फिल्मों में साइंटिस्ट, पायलट और अब टीचर जैसी अलग-अलग भूमिकाएं निभा रही- अभिनेत्री रकुलप्रीत सिंह
यह देश की इकोनामी को भी प्रभावित करेगा। हमारी सरकार देश की इकोनामी को बूस्ट करने का शानदार काम कर रही है। तो हमें बेवजह उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए। मुझे लगता है कि सबको रिस्पांसिबल होना चाहिए इंडस्ट्री को भी और आडियंस को भी।
दो सितंबर को डिज्नी प्लस हाटस्टार पर रिलीज हुई फिल्म ‘कठपुतली’ में रकुलप्रीत सिंह टीचर की भूमिका में नजर आई हैं। यह तमिल फिल्म ‘रत्सासन’ की हिंदी रीमेक है। फिल्म, अपने सफर और हिंदी सिनेमा की चुनौतियों पर रकुलप्रीत सिंह ने स्मिता श्रीवास्तव के साथ साझा किए अपने जज्बात..
फिल्मों में साइंटिस्ट, पायलट और अब टीचर जैसी अलग-अलग भूमिकाएं निभा रही हैं। बचपन में क्या बनने का सोचा था?
बचपन में साइंटिस्ट बनना था, लेकिन बाद में बस एक्टर बनने का ही सोचा। स्क्रीन पर इन अलग-अलग किरदारों को निभाना अच्छा लगता है। एक्टर का ऐसा जाब है कि हर कैरेक्टर के बारे में सीखने को मिलता है। बतौर कलाकार आपको ह्यूमन साइकोलाजी व बिहेवियर के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। मेरे लिए यह बहुत एक्साइटिंग है।
पहली बार ‘रत्सासन’ को देखने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया थी?
जब मेरे पास फिल्म का आफर आया तब मैंने फिल्म नहीं देखी थी। मुझसे निर्देशक ने कहा कि तुम बस स्क्रिप्ट सुनो। मैं आखिरी के दस मिनट तक अनुमान नहीं लगा पा रही थी। फिर मैंने जानबूझकर उस फिल्म को नहीं देखा। तब आप अपने तरीके से सीन को अप्रोच कर पाते हैं। वैसे मेरा किरदार ओरिजनल फिल्म से काफी अलग है।
साइन लैंग्वेज भी सीखी?
इसमें बच्ची के साथ मेरे साइन लैंग्वेज सीन हैं। तो साइन लैंग्वेज के लिए मैंने क्लासेस ली थीं। वैसे सेट पर भी साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट थे। वो गाइड करते रहते थे। वो बच्ची बहुत स्वीट और शरारती है। हम सबको बहुत धैर्य रखना पड़ता था। बच्चों को नहीं पता कि वो काम कर रहे हैं तो उन्हें यह एंगल देना है या वो। पर उसे संभालने का क्रेडिट निर्देशक रंजीत एम. तिवारी को जाता है। वो बच्ची बांग्ला में बात करती थी तो रंजीत सर उससे बांग्ला में ही बात करते थे। ऐसे में हमारे लिए काम करना आसान हो जाता था।
इस फिल्म में छात्राओं के यौन उत्पीड़न का भी मामला है। इस मुद्दे पर लड़कियों को क्या सलाह देना चाहेंगी?
यह बहुत ही दुखद चीज है कि यह हमारी सोसाइटी में होता है। यह लड़कों और लड़कियों किसी के भी साथ हो सकता है। जितना हम यूथ को एजुकेट (शिक्षित) करेंगे, जितना हम उन्हें घर से सिखाएंगे कि औरतों का सम्मान कैसे करते हैं, उतना सोसाइटी में हालात बेहतर होंगे। हर दूसरे दिन कहीं न कहीं से हमें ऐसी खबरें सुनने को मिलती है। मैं बस यह उम्मीद और प्रार्थना कर सकती हूं कि आगे हम ऐसी दुनिया में रहें, जहां हमें इस पर चर्चा ही न करनी पड़े और यह सुरक्षित दुनिया हो जाए क्योंकि ऐसी घटनाएं पूरी दुनिया में होती हैं।
आपने अपनी जिंदगी में सबसे बहादुरी का काम क्या किया है?
बहुत पहले की बात है हम लोग कालेज में थे और नैनीताल में कालेज ट्रिप चल रहा था। हम छह-सात लड़कियां थीं, वहां एक लड़का था जो हमारी फोटो खींच रहा था। मैं तो फौजी की बेटी हूं तो मुझे लगा कि ऐसे कैसे कोई फोटो खींच सकता है। मैं उसके पास गई और उसे एक थप्पड़ मारा। उसने मुझे मुक्का मारा। हमारी थोड़ी झड़प भी हुई, (हंसते हुए) आखिरकार जीत मेरी ही हुई। मैं यही महसूस करती हूं कि महिलाओं को सशक्त होना चाहिए। हमें अपनी आत्मरक्षा करनी आनी चाहिए।
इन दिनों फिल्मों का बायकाट ट्रेंड चल रहा है। आप इसे कैसे देखती हैं?
(थोड़ा ठहरते हुए) मुझे लगता है कि बायकाट उस चीज का किया जाता है जब उसमें कुछ आपत्तिजनक हो। तो हम लोग जब एक फिल्म बनाते हैं और दर्शक फिल्म को बायकाट करते हैं तो अगर उसमें कुछ आपत्तिजनक है तो हमें फिल्म के तौर पर किसी की भावनाओं को निश्चित रूप से आहत नहीं करना चाहिए। लेकिन अगर बेवजह कहीं पर बायकाट होता है तो मुझे लगता है, उससे काफी लोग प्रभावित होते हैं। फिल्में नहीं चलेंगी तो सिर्फ प्रोड्यूसर का नुकसान नहीं होगा। एक फिल्म पर हजारों लोग डिपेंडेंट होते हैं। लाइटमैन, असिस्टेंट, डांसर ऐसे कितने लोग होते हैं। यह देश की इकोनामी को भी प्रभावित करेगा। हमारी सरकार देश की इकोनामी को बूस्ट करने का शानदार काम कर रही है। तो हमें बेवजह उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए। मुझे लगता है कि सबको रिस्पांसिबल होना चाहिए, इंडस्ट्री को भी और आडियंस को भी।
बाक्स आफिस के लिहाज से अब तक यह साल इंडस्ट्री के लिए अच्छा नहीं रहा। आप इसे कैसे देखती हैं?
मुझे लगता कि ट्रेंड बदल रहा है। आडियंस के टेस्ट बदल गए हैं। हम सबको सोचने की जरूरत है कि हमें क्या नया देना चाहिए। शायद हमें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है। अगर कुछ नहीं चल रहा है तो हम कुछ गलत कर रहे होंगे क्योंकि आडियंस बहुत स्मार्ट है। हमें और हार्डवर्क करना है ताकि हम जो बना रहे हैं वो उन्हें पसंद आए।
‘थैंक गाड’ में एक बार फिर अजय देवगन के साथ काम कर रही है। कामेडी कितना इंज्वाय कर रही हैं?
इस फिल्म में मेरा एक भी सीन अजय सर के साथ नहीं है। मैं सिड (सिद्धार्थ मल्होत्रा) के अपोजिट हूं। पर यह लोगों को छू जाने वाली कामेडी है। मैं वाकई सोचती हूं कि यह एक ऐसी फिल्म है जिसे लोग इस टाइम पर एंज्वाय करेंगे। जहां तक कामेडी की बात है मुझे कामेडी में बहुत मजा आता है। आप कामेडी करते हैं तो सेट पर भी खुश रहते हैं। पर हां, कामिक टाइमिंग एक्टर के लिए सबसे कठिन होता है, लेकिन मुझे मजा आता है। मैं उम्मीद करती हूं कि मुझे और कामेडी फिल्में मिलें, क्योंकि लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने से अच्छा काम कोई और नहीं हो सकता।
‘इंडियन 2’ की क्या स्थिति है?
हमारी काफी शूटिंग पूरी हो चुकी थी। बस थोड़ा सा काम बाकी है। कमल (कमल हासन) सर के साथ काम का अनुभव अमेजिंग था। दरअसल, फिल्म के लिए उनके प्रोस्थेटिक मेकअप में चार घंटे लगते हैं और दो घंटे उसे उतारने में लगते हैं। ऐसे में वक्त ज्यादा निकलता है। कमल सर या अमिताभ सर एक रीजन की वजह से इतने सालों से इंडस्ट्री में हैं, क्योंकि उनका पैशन अनमैच्ड है।