'द अटैक्स ऑफ 26/11' को प्रचार की जरूरत नहीं
निर्देशक राम गोपाल वर्मा को चर्चा में बने रहना आता है। फिल्मों के अलावा उनके बयान भी इस काम में उनकी मदद करते हैं। 26 नवंबर के आतंकी हमले पर बन रही फिल्म की शूटिंग इन दिनों जोर-शोर से चल रही है। पिछले दिनों ही फिल्म का ट्रेलर लॉन्च किया गया। फिल्म में नाना पाटेकर क
नई दिल्ली। निर्देशक राम गोपाल वर्मा को चर्चा में बने रहना आता है। फिल्मों के अलावा उनके बयान भी इस काम में उनकी मदद करते हैं। 26 नवंबर के आतंकी हमले पर बन रही फिल्म की शूटिंग इन दिनों जोर-शोर से चल रही है। पिछले दिनों ही फिल्म का ट्रेलर लॉन्च किया गया। फिल्म में नाना पाटेकर के अहम किरदार को लेकर भी दर्शकों में काफी उत्सुकता है। राम गोपाल वर्मा से बातचीत।
कुछ समय पहले ही आपने कहा था कि 26 नवंबर के आतंकी हमले पर फिल्म नहीं बनाएंगे। अब 'द अटैक्स ऑफ 26/11' का ट्रेलर आया है?
मुझे एक भावनात्मक कहानी कहनी थी, उसे मैंने फिल्मों के जरिए दर्शकों के सामने लाने की कोशिश की। अगर मुझे यह घटना आतंकित नहीं करती या मुझे नहीं लगता कि इस पर फिल्म बनने की संभावना है, तो मैं फिल्म नहीं बनाता।
कहा गया कि तब के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की कुर्सी आपकी वजह से छिन गई? इस बारे में आप क्या कहेंगे?
मैं होटल ताज अपने दोस्त-अभिनेता रितेश देशमुख की वजह से गया था। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी आतंकी घटना हुई थी। मुझे लगा कि वहां जाकर स्थिति का जायजा लेना चाहिए, लेकिन मेरा वहां जाने की बात को मीडिया ने तोड़-मरोड़कर पेश किया। विलासराव जी के साथ जो कुछ भी हुआ, उसका मुझे बेहद अफसोस है।
लेकिन रितेश देशमुख को आपने अपनी फिल्म के लिए नहीं चुना?
ऐसा मैंने कब कहा था कि रितेश को अपनी फिल्म में लूंगा? मुझे लगा कि नए लोग इस फिल्म के साथ अधिक न्याय कर सकते हैं, तो मैंने अधिकतर नए लोगों को ही फिल्म में रखा। तब के क्राइम ब्रांच कमिश्नर राकेश मारिया के किरदार के लिए मैंने नाना पाटेकर को साइन किया है।
कहा जा रहा है कि कसाब की फांसी के समय का फायदा उठाकर आपने फिल्म का पहला लुक जारी किया है?
ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे लगा कि यह एक सकारात्मक समय है, जब अपनी बात मुझे दर्शकों तक पहुंचानी चाहिए। लोगों की स्मृति बहुत कमजोर होती है। मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह कसाब पर फिल्म नहीं है। यह 26 नवंबर के आतंकी हमलों में मारे गए या प्रभावित हुए लोगों के जीवन पर आधारित एक भावनात्मक कहानी है।
इस घटना से जुड़े कई विवाद हैं, जिनमें से एक शहीद हुए तीन पुलिस अफसर के बुलेट प्रूफ जैकेट का मुद्दा भी था। क्या उसे भी फिल्म में दिखाया गया है?
मुद्दे हमेशा राजनीति के केंद्र में रहे हैं। मुझे सिर्फ फिल्म बनाकर अपनी बात दर्शकों के सामने रखनी है। ऐसी कोई भी घटना, जिसका विरोध हो सकता है या जिससे सौहार्द बिगड़ने की आशंका होगी, उसे फिल्म का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा।
फिल्म महज पंद्रह फीसदी शूट हुई है और आप प्रचार में जुट गए। क्या यह गलत ट्रेंड नहीं है?
गलत टेंड्र तो नहीं, लेकिन इसे जल्दबाजी कही जा सकती है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि यह समय की जरूरत है। इतनी फिल्में इस कदर तेजी से बन रही हैं कि आपको अपनी बात इस हो-हंगामे के बीच रखनी होगी। फिल्म का प्रचार करना तो आज अच्छा माना जाता है, तो मैं गलत कहां से हो गया?
'अब तक छप्पन' का भी सिक्वल आने को है, जबकि फिल्म 'भूत रिटर्न्स' को लोगों ने खारिज कर दिया?
काम करते वक्त मन में कोई आशंका नहीं रहती। 'भूत रिटर्न्स' भी मैंने और मेरी टीम ने पूरी लगन के साथ बनाई थी। 'अब तक छप्पन' का सिक्वल भी बहुत अच्छा बना है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी।
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