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'मंजूनाथ' में अहम् भूमिका में नजर आएंगी दिव्या दत्ता

तेल माफिया व भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले मंजूनाथ षणमुगम के जीवन पर आधारित फिल्म 'मंजूनाथ' में अहम् भूमिका निभा रही हैं दिव्या दत्ता। फिल्म में आपका किरदार क्या है? मैं अंजलि का किरदार निभा रही हूं। वह मंजूनाथ की सीनियर थी। रियल लाइफ कैरेक्टर है। हम सबके साथ ऐ

By Edited By: Published: Thu, 01 May 2014 01:53 PM (IST)Updated: Thu, 01 May 2014 01:53 PM (IST)

तेल माफिया व भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले मंजूनाथ षणमुगम के जीवन पर आधारित फिल्म 'मंजूनाथ' में अहम् भूमिका निभा रही हैं दिव्या दत्ता।

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फिल्म में आपका किरदार क्या है?

मैं अंजलि का किरदार निभा रही हूं। वह मंजूनाथ की सीनियर थी। रियल लाइफ कैरेक्टर है। हम सबके साथ ऐसा होता है कि हमें कोई खबर या वारदात प्रभावित करती है। हमें भावुक भी करती है, मगर हम उनके लिए कुछ करते नहीं हैं। अंजलि जब अपने जूनियर की हत्या की खबर सुनती है, तो पति से कहती है कि कितना बुरा हुआ? कोई कुछ करता क्यों नहीं है? उस पर उसका पति कहता है कि तुमने कुछ किया? पति का सवाल उसे झकझोर कर रख देता है। वह तय कर लेती है कि गुनहगारों को सजा दिलवा कर चैन की सांस लेनी है। फिर वह मंजूनाथ के हत्यारों को सजा दिलवाने की खातिर सक्रिय आंदोलन चलाती है।

इसकी कहानी लोगों को दूसरों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेगी..

यकीनन करेगी, वरना सिस्टम हमें आगे भी जस की तस ट्रीट करता ही रहेगा। इस कहानी से हर शख्स जुड़ाव महसूस करेगा। ऐसा वाकया या हादसा किसी के संग हो सकता है। फिल्म सबके अंतर्मन को झकझोरने में भी सफल होगी। हम सब जिम्मेदारियों का जो बीड़ा दूसरों के मत्थे जड़ देते हैं, उस सोच व अप्रोच में यकीनन तब्दीली लाएगी। फिल्म का टॉपिक काफी ज्वलंत है।

फिल्म के साथ कैसे जुड़ीं?

इसके निर्देशक संदीप वर्मा जी मेरे घर आए थे। कहानी की वन लाइनर से ही मैं इंप्रेस हो गई थी। वहीं चंद ही मिनटों में मैंने तय कर लिया कि मैं फिल्म व सब्जेक्ट से प्रेषित होने वाले मैसेज का हिस्सा बनूंगी।

फिल्म को वॉयकॉम 18 जैसा बड़ा बैनर सपोर्ट कर रहा है। कैसे देखती हैं इसे?

बहुत बड़ी और जरूरी चीज है। इससे कॉज वाले विषय पर आधारित फिल्मों को क्लास के संग-संग मास ऑडिएंस तक पहुंचाने में भी मदद मिलेगी, जो अत्यावश्यक है।

दर्शकों का सपोर्ट फिल्म को मिलेगा?

जरूर मिलेगा। हम लोग अक्सर दर्शकों व उनकी सोच को कम आंकते हैं। उन्हें बेपरवाह और सिर्फ मस्तीखोर मानते हैं। असल में ऐसा नहीं है। 'रंग दे बसंती' और 'नो वन किल्ड जेसिका' हमारे सामने बड़े उदाहरण हैं। 'रंग दे बसंती' के बाद आंदोलनों में कैंडल मार्च एक अहम हिस्सा बना। 'नो वन किल्ड जेसिका' से सभी को पता चला कि हिंदुस्तान में न्याय प्रणाली अभी खत्म नहीं हुई है। देर जरूर होती है, पर न्याय होता है। सामने चाहे कितना भी ताकतवर इंसान क्यों न हो? 'मंजूनाथ' में भी मैं लोगों को प्रेरित करने की सारी खूबियां महसूस कर रही हूं।

यानी सिनेमा से सच की तलाश मुमकिन है?

बिल्कुल। सिनेमा जबरदस्त माध्यम है, जो व्यक्ति विशेष को सही-गलत सोचने पर मजबूर करती है। दुर्भाग्य से इसका यूज उस संदर्भ में कम हुआ है। 'मंजूनाथ' के जरिए हमारी कोशिश है कि दर्शकों का मनोरंजन करते हुए उन्हें सत्य और सही को ढूंढ़ने पर मजबूर किया जा सके।

(अमित)


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