यारी में कर ली एक्टिंग
इलाहाबाद की छात्र राजनीति पर बनी हासिल से लेकर बीहड़ के बागी पान सिंह तोमर तक लेखक-निर्देशक तिगमांशु धूलिया का कॅरियर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। हाल ही में अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में उन्होंने तकरीबन बीस साल बाद अभिनय किया।
इलाहाबाद की छात्र राजनीति पर बनी हासिल से लेकर बीहड़ के बागी पान सिंह तोमर तक लेखक-निर्देशक तिगमांशु धूलिया का कॅरियर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। हाल ही में अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में उन्होंने तकरीबन बीस साल बाद अभिनय किया। बातचीत तिग्मांशु धूलिया से..
गैंग्स ऑफ वासेपुर की सफलता के बाद आगे अभिनय जारी रखने की कोई योजना है?
मैं अभिनेता नहीं हूं। बीस साल पहले भले ही नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में मैंने अभिनय की पढ़ाई की थी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद कभी अभिनय नहीं किया। अनुराग कश्यप मेरे दोस्त हैं तो उनके कहने पर मैंने गैंग्स ऑफ वासेपुर में अभिनय कर लिया। अभिनय क्या किया बल्कि, जो मन में आया वो किया। अच्छा अभिनय भी वही होता है, जिसमें आप एफर्टलेस होकर काम करते हैं। गैंग्स ऑफ वासेपुर 2 का अभिनय मेरे लिए थोड़ा कठिन रहा, क्योंकि इसमें अपनी उम्र से लगभग दुगुने व्यक्ति का किरदार निभा रहा हूं। थोड़ा मोटा हूं और उठने-बैठने का हाव-भाव भी अलग है। एक निर्देशक जितना अभिनय कर सकता है उतना करने की कोशिश की है। शूटिंग के वक्त मुझे नहीं पता था कि कौन सा दृश्य फिल्म के दूसरे पार्ट के लिए है। जो संवाद मिलते गए मैं उन्हें बोलता गया।
आप एक निर्देशक हैं, ऐसे में अनुराग कश्यप के साथ फिल्म के किसी दृश्य को लेकर कभी कोई मतभेद हुआ?
फिल्म में हर व्यक्ति की एक भूमिका होती है। मैंने गैंग्स ऑफ वासेपुर में एक अभिनेता के तौर पर काम किया। रामाधीर सिंह और सरदार खान की दुश्मनी को लेकर थोड़ी समस्या थी। मैंने अनुराग से कहा कि एक स्थानीय गुंडा विधायक या सांसद को धमकी कैसे दे सकता है, उसे अगवा कैसे कर सकता है? लेकिन फिर मुझे लगा कि कई शहरों में ऐसा हुआ है, जहां एक स्थानीय गुंडे ने नेताओं की नाक में दम कर दिया है। हालांकि, जब मैंने फिल्म थिएटर में देखी तो मुझे लगा कि नहीं मैं सही था। मेरा किरदार इतना डरपोक या अच्छा नहीं था कि वह सरदार खान से डरे। एक और कमी जो मुझे फिल्म में लगी वह थी कि सरदार खान बदला लेने आता है और इश्कबाजी में उलझकर रह गया है। ..लेकिन, गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्में अच्छे और अलग सिनेमा के प्रति आपका भरोसा जगाती है।
पान सिंह तोमर की सफलता के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री या फिर कारपोरेट निर्माण घरानों का रवैया आपके सिनेमा के प्रति कितना बदला है?
पान सिंह तोमर की सफलता के बाद यूटीवी ने मुझे कोई पिक्चर बनाने का ऑफर नहीं दिया। परिवर्तन बस इतना हुआ है कि अब मैं अपने मन की फिल्में बना सकता हूं। साहब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स पोस्ट प्रोडक्शन स्टेज में है। सैफ अली खान को जय राम जी की कहानी पसंद आई है। फिल्म शायद मार्च तक फ्लोर पर जाए। उसके आस-पास मिलन टॉकीज की शूटिंग भी शुरू करूंगा। एक और फिल्म नवंबर में फ्लोर पर जाएगी, इसके क्रिएटिव सुपरविजन का जिम्मा मेरे ऊपर रहेगा।
पान सिंह तोमर से जुड़ा कोई यादगार पल बताएं?
मैं शेखर कपूर के साथ मुंबई के ही एक थिएटर में पब्लिक के बीच फिल्म देखने गया था। फिल्म खत्म होने के बाद दर्शक अपनी कतारों में खड़े होकर ताली बजा रहे थे। शेखर कपूर ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, ये तुम्हारी सफलता है और यही तुम्हारा हासिल है। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है मेरे लिए।
गोविंदा आपके पसंदीदा अभिनेता हैं। फिर उनके साथ कोई फिल्म क्यों नहीं बनाई?
मेरी सबसे बड़ी ख्वाहिश है गोविंदा को लेकर फिल्म बनाना। जुल्म की हुकूमत उनके कॅरियर की सबसे अच्छी फिल्म लगती है मुझे। एनएसडी में जब लोग नसीर साहब, ओम पुरी और पंकज कपूर साहब की बात करते थे तो मैं गोविंदा की बात करता था। दोस्त कहते कि तू पागल है। 1992-93 में जब मैं मुंबई आया तो शेखर कपूर साहब से बोला कि मुझे गोविंदा के साथ फिल्म बनानी है। शेखर ने गोविंदा को फोन किया और गोविंदा से मैं जाकर मिला भी।
हैदराबाद में गोविंदा कुली नंबर 1 की शूटिंग कर रहे थे तो मैं और संजय मिश्रा उनसे मिलने पहुंच गए। उन्होंने कहा कि मुंबई वापस लौटते वक्त तुम अपनी फिल्म की कहानी फ्लाइट में सुना देना। हमारे पास फ्लाइट से यात्रा करने के पैसे नहीं थे तो हम एयरपोर्ट भी नहीं जा सके। सात-आठ महीने तक मैं गोविंदा के पीछे भागा। उसके बाद उन्होंने मेरी फिल्म शोमैन में काम भी किया। लंदन में शूटिंग के एक लंबे शेड्यूल के बाद फिल्म अस्सी फीसदी तक बनकर रुक गई। मैं नए सिरे से गोविंदा के साथ काम करना चाहता हूं, लेकिन अब लगता है कि शायद वो समय निकल गया!
दुर्गेश सिंह
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