बंसी केसवानी (विनय पाठक), बीरबल चौधरी (रोहन विनोद मेहरा), सावक जमशेदजी (रणवीर शौरी), पूजा केसवानी (गुल पनाग) और नीरज सिन्हा (आरिफ जकारिया)। बैंक के कर्ज में डूबा मध्यवर्गीय जीवन शैली जीने वाला बंसी केसवानी चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जिसके पास कुछ हाई-प्रोफाइल क्लाइंट्स हैं। इनमें एक एमएमआरडीए का डिप्टी डायरेक्टर संदेश भोसले भी है।
भोसले पर मुंबई के ऐरौली इलाके में 3000 करोड़ की लागत से बन रहे एक ब्रिज निर्माण के प्रोजेक्ट में से 1200 करोड़ रुपये का गबन करने का आरोप लगता है। सीबीआई उसे गिरफ्तार कर लेती है। जांच के क्रम में सीबीआई बंसी केसवानी से भी पूछताछ करती है। घर की तलाशी लेती है। मगर कुछ ना मिलने पर उसे जाने देती है। इस घटना के दो महीने बाद बंसी एक नई मुसीबत में फंस जाता है।
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बंसी पर उसका एक क्लाइंट नीरज सिन्हा 50-50 लाख के तीन चेक चुराने का आरोप लगाता है। नीरज मुंबई का बहुत बड़ा बिल्डर है और बंसी उसके एकाउंट्स संभालता था और भरोसे का आदमी था। पुलिस की जांच शुरू होती है। तीनों चेक बंसी के एक कमरे वाले दफ्तर में बरामद होते है, जहां बंसी के अलावा बस एक सहायक बैठता है। बंसी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है। मुकदमा शुरू होता है। बंसी का केस बीरबल चौधरी लड़ता है। बीरबल दिमाग से तेज नौजवान वकील है, जो अपने लिए नाम और मुकाम की तलाश में है। केस जीतने के लिए वो थोड़ा-बहुत मैनिपुलेशन करने को गलत नहीं मानता।
पब्लिक प्रोसीक्यूटर सावक जमशेदजी अनुभवी और तेजतर्रार वकील है, जिससे न्यायाधीश भी प्रभावित रहते हैं। जमशेदजी एमएमआरडीए वाले केस में सीबीआई का वकील भी है। आगे की फिल्म इन्हीं दोनों किरदारों के बीच अदालती दांव-पेंचों और अपने क्लाइंट को बचाने के लिए बीरबल के इनवेस्टीगेशन पर आधारित है, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे होते हैं। बंसी केसवानी, पूजा केसवानी और नीरज सिन्हा के किरदारों की परतें उघड़ती हैं। इन सब किरदारों के छिपे हुए राज को जानने के लिए बेहतर है खुद फिल्म देखें।
आम तौर पर कोर्ट रूम ड्रामा कत्ल, दुष्कर्म या सिस्टम के खिलाफ लड़ाई को लेकर बनते रहे हैं, मगर 420 आईपीसी में कोर्ट ड्रामा के केंद्र में आर्थिक अपराध है। फिल्म बिना समय खराब किये शुरू होते ही मुद्दे की बात पर आ जाती है। बंसी केसवानी से सीबीआई की पूछताछ के बाद लगता है फिल्म आगे कैसे बढ़ेगी, मगर फिर स्क्रीनप्ले के जरिए इसमें ट्विस्ट लाकर कहानी को आगे बढ़ाया जाता है, जिसके तार क्लाइमैक्स में शुरुआत में हुई घटना से जुड़ते हैं।
फिल्म के दृश्यों की सादगी और वास्तविकता का एहसास प्रभावित करता है। मनीष गुप्ता ने फिल्म का लेखन-निर्देशन किया है। इससे पहले उन्होंने सेक्शन 375 लिखी थी। भावनात्मक स्तर पर 420 आईपीसी की कहानी सेक्शन 375 जैसी इंटेंस और धारदार तो नहीं है, मगर कलाकारों की परफॉर्मेंसेज और कुछ ट्विस्ट्स ने फिल्म को संभाल लिया है।
सभी कलाकार अपने-अपने किरदारों में सहज नजर आते हैं और किरदार की सीमाओं में रहकर ही अपना काम करते हैं। किसी भी किरदार में जबरन हीरोइज्म दिखाने की जल्दबाजी नजर नहीं आती। विनय पाठक, रणवीर शौरी, गुल पनाग और आरिफ जकारिया सक्षम कलाकार हैं और किरदारों में उतरना भली-भांति जानते हैं। रोहन विनोद मेहरा की यह दूसरी फिल्म है।
संयोग से उनका डेब्यू भी एक आर्थिक अपराध की कहानी बाजार से हुआ था। इस फिल्म में उभरते हुए संघर्षरत वकील के किरदार में रमने के लिए रोहन थोड़ा संघर्ष करते महसूस हुए। उनके किरदार को लेकर शायद लेखन में निरंतरता की कमी के कारण भी कहीं-कहीं रवानगी खोती नजर आती है। 98 मिनट की समयावधि होने के कारण फिल्म खिंची हुई नहीं लगती और ना ही अधूरी लगती है। घर के आराम में 420 आईपीसी इस वीकेंड के लिए एक ऑप्शन हो सकती है।
कलाकार- विनय पाठक, रणवीर शौरी, गुल पनाग, रोहन विनोद मेहरा, आरिफ जकारिया आदि।
निर्देशक- मनीष गुप्ता
निर्माता- राजेश केजरीवाल, गुरपाल सच्चर, जी स्टूडियोज।
अवधि- 1 घंटा 38 मिनट।
रेटिंग- *** (3 स्टार)