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पं. जवाहरलाल नेहरू के विचारों से एक काल्पनिक व वैचारिक मुठभेड़ करती हुई पुस्तक

मौजूदा समय में छात्र-आंदोलन में भारत-विरोधी नारों से आहत होकर लेखक ने इस मानसिकता के सूत्र खोजने का प्रयास किया है जो उन्हें पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों या उनकी नीतियों में मिलते हैं। इसी क्रम में नेहरू से जो काल्पनिक बातचीत होती है वह रोचक बन पड़ी है।

By Jagran NewsEdited By: Vivek BhatnagarPublished: Sat, 12 Nov 2022 09:16 PM (IST)Updated: Sat, 12 Nov 2022 09:16 PM (IST)
पं. जवाहरलाल नेहरू के विचारों से एक काल्पनिक व वैचारिक मुठभेड़ करती हुई पुस्तक
इसमें नेहरू से जो प्रश्न किए गए हैं, वे उनकी पुस्तकों में उनके कथ्यों और तथ्यों पर आधारित हैं।

 लोकतंत्र की सबसे बड़ी सुंदरता यह है कि हर व्यक्ति किसी से भी सवाल कर सकता है और साहित्य की सबसे बड़ी सुंदरता यह है कि वह कल्पनालोक में भी भावों को आकार दे देता है। राजीव पुंडीर की पुस्तक 'एक मुलाकात जवाहरलाल नेहरू के साथ' भी कल्पनालोक में गढ़ी गई है, लेकिन वह कुछ ऐसे मुद्दों को भी उठाती है, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पुस्तक में जवाहरलाल नेहरू, बीआर आंबेडकर, स्वामी विवेकानंद आदि से काल्पनिक संवाद किया गया है, लेकिन इसमें नेहरू से जो प्रश्न किए गए हैं, वे जवाहरलाल नेहरू की 'द डिस्कवरी आफ इंडिया' व अन्य पुस्तकों में उनके विचारों, उनके कथ्य और तथ्य पर आधारित हैं। गौरतलब है कि 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू की जन्म जयंती है, ऐसे में उनके विचारों के पुनर्मूल्यांकन का अवसर यह पुस्तक देती है।

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इस पुस्तक के लेखक डा. राजीव पुंडीर आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, किंतु साहित्य से उन्हें प्रेम है। हिंदी में उनके दो कहानी संग्रह और अंग्रेजी में पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। कविताएं और लघुकथाएं भी वह लिखते हैं। लेखक ने नेहरू की प्रचलित छवि से इतर उन्हें प्रस्तुत किया है। भूमिका में वे इस पुस्तक का प्रेरणास्रोत पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ को बताते हैं, जिनके एक वाक्य ने उन्हें यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी कि यदि आप लिख सकते हैं तो लिखिए, बोल सकते हैं तो बोलिए, चिल्ला सकते हैं तो चिल्लाइए। यदि आप इन तीनों में कुछ नहीं कर सकते तो जो बोल रहा है उसके साथ खड़े हो जाइए। इस पुस्तक में लेखक ने भारत माता, राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, भारतीय संस्कृति, शिक्षा, इतिहास आदि अनेक विषयों पर नेहरू के विचारों के साथ वैचारिक मुठभेड़ की है।

मौजूदा समय में छात्र-आंदोलन में भारत-विरोधी नारों से आहत होकर लेखक ने इस मानसिकता के सूत्र खोजने का प्रयास किया है, जो उन्हें पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों या उनकी नीतियों में मिलते हैं। इस मानसिकता के ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक कारणों की खोज के क्रम में जवाहरलाल नेहरू से जो बातचीत होती है, वह रोचक और विश्लेषणात्मक बन पड़ी है। कुल मिलाकर, भले ही यह पुस्तक काल्पनिक भावभूमि पर लिखी गई हो, लेकिन यह जवाहरलाल नेहरू को एक नई दृष्टि से देखने का अवसर भी प्रदान करती है।

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पुस्तक : एक मुलाकात जवाहरलाल नेहरू के साथ

लेखक : डॉ. राजीव पुंडीर

प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन, अलीगढ़

मूल्य : 249 रुपये

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