'तेरे बिन लादेन 2' के लिए सीआईए से भाड़े पर मांगा था चॉपरः अभिषेक शर्मा
निर्देशक-फिल्मकार अभिषेक शर्मा व्यंग्य के जरिए गंभीर विषयों को फिल्मों में पेश करते हैं। ‘तेरे बिन लादेन’ और ‘द शौकीन्स’ के बाद वह लेकर आ रहे हैं ‘तेरे बिन लादेन 2’। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश...
निर्देशक-फिल्मकार अभिषेक शर्मा व्यंग्य के जरिए गंभीर विषयों को फिल्मों में पेश करते हैं। ‘तेरे बिन लादेन’ और ‘द शौकीन्स’ के बाद वह लेकर आ रहे हैं ‘तेरे बिन लादेन 2’। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश...
क्या आपने ठान लिया है कि दर्शकों को अलग मिजाज की फिल्में ही देनी हैं?
मुझे कटाक्ष करने का शौक है। कुछ अलग लिखना चाहता हूं। बस इसीलिए मेरी फिल्मों में मेनस्ट्रीम फॉर्मूला नहीं है।
‘तेरे बिन लादेन 2’ का जन्म कैसे हुआ?
मैं सीक्वल का हिमायती नहीं हूं लेकिन ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद एक सीनियर जर्नलिस्ट ने खबर बनाई कि इसके साथ ही ‘तेरे बिन लादेन’ के सीक्वल का आइडिया भी खत्म हो गया। वह लेख पढ़ने के बाद ही मेरे दिमाग में पार्ट टू का विचार कौंधा। यह फिल्म वहां से शुरू से होगी, जहां पार्ट वन खत्म हुई थी। पहली फिल्म लादेन के फर्जी टेप पर बनी थी, लादेन की मौत इसमें सेंट्रल प्लॉट है। यह पूरी फिल्म एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी पर बेस्ड है। यह फिल्म हिंदुस्तान, पाकिस्तान और अमेरिका में सेट है।
अगर यह फिल्म लादेन की मौत की कॉन्सपिरेसी थ्योरी के बारे में है तो हमें सैकड़ों की तादाद में अमेरिकी फौजी, लड़ाकू विमान, ऐबटाबाद भी दिखेंगे?
जी हां। वह सब कुछ है। तभी तो फिल्म के पूरा होने में इतना वक्त लग गया। अमेरिकी लड़ाके, विमान आदि दिखाने के लिए सिर्फ वीएफएक्स में छह-सात महीने लग गए। आप फिल्म में वही हैलीकॉप्टर देखेंगे। हमने तो सीआईए को कॉन्टेक्ट भी किया था कि चॉपर दे दे भाड़े पे। वे माने नहीं, वरना वीएफएक्स की माथापच्ची नहीं होती। हमारा समय भी बचता।
...और कलाकारों के फ्रंट पर क्या कुछ तब्दीलियां हैं?
मनीष पॉल मेन लीड प्ले कर रहे हैं। अली जफर का कैमियो है। लादेन को प्रद्युम्न ही प्ले कर रहे हैं। पिछली फिल्म से बाकी कलाकार तो हैं ही। इस फिल्म का स्केल पहले पार्ट से बहुत हाई है। हमने अमेरिकी प्रेसिडेंट ओबामा तक का किरदार गढ़ा है। उसे हॉलीवुड के एक बेहद जहीन कलाकार ने प्ले किया है। उनका नाम हम बाद में रिवील करेंगे।
क्या आप हॉलीवुड की फिल्मों से खतरा महसूस करते हैं?
खतरा तो है। वरना क्या वजह है कि ‘शौकीन्स’ के सिनेमाघरों से उतरने के बावजूद उसी के संग रिलीज हुई ‘इंटरस्टेलर’ लंबी अवधि तक चलती रही। ऐसे खतरों से बचने के लिए हमें लोगों को अपनी कहानियां सुनानी और दिखानी होगी। मिसाल के तौर पर ‘क्वीन’ जैसी फिल्म। मैं उसे कम से कम पिछले पांच सालों की हिंदुस्तान की सबसे बेहतरीन फिल्म मानता हूं। वह न तो हॉलीवुड की किसी भी फिल्म की कॉपी है, न यूरोपीय सिनेमा जैसी फेस्टिवल सर्किट की। वह भरपूर एंटरटेन करती है। नारी प्रधान फिल्म है, पर उसका बिजनेस ‘शौकीन्स’ से ज्यादा था। वैसी कहानियां निकलेंगी तो हम हॉलीवुड और यूरोपीय सिनेमा को टक्कर दे सकेंगे!
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