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जो सोचा वो पाया

फिल्मों में गैर-फिल्मी पृष्ठभूमि के लोगों की एंट्री टेढ़ी खीर है। ऐसे में उन्हें अपने मिजाज की फिल्में मिल सकें इसके लिए साउथ की फिल्मों का सहारा भी लेती हैं कुछ हीरोइनें। तापसी पन्नू ऐसी ही हीरोइन हैं। उन्होंने भी साउथ के रास्ते हिंदी फिल्मों में जगह बनाई है।

By Edited By: Published: Thu, 27 Jun 2013 02:15 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2013 02:33 PM (IST)
जो सोचा वो पाया

मुबंई। फिल्मों में गैर फिल्मी पृष्ठभूमि के लोगों की एंट्री टेढ़ी खीर है। ऐसे में उन्हें अपने मिजाज की फिल्में मिल सके इसके लिए साउथ की फिल्मों का सहारा भी लेती हैं कुछ हीरोइनें। तापसी पन्नू ऐसी ही हीरोइन हैं। उन्होंने भी साउथ के रास्ते हिंदी फिल्मों में जगह बनाई है। उनसे खास बातचीत..

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'चश्मेबद्दूर' की सफलता के बाद से आपके कदम जमीन पर हैं कि नहीं?

-बिल्कुल जमीन पर है। कहने को तो हवा में उड़ने वाली बात होती, तो दो साल पहले से ही मुझे पंख लग जाते, क्योंकि स्टाडरम मेरे लिए नई चीज नहीं थी। हां, हिंदी फिल्मों में मेरा काम नया है। मैं अपनी भाषा की फिल्में कर सकती हूं। अब मैं बिल्कुल खुल सी गई हूं।

आपका अंतर्मन गवाही दे रहा था कि 'चश्मेबद्दूर' चलेगी ही?

-जी हां। ऐसा कौन इंसान होगा, जिसे यह भरोसा नहीं होगा कि यह फिल्म नहीं चलेगी? यह बात और है कि नतीजा कई बार उसके मन के अनुकूल नहीं होता। मैं वैसे भी बड़ी पॉजिटिव सोच वाली लड़की हूं। अपने काम के बारे में कुछ भी गलत या नेगेटिव सोचकर अपना मूड खराब नहीं कर सकती।

अगर अनुभव के आधार पर कहें, तो सोच के पीछे क्या वजह थी?

-मेरे ख्याल से कॉमेडी और ऐक्शन सबसे सेफ और आजमाए हुए जोनर हैं। ये दोनों शायद ही कभी फेल होते हैं। दोनों हर उम्र और वर्ग के लोगों को पसंद आती हैं। इस तरह की फिल्मों को दर्शकों की बड़ी तादाद मिल जाती है। फिर फिल्म का चुटीला संवाद हमारा चौथा हीरो था। डेविड धवन पहली बार नए कलाकारों के साथ काम कर रहे थे। लिहाजा उन्होंने भी प्रोजेक्ट पर अपनी पूरी जान लगा दी।

आप उनके लिए 'लकी मैस्कट' बन गई हैं। आगे भी उन्होंने अपनी फिल्म में आपको कास्ट करने की बात की है?

-इतनी जल्दी तो नहीं, पर मैं उनके और 'चश्मेबद्दूर' के सह-कलाकारों के साथ काम करना चाहूंगी। वजह यह है कि वह मेरी पहली हिंदी फिल्म थी और हर कलाकार के लिए उसकी डेब्यू फिल्म बेहद खास होती है। मेरे साथ भी ऐसा है।

आप साउथ की फिल्में इसलिए कर रही थीं, क्योंकि आपको हिंदी फिल्मों में काम नहीं मिल रहा था?

-हां। यह सच है। इसे मैं स्वीकारती हूं, लेकिन हिंदी में मुझे अच्छी फिल्में नहीं मिल रही थीं। यहां अपने मिजाज और शर्तो पर काम कर सकूं, उसकी खातिर मैंने साउथ की फिल्में कीं।

अच्छी फिल्मों से आपका आशय?

-वैसी फिल्में, जिनमें बेहतर रोल और कंटेंट के साथ-साथ कमर्शियल वैल्यू भी हो। वैसी सॉलिड फिल्में मुझे ऑफर नहीं हो रही थीं तीन साल पहले, इसलिए मैंने हिंदी के बजाय साउथ की ओर रुख किया।

यानी साउथ की फिल्मों के लिए आपको ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी?

-हां जी। मैं जब दिल्ली में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी, उसी दौरान मैंने एक ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लिया था। वहां देशभर से फोटोग्राफर, कास्टिंग डायरेक्टर जमा हुए थे। उन्हीं में से एक साउथ की फिल्मों के लिए कास्टिंग करते थे। उन्होंने मुझे पहली साउथ की फिल्म का ऑफर दिलाया। वह तमिल फिल्म मैंने 'कोलावी डी..' फेम धनुष के साथ की थी। उस फिल्म को छह फिल्मफेयर अवार्ड मिले थे। अब जब आगाज ही इतना बेहतर हो, तो फिर मैं कैसे कोई भी हिंदी फिल्म करती?

अभिनेत्री बनना बचपन का सपना था कि बाय चांस इधर आ गई?

-सच कहूं तो मुझे पढ़ने का बहुत शौक था। गणित मेरा प्रिय विषय था। हां, मेरी मां जरूर चाहती थीं कि मैं हीरोइन बनूं। फिर पढ़ाई के दौरान ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लिया और इधर आ गई।

साउथ और हिंदी फिल्मों की दो नाव पर आप सवार हैं। किस तरह देखती हैं इसे?

-मैं दोनों को अलग सिनेमा की तरह नहीं देखती। मैं इन्हें इंडियन सिनेमा मानती हूं। दोनों की भाषाएं बस अलग हैं, वर्ना कहानी से लेकर कास्टिंग और बाकी सब चीजें एक जैसी हैं।

आगे के प्रोजेक्ट?

-मैं मुंबई शिफ्ट हो रही हूं। एक बड़े बैनर की फिल्म पर बातचीत अंतिम चरणों में है। जल्द उसका नाम अनाउंस किया जाएगा।

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