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विद्या बालन फिल्म 'जलसा' में अपने किरदार से नहीं कर पा रही थीं कनेक्ट, इस वजह से भरी थी हामी

मैंने आज तक जितने भी किरदार निभाए हैं उनके प्रति लोगों के दिल में एक सहानुभूति या संवेदना होगी। जलसा में मैंने पहली बार ग्रे किरदार निभाया है। माया मेनन के किरदार को निभाते समय मुझे डर लग रहा था।

By Vaishali ChandraEdited By: Published: Sun, 27 Mar 2022 01:14 PM (IST)Updated: Sun, 27 Mar 2022 01:14 PM (IST)
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स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई जेएनएन। इन दिनों अभिनेत्री विद्या बालन अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई ‘जलसा’ में तेज तर्रार एंकर की भूमिका में नजर आ रही हैं। आगामी दिनों में वह प्रतीक गांधी के साथ अनाम फिल्म में दिखेंगी। अपने प्रोजेक्ट्स और जलसा में अपने किरदार को लेकर विद्या बालन ने जागरण डॉट कॉम से की खास मुलाकात।

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आपने कहा कि ‘जलसा’ ने आपको कंफर्ट जोन से निकाला, जबकि आप पहले भी कई चुनौतीपूर्ण किरदार निभा चुकी हैं। आपने अपना कंफर्ट जोन कैसे तय किया?

मैंने आज तक जितने भी किरदार निभाए हैं, उनके प्रति लोगों के दिल में एक सहानुभूति या संवेदना होगी। इसमें मैंने पहली बार ग्रे किरदार निभाया है। मेरा मानना है कि यह हम सबके अंदर है। पहले मुझे लगा कि अगर मेरे किरदार माया मेनन की तरह ही कुछ परिस्थितियों का सामना मुझे करना पड़ता तो मैं उससे नहीं भागती, लेकिन बाद में एहसास हुआ कि सही और गलत सबका अपना नजरिया है। तब मेरे मन में सवाल उठा कि मैं माया को क्यों जज कर रही हूं। इसी वजह से मैंने माया का किरदार निभाया। इस किरदार को निभाते समय मुझे डर लग रहा था कि शायद इसके प्रति लोगों की सहानुभूति नहीं होगी, लेकिन किसी फिल्म को चुनते हुए मेरी अपनी नैतिकता भी सामने आती है कि मुझे कौन सी कहानी लोगों तक पहुंचानी है।

यह पहला मौका था जब किरदार को लेकर जजमेंटल हुईं या पहले भी कभी ऐसा हुआ है?

यह मेरे साथ पहली बार हुआ है। जैसा मैंने कहा कि इससे पहले मैं अपने सारे किरदारों के प्रति सहानुभूति महसूस करती थी, लेकिन माया को लेकर वैसा महसूस नहीं हुआ। ऐसे मौके पर आपकी सोच समझ काम आती है। विद्या और माया मेनन अलग हैं, लेकिन माया को व्यक्त करने के लिए विद्या एक जरिया है तो उसके अपने विश्वासों की भी कहीं न कहीं अहम भूमिका है।

क्या सोच-विचार कर ऐसी फिल्मों का चयन करती हैं जिनमें नायक की जरूरत न हो?

हां, बिल्कुल। (ठहाका मारते हुए) मुझे इस बात की खुशी है। जब मुझे इतने अच्छे किरदार और कहानियां मिल रही हैं तो मैं उससे कम पर समझौता क्यों करूं। अगर मुझे किसी नायक वाली फिल्म में बहुत अच्छी कहानी और किरदार मिला तो मैं उसे जरूर करूंगी, फिलहाल तो मैं इसी में संतुष्ट हूं।

यहां पर शारीरिक रूप से अक्षम बेटे की मां की भूमिका में हैं...

सूर्या, जिसने आयुष का किरदार निभाया है, वह बेहतरीन एक्टर है। वह 12 साल का है और वास्तव में सेरेब्रल पाल्सी (न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर, जो बच्चों की शारीरिक गति, चलने-फिरने की क्षमता को प्रभावित करता है) से जूझ रहा है, लेकिन उसके दिमाग में ये सीमाएं नहीं हैं कि मैं तकलीफ की वजह से बस इतना ही कर सकता हूं। मुझे उसकी यह बात बहुत अच्छी लगी और प्रेरणा भी मिली कि जिंदगी में कुछ भी असंभव नहीं है। वह अमेरिका में रहता है। हमारे निर्देशक सुरेश त्रिवेणी ने वीडियो काल के जरिए उससे बात की, वहां से उसका सेलेक्शन हुआ। वह जबरदस्त एक्टर है। आप फिल्म में उसके रिएक्शन देखें।

फिल्म में आप तकनीक से काफी जुड़ी दिख रही हैं। उसका लाभ असल जिंदगी में भी उठाया?

(हंसते हुए) नहीं। टेक्नोलाजी और मेरी बनती नहीं है। जूम काल वगैरह कर लेती हूं। वरना कई बार पूरा दिन मैं अपना फोन चेक ही नहीं करती हूं। मैं घर पर भी फोन का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करती। मैं भूल जाती हूं कि मेरा फोन रखा कहां है। दरअसल, वर्ष 2008 से आज तक मेरा फोन साइलेंट पर रहता है। जब लगातार काल और मैसेज में बिजी रहें तो आपको खुद के लिए ही समय नहीं मिलता। यह मुझे पसंद नहीं।

अब महिला प्रधान फिल्में तो बन रही हैं, लेकिन अधिकतर अभिनेत्रियों की शिकायत है कि इन फिल्मों में बजट की समस्या आज भी है...

यह स्वाभाविक है क्योंकि अंतत: यह भी तो एक बिजनेस है। महिला प्रधान या महिला केंद्रित फिल्में अभी भी बहुत कम तादाद में बन रही हैं, इसलिए हमें उन्हें महिला प्रधान फिल्में कहना पड़ रहा है। जब बराबरी में आधी महिला प्रधान और आधी पुरुष प्रधान फिल्में बनेंगी तो हमें महिला प्रधान जैसे शब्द प्रयोग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इन फिल्मों के चलने से अब महिला प्रधान फिल्मों को बजट तो मिलने लगा है, लेकिन उतना नहीं, जितना पुरुष प्रधान फिल्मों को मिलता है, क्योंकि वहां तो सफलता का इतिहास है। फर्क बहुत है, लेकिन यह बदलेगा।

शार्ट फिल्म ‘नटखट’ के बाद कुछ और प्रोड्यूस नहीं किया?

(हंसते हुए) घर पर एक प्रोड्यूसर है। मुझे यह काम समझ में भी नहीं आता है। एक्टिंग के अलावा मुझे कुछ आता ही नहीं है। इसी में मुझे संतुष्टि मिलती है। मैं प्रोड्यूसर के सामने आने वाला तनाव नहीं लेना चाहती।

फिल्म ‘घनचक्कर’ की रिलीज के बाद आपने कहा था कि पति सिद्धार्थ राय कपूर के साथ फिल्म नहीं करेंगी, वक्त के साथ उस निर्णय में कोई बदलाव हुआ?

हम दोनों के लिए हमारी शादी बहुत महत्वपूर्ण है। अगर आप पेशेवर तौर पर एक-दूसरे के साथ काम करेंगे तो दोनों में अनबन तो होगी ही और वह अनबन घर आई तो फिर बस खत्म। हालांकि हम अपने काम के बारे में सब साझा करते हैं, लेकिन एक-दूसरे के निर्णय में दखल नहीं देते। आपको जो करना है करो, हम एक-दूसरे को हर तरीके से सहयोग करेंगे। पेशेवर तथा व्यक्तिगत जीवन को अलग-अलग रखना सबसे बेहतर है। 


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